रांची:राजधानी के कांके स्थित संग्रामपुर में हर्षोल्लास के साथ मंडा पूजा (Manda Puja 2022) का आयोजन किया गया. लगभग 200 भोक्ताओं ने फूलखुंदी में भाग लेकर नंगे पांव दहकते अंगारों में चलकर भगवान के प्रति अपनी आस्था जताई. वहीं झूलन कार्यक्रम में दर्जनों लोगों ने भाग लेकर पुष्प वर्षा की. इसके बाद बंगाल से आये कलाकारों ने छऊ नृत्य पेश किया, जिसका आनंद लोगों ने रातभर उठाया. रात 8 बजे से रंगारंग नागपुरी सांस्कृतिक कार्यक्रम हुआ. स्थानीय कलाकार इग्नेश कुमार, नीतेश कच्छप, सुमन गुप्ता, कयूम अब्बास और आरती देवी ने नागपुरी कार्यक्रम प्रस्तुत कर लोगों को अपने मधुर गीतों पर झुमाया.
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झूलन कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जिला परिषद सदस्य किरण देवी, मुखिया सोमा उरांव, सरपंच अमर तिर्की, अशोक उरांव, योगेंद्र उरांव, मनीष उरांव थे. उन्होंने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि ऐतिहासिक मंडा पर्व हमारे पूर्वजों की देन है. भगवान शिव की उपासना कर मन्नत और अच्छी बारिश की कामना करते हैं, ताकि घर में सुख शांति बनी रहे. परिवार में खुशियां आए. पूजा के आयोजन में मंडा पूजा समिति के मुख्य संरक्षक मुन्ना उरांव, अध्यक्ष रोपना उरांव, उपाध्यक्ष मुटरु लोहरा, सचिव विनोद साहू, कोषाध्यक्ष दीनू उरांव, जोहान मुंडा, कैलाश मुंडा आदि ने सहयोग किया.
महामारी से बचने के लिए होती है शिव की अनोखी आराधना: मंडा पूजा के जरिए लोग महामारी से बचाने के लिए भगवान शिव की आराधना करते हैं. इसके तहत लोग नौ दिनों तक व्रत रखकर फूलकुंदी के दिन नंगे पांव आग पर चलकर भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं. उसके बाद दूसरा दिन झूलन होता है, जिसमें सैकड़ों श्रद्धालु तालाब से कलश भरकर शिव मंदिर में अर्पण करते हैं. इसके साथ ही झूलन के दौरान फूलों की बारिश होती है, जिसमें महिलाएं आंचल पसारकर मन्नतें मांगती हैं. शिव की इस कठिन साधना में लगे हजारों श्रद्धालु अच्छी बारिश और परिवार की सुख-शांति की कामना करते हैं. पूजा से पहले मुख्य भोक्ता कलश का जल छिड़कर सबकी शुद्धि करते हैं.
किसने की थी मंडा पूजा की शुरुआत:मंडा पूजा का इतिहास (History of Manda Puja) काफी प्राचीन है. मान्यताओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत नागवंशी राजाओं (Nagvanshi Kings) ने की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार मंडा पूजा सती की याद में की जाती है. मंडा पूजा करने वाले भक्त इसे माता सती का आशीर्वाद मानते हैं. श्रद्धालु शिव प्रसाद साहु के अनुसार यह मंडा पूजा की परंपरा लंबे समय से है, जिसे श्रद्धालु पूरी भक्ति भाव के साथ मनाते रहे हैं.