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Mahatma Gandhi Jayanti: रांची से बापू का गहरा नाता, 1917 में रखी थी छोटानागपुर खादी ग्राम उद्योग की नींव

झारखंड से महात्मा गांधी का जुड़ाव रहा (mahatma gandhi relation with Jharkhand) है. स्वाधीनता संग्राम के दौरान 1917 से 1940 के बीच बापू का कई बार झारखंड आना हुआ था. यहां के आचरण और यहां की आदिवासी परंपरा से भी वो खासे प्रभावित थे. शहरों में ही नहीं कस्बों और गांवों में जाकर आम लोगों और आदिवासियों से भी मुलाकात करते थे.

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Published : Oct 2, 2022, 10:00 AM IST

Updated : Oct 2, 2022, 10:36 AM IST

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रांचीः पूरी दुनिया में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती मनाई जा रही है. झारखंड में भी बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए कई कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है. छोटानागपुर की धरती से महात्मा गांधी का खास लगाव रहा है. स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कई बार महात्मा गांधी का झारखंड आगमन (Mahatma Gandhi visited Jharkhand) हुआ. साल 1917 में महात्मा गांधी रांची के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान की नींव रखी (Bapu visited Ranchi in 1917) थी. इसके अलावा आखिरी बार वो 1940 में रामगढ़ अधिवेशन के लिए रांची से रामगढ़ तक का कार से सफर किया था.

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2 अक्टूबर को पूरा देश राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती (Mahatma Gandhi Jayanti) मना रहा है. महात्मा गांधी रांची के जगन्नाथपुर स्थित छोटानागपुर खादी ग्रामोद्योग संस्थान में दो बार आ चुके हैं. छोटानागपुर खादी ग्राम उद्योग की स्थापना वर्ष 1928 में देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने किया था. लेकिन इस संस्थान की नींव वर्ष 1917 में देश के राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने रखी (Khadi Gramodyog significance regaridng Bapu) थी. इसके अलावा 1940 में रामगढ़ अधिवेशन के वक्त भी बापू इस संस्थान में आकर लोगों से मुलाकात की थी. गांधीजी ने जिस स्वाबलंबी समाज की परिकल्पना की थी उस समाज को आगे बढ़ाने के लिए आज भी यह संस्थान प्रयासरत है. रांची का खादी ग्राम उद्योग संस्थान बापू की यादों को आज भी संजोए हुए है. महात्मा गांधी के पावन चरण इस संस्थान में दो बार पड़े हैं. उनके विचारों से आज में यहां के लोग प्रभावित हैं, उनके बताए रास्तों पर लोग आज भी चल रहे हैं.

देखें स्पेशल रिपोर्ट

छोटानागपुर खादी ग्रामद्योग संस्थान के संचालक अभय चौधरी बताते हैं कि इस संस्थान के सभी कर्मचारी आज भी गांधीजी के भजनों के साथ दिन की शुरुआत करते हैं. महासचिव बताती हैं कि महात्मा गांधी के पथ पर चलने के लिए विश्व को प्रेरित किया जाता है. लेकिन राजधानी के इस संस्थान में काम करने वाले लोग आज भी गांधीजी के सिद्धांतों पर चलते हैं. गांधीजी की अहिंसावादी सोच और खादी को बढ़ावा देने के लिए यह संस्थान लगातार प्रयासरत है. इस संस्थान में कर्मचारी खुद से सूत कातकर खादी के कपड़े बनाते हैं है. इसके अलावा पारंपरिक तरीके से जैसे, कोल्हू से निकाले हुए तेल, लकड़ी के सामान, साबुन और खाने की कई वस्तुएं बनाई जाती हैं. यह सभी सामान संस्थान के कारीगर अपने हाथों से बनाते हैं.

संस्थान की महासचिव बताती हैं कि आधुनिकता की इस दौड़ में खादी कहीं ना कहीं पिछड़ती जा रही है. इसके अलावा भी सरकार की ओर से इस ओर ध्यान ना देने की वजह से संस्थान की स्थिति जर्जर होती जा रही है. उन्होंने बताया कि आज भी संस्थान में तीन सौ से चार सौ लोग काम करते हैं, जिन्हें संस्थान के द्वारा वेतन दिया जाता है. लेकिन अभी भी कई ऐसे लोग हैं जो वर्षों से इस संस्थान के लिए काम कर रहे हैं लेकिन उन्हें उनका अपना हक नहीं मिल पा रहा है.


संस्थान की सचिव भावना चौधरी बताती हैं कि इस संस्थान का करोड़ों रुपया राज्य सरकार और केंद्र सरकार के पास बकाया है. जिसमें बिहार सरकार, झारखंड सरकार और केंद्र सरकार अगर अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए इस संस्थान के बकाया राशि का भुगतान कर दे तो यह संस्थान फिर से अपने पुराने दिन में लौट आएगा और यहां काम करने वाले कर्मचारियों के दिन बहुरेंगे.


संस्थान में काम कर रही कर्मचारी बताती हैं कि वो बापू की सोच और खादी को बढ़ावा देने के लिए इस संस्थान में वर्षों से काम कर रही हैं. लेकिन अभी भी संस्थान का पूर्ण विकास नहीं हुआ है. उन्होंने सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि गांधीजी की इस धरोहर पर ध्यान दें ताकि आने वाले पीढ़ी भी गांधीजी के सिद्धांतों पर चल सके. संस्थान के संचालक अभय चौधरी बताते हैं कि वर्षों से इस संस्थान में 2 अक्टूबर को बड़े-बड़े गणमान्य आते हैं और विकास का आश्वासन देकर चले जाते हैं.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस आश्रम के विकास के लिए कार्य शुरू कर दिया है. उन्होंने आश्वस्त किया है कि जल्द ही इस संस्थान में खादी पार्क बनाया जाएगा. जिससे गांधीजी के सपने को झारखंड में उड़ान मिल सके. सरकार और समाज की उदासीनता के कारण रांची के खादी ग्राम उद्योग को विकसित होने का मौका नहीं मिल रहा है. फिर भी ये संस्थान और यहां के लोग गांधीजी के सपनों को साकार करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं. लेकिन धूमिल हो रही इस धरोहर को सरकारी सहारा मिल जाए तो बापू के देखे गए सपनों को नया आयाम जरूर मिलेगा.

Last Updated : Oct 2, 2022, 10:36 AM IST

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