रांची: पुनदाग इलाके में रहने वाला 9 साल का शौर्य सिंह हंटर सिंड्रोम एमपीएस-2 नाम की बीमारी से ग्रसित है. बता दें कि ये बीमारी रेयरस्ट ऑफ द रेयर डिजीज में आती है, जिसके इलाज में सालाना दो से तीन करोड़ रुपए का खर्च आता है. शौर्य सिंह को ये बीमारी ढाई साल से है. शौर्य के पिता बच्चे के इलाज के लिए दर-दर भटक चुके हैं. केवल अमेरिका जैसे विकसित देश में इसकी दवाई उपलब्ध है. लेकिन इस दवाई की कीमत इतनी ज्यादा है कि किसी भी आम आदमी के लिए उसे खरीदना नामुमकिन है. इसके एक फाइल का दाम एक लाख 60 हज़ार बताया गयाल है और पूरे महीने के दवाई की बात करें, तो इसकी कीमत लगभग 20 लाख रुपए तक पहुंच जाती है. वहीं अगर पूरे साल की बात करें, तो कुल ढाई करोड़ रुपए का खर्च आएगा.
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पिता ने मदद के लिए झारखंड हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी जिसमें लिखा था कि क्या उनके बच्चे को जीने का अधिकार नहीं है? हाई कोर्ट में पिटीशन दायर करते हुए पिता ने ये मांग की कि आर्टिकल 21 के तहत उनके बच्चे को मेडिकल सुविधा मुहैया कराई जाए. इसपर हाईकोर्ट ने विचार करते हुए राज्य सरकार को निर्देश दिया की असाध्य रोग से ग्रसित शौर्य सिंह के इलाज में राज्य सरकार आर्थिक मदद करे.
पिता ने खटखटाया 'सुप्रीम' दरवाजा
कोर्ट के आदेश के बाद भी राज्य सरकार इलाज के खर्चे को देखते हुए पीछे हट गई. अब परेशान पिता ने सरकार से आर्थिक मदद मांगने के लिए हाई कोर्ट में कोर्ट की अवमानना का मामला दर्ज कराया, लेकिन उस पर भी कुछ विशेष कार्यवाही नहीं हो पाई. तब शौर्य के पिता सौरव सिंह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि आगामी 31 मार्च तक रेयर डिजीज से ग्रसित बच्चों के लिए भारत सरकार पॉलिसी बनाए जिसके तहत सभी बच्चों का इलाज हो सके. अपने बच्चे को बचाने के लिए सौरव सिंह के जज्बे और जुनून को देखकर देश के कई लोगों ने अपनी आवाज बुलंद की, जिनके बच्चे रेयर डिजीज से ग्रसित थे. अदालत ने सरकार को 19 अप्रैल को इस मामले में विस्तृत रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने इससे पहले जुलाई 2017 में नेशनल पॉलिसी फॉर ट्रीटमेंट ऑफ रेयर डिजीज जारी की थी लेकिन उसमें फंडिंग आदि की स्पष्टता नहीं थी. इसके बाद नवंबर 2018 में सरकार ने इस पर पुनर्विचार के लिए एक एक्सपर्ट कमेटी का गठन कर दिया था.