झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

रांची: सिवान और पटना से पैदल चलकर मांडर लौटे मंगरू और उमेश, मनरेगा बना दोनो का सहारा - झारखंड में प्रवासी मजदूरों को मनरेगा में मिला काम

लॉकडाउन के कारण उद्योग धंधे बंद रहने से लाखों लोग भुखमरी के कगार पर पहुंच गए. इस लॉकडाउन के दौरान दूसरे प्रदेशों में फंसे मजदूरों को वापस लौटने में भी काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. झारखंड के भी कई प्रवासी मजदूर काफी मशक्कत के बाद अपने घर वापस लौटे. मांडर प्रखंड के मंगरू और उमेश भी बिहार काम करने गया था, जो लॉकडाउन में फंस गया था. चार दिनों तक पैदल चलकर ये लोग घर पहुंचे. आज दोनों मनरेगा के तहत कुएं के निर्माण में लगे हैं, जिनसे ईटीवी भारत की टीम ने बातचीत की.

Mangroo and Umesh returned on foot from Bihar got work in MNREGA in ranchi
मनरेगा बना मजदूरों का सहारा

By

Published : Jun 4, 2020, 8:12 PM IST

रांची: लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा परेशानी मजदूरों को उठानी पड़ी. काम धंधा बंद होने पर मजदूरों को भुखमरी से जूझना पड़ा. इनमें झारखंड के भी कई प्रवासी मजदूर थे, जिन्हें घर लौटने के लिए कई तरह की मुसीबतों से टकराना पड़ा. हम बात कर रहे हैं रांची से 35 किलोमीटर दूर मांडर प्रखंड के मंगरू और उमेश की. ईंट भट्ठा में काम करने के लिए मंगरू अपनी पत्नी को छोड़कर सिवान जिला गए थे, लेकिन लॉकडाउन के कारण ईंट भट्टा बंद हो गया, जिसके बाद मंगरू को काफी परेशानी का सामना करना पड़ा.

देखें EXCLUSIVE रिपोर्ट

बिहार का सिवान जिला एक जमाने में शहाबुद्दीन के कारण चर्चा में हुआ करता था. लॉकडाउन के दौरान जब ईंट भट्ठा बंद हो गया और संचालक ने मंगरू को अनाज और पैसे देना बंद कर दिया, तब एक रात मंगरू ने पैदल लौटने की ठान ली और चल पड़ा अपने घर के लिए. 4 दिन तक दिन रात चलने के बाद मंगरू अपने घर पहुंचा. कुछ इसी तरह की कहानी है उमेश की. अपने मां-बाप को गांव में छोड़कर उमेश पटना में दिहाड़ी करने गया था. वहां जब मुसीबतों का सामना हुआ तो वह भी पैदल ही पटना से रांची के लिए चल पड़ा. उसे रांची पहुंचने में 3 दिन लगे. आज दोनों मनरेगा के तहत कुआ निर्माण कर रहे हैं. मांडर प्रखंड के बड़हरी पंचायत के जाहेर गांव में एक कुएं के निर्माण के दौरान दोनों से ईटीवी भारत की टीम ने बातचीत की. दोनों ने एक ही बात कही. अब काम करने परदेस नहीं जाएंगे.

कुएं का चल रहा निर्माण कार्य

आपको बता दें कि प्रवासी श्रमिकों को वापस लाने के लिए झारखंड सरकार ने पूरी गंभीरता दिखाई है, जिसका नतीजा है कि झारखंड देश का पहला राज्य बना जहां पहली श्रमिक स्पेशल ट्रेन पहुंची. झारखंड पहला राज्य बना जहां विशेष विमान से श्रमिकों को लाया गया. अब इन मजदूरों को रोजगार देने की कवायद चल रही है. ग्रामीण विकास विभाग की तरफ से नीलांबर-पितांबर जल समृद्धि योजना, बिरसा हरित ग्राम योजना और वीर शहीद पोटो हो खेल योजना की शुरुआत की गई, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इन योजनाओं के जरिए रोजगार मुहैया कराई जा सके. मनरेगा के तहत झारखंड में पिछले साल औसतन 45 कार्य दिवस की व्यवस्था हुई थी, जिसे अब 100 कार्य दिवस में तब्दील करने की कोशिश जारी है. मांडर प्रखंड के जिस पंचायत में कुएं का निर्माण हो रहा है वह जमीन सज्जाद अंसारी नामक शख्स की है. मनरेगा के तहत कोई भी अपनी जमीन पर कुआं या तालाब या वृक्षारोपण भी करा सकता है. यह काम 35 दिन पहले शुरू हुआ था और अब लगभग पूरा होने को है. कुआं के निर्माण में 16 मजदूर काम कर रहे हैं.

इसे भी पढ़ें:-केंद्र सरकार का किसानों को तोहफा, कृषि मंडियों को लाइसेंसराज से किया मुक्त

अनस्किल्ड मजदूरों के लिए काम की कोई कमी नहीं

मांडर के प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी गुंजन ने बताया कि पूरे प्रखंड में कई योजनाएं चिन्हित की गई हैं और उसके तहत जगह-जगह काम शुरू किए गए हैं. बड़हरी पंचायत के पूर्व मुखिया ने कहा कि अभी भी मजदूर लौट रहे हैं और सभी का जॉब कार्ड बनाया जा रहा है, ताकि उन्हें काम मिल सके. उन्होंने कहा कि प्रवासी मजदूरों में अनस्किल्ड मजदूरों के लिए काम की कोई कमी नहीं है, लेकिन स्किल्ड मजदूर मिट्टी की कटाई जैसे काम करना नहीं चाहते इसलिए उन्हें उनके कौशल के हिसाब से रोजगार के रास्ते तलाशे जा रहे हैं.

ABOUT THE AUTHOR

...view details