रांची: झारखंड स्टेट हेल्थ सर्विस एसोसिएशन और आईएमए का तर्क है कि देश के 22 राज्यों में डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू है. इसलिए झारखंड में भी कठोर दंड के प्रावधानों वाला एमपीए लागू होना चाहिए. डॉक्टर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट (MPA) की मांग कर रहे हैं. तो वहीं जनता की ओर से पेशेंट प्रोटेक्शन एक्ट(PPA) की मांग तेज हो गई है.
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2013 से ही राज्य में मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के विरोध करने वाले जनस्वास्थ्य अभियान संघर्ष मोर्चा (Jan Swasthya Abhiyan Sangharsh Morcha) के संयोजक नदीम खान ने कहा कि 2013 में अर्जुन मुंडा की सरकार के समय से ही कॉरपोरेट मेडिकल सिस्टम को सुरक्षित करने के लिए मरीजों के हितों की कीमत पर MPA लाने की कोशिश होती रही है. इसका लगातार विरोध किया जाता रहा है. उन्होंने कहा कि विधानसभा के पटल पर भी यह बिल वापस प्रवर समिति के पास इसलिए लौटा दिया गया कि उसमें जनता का हित नहीं था.
मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट का होगा विरोध
वहीं, सदर अस्पताल को निजी हाथों में सौंपने की हुई कोशिशों के दौरान विरोध का झंडा बुलंद करने वाले वरुण कहते हैं कि राज्य में अगर पेशेंट प्रोटेक्शन एक्ट की जगह मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लाने की कोशिश हुई, तो उसका जबरदस्त विरोध किया जाएगा.
डॉक्टरों की सुरक्षा के लिए IPC-CRPC में हैं कई प्रावधान
MPA यानि मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट के खिलाफत करने वालों का तर्क है कि ज्यादातर जगहों पर डॉक्टरों के खिलाफ हिंसा की वजह बेवजह का बिल बना देना और मरीज देखने में डॉक्टरों की लापरवाही होती है. ऐसे में अगर सरकार इलाज के लिए अधिकतम राशि की कैपिंग लापरवाह डॉक्टरों पर जवाबदेही फिक्स करने का कानून बनाती है तो उसका फायदा दोनों को मिलेगा.
क्या था पूर्व में विधानसभा के पटल पर रखे गए बिल में?
स्वास्थ्य मंत्री की MPA लागू करने की घोषणा के बाद ही जिस तरह से जनता की ओर से विरोध की आवाज उठने लगी है उससे यह तो तय है कि सरकार के लिए मरीजों के हितों को नजरअंदाज कर मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट लागू करना आसान नहीं होगा. इसका विरोध करने वाले लोगों का कहना है कि मेडिकल प्रोटेक्शन एक्ट तो सिर्फ नाम के लिए है. इसका मूल नाम हिंसा और संपत्ति नुकसान निवारण विधेयक है जो 2013, 17 और 19 के बाद अब 21 में लाने की तैयारी हो रही है. इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.