रांचीः देश की आजादी के लिए अनेकों वीरों ने अपने जान की कुर्बानी दी. कई वीर सपूतों ने आजादी की लड़ाई में अपने प्राण न्योछावर किए. अनेकों लड़ाईयां लड़ी गई. उन्ही में से एक था सन् 1857 का विद्रोह. जिसे देश का पहला स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है. इस स्वतंत्रता संग्राम के कई नायक थे. उन्हीं में से एक थे पलामू के वीर सपूत नीलांबर-पीतांबर.
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सन् 1857 में देश में पहला स्वतंत्रता संग्राम देखा. पूरे देश में अंग्रेजों के खिलाफ लोग इस जंग में शामिल हुए. आजादी की यह लड़ाई कुछ दिनों में ही कुंद पड़ने लगी. लेकिन पलामू क्षेत्र में इस क्रांति की लौ सन् 1859 तक जलती रही. यह जिनकी वजह से हुआ वो थे दो वीर भाई नीलांबर और पीतांबर. दोनों ने अपने कुशल नेतृत्व और वीरता से अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे.
पलामू के चेमो सान्या गांव के रहने वाले थे नीलांबर और पीतांबर. उनके पिता यहां के जागीरदार थे. अपने पिता की मौत के बाद नीलांबर ने अपने भाई पीतांबर का पालन-पोषण किया. जब देश में आजादी की लड़ाई का पहला बिगुल बजा तो पलामू के इन दो वीर भाईयों ने भी अपनी हिस्सेदारी इसमें निभाई. दोनों भाईयों ने मिलकर आसपास के जागीरदारों को एकत्रित किया. उसके बाद शुरू की अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई. अंग्रेजों के नाक में इन्होंने दम कर रखा था. गुरिल्ला वार में ये लोग काफी दक्ष थे. यही वजह थी कि अंग्रेज इनका सामना नहीं कर पा रहे थे.
काफी कोशिश के बाद भी अंग्रेज इनकी आवाज को दबा नहीं पा रहे थे. इन्होंने 1857 में पलामू के राजहरा स्टेशन पर हमला किया. इसी स्टेशन से अंग्रेज कोयले की ढुलाई करते थे. अंग्रेज इस हमले से काफी बौखला गए. अंग्रेजों ने लैफ्टिनेंट ग्राहम के नेतृत्व में फौज भेजी. जिसने इनके कई ठिकानों पर हमला बोल दिया. इस हमले में नीलांबर-पीतांबर को काफी नुकसान हुआ. उनके कई सहयोगी पकड़े गए. जिन्हें फांसी दी गई. उनमें टिकैत उरांव और उमरांव सिंह भी शामिल थे.
दोनों भाईयों ने फिर भी जंग नहीं छोड़ी. वो अंग्रेजों से लोहा लेते रहे. अंग्रेज इस गुरिल्ला वार से काफी परेशान थे. उन्होंने कर्नल डाल्टन के नेतृत्व में एक पूरी फौज ही पलामू भेज दी. जिसमें मद्रास इन्फैंट्री के विशेष बंदूकधारी, घुड़सवार शामिल थे. इनलोगों ने नीलांबर-पीतांबर के गांव में भीषण तबाही मचाई. पूरे 24 दिनों तक लड़ाई चली. अंत में अंग्रेजों ने दोनों भाईयों को छल से पकड़ लिया. दोनों भाईयों को पलामू के लेस्लीगंज स्थित एक पेड़ पर फांसी दी गई. वह दिन था 28 मार्च 1859.
आज भी पलामू में शहीद नीलांबर-पीतांबर पूजे जाते हैं. हालांकि जो सम्मान इन्हें मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला. उनका पैतृक गांव, चेमो सान्या मूलभूत सुविधा से काफी दूर है. साथ ही यह गांव मंडल डैम के डूब क्षेत्र में आता है.