रांची: दुर्गा पूजा से ठीक एक दिन पहले महालया मनाया जाता है. हर साल कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन अमावस्या को महालया मनाया जाता है. हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन देवी दुर्गा बुराई का नाश करने के लिए धरती पर आती हैं. पंडित मृत्युंजय कुमार पांडे के अनुसार, इस साल महालया (Mahalaya 2022) 25 सितंबर को ब्रम्ह मुहूर्त में है.
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महालया 2022 का मुहूर्त: इस साल 25 सितंबर की सुबह 3:12 बजे आश्विन अमावस्या लग रहा है और 26 सितंबर की सुबह 03:23 बजे समाप्त हो जाएगा. ऐसे में महालया 25 सितंबर को है. मालूम हो कि पितृपक्ष और देवी पक्ष के शुरुआत के मिलन समय को सबसे शुभ मानते हुए महालया मनाया जाता है. मान्यता है कि महालया के दौरान मां दुर्गा सहित अन्य देवताओं का आगमन धरती पर होता है. नौ दिनों तक मां की आराधना, महालया के बाद प्रारंभ होता है. पितृपक्ष के अंतिम दिन मृतक के परिवार के सदस्य तर्पण करते हैं. यह एक ऐसा अनुष्ठान है, जिसमें पूर्वजों को प्रसाद दिया जाता है.
खास तौर पर मनाया जाता है रांची में महालया:वैसे तो महालया पश्चिम बंगाल में खास तौर पर मनाया जाता है लेकिन, झारखंड में भी इसकी धूम रहती है. बंगाली समुदाय के लोग खास तौर पर इसे मनाते हैं. देवी दुर्गा का धरती पर स्वागत करने के लिए लोग सुबह जल्दी उठ जाते हैं और अपने घरों में ही सभी जरूरी तैयारियां कर लेते हैं. रांची दुर्गाबाड़ी में इस बार पारंपरिक रूप से महालय के अवसर पर महिषासुर मर्दिनी के मंचन (Mahishasura mardini story stage play) की तैयारी की गई है. 25 सितंबर को शाम 6 बजे कार्यक्रम आयोजित होगा. इस कार्यक्रम को लेकर कलाकारों में जबर्दस्त उत्साह है. फायनल प्रैक्टिस में जुटे कलाकारों का मानना है कि कोरोना के कारण दो साल से यह फीका था मगर इस बार दुगनी उत्साह के साथ मां की आराधना होगी.
क्या है महालया का महत्व: महालया, पितृपक्ष और मातृपक्ष यानी देवी पक्ष के मिलन को कहा जाता है जो आध्यात्मिक दृष्टि से काफी महत्व रखता है. यह दिन न केवल पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के लिए मनाया जाता है, बल्कि इसे सत्य, साहस के विजय के रूप में भी मनाया जाता है. दरअसल, हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भैंस दानव, भगवान ब्रह्मा ने महिषासुर को अजेयता का वरदान दिया था. जिसका अर्थ है कि कोई भी मनुष्य या भगवान उसे मार नहीं सकता है लेकिन, महिषासुर ने इस वरदान का दुरुपयोग किया और ब्रह्मांड में तबाही मचानी शुरू कर दी. इस विनाश को समाप्त करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की. इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया. महिषासुर के नाश के लिए देवी दुर्गा का आह्वाहन महालया के दिन ही किया गया था. इसके बाद दोनों का युद्ध चला और दशमी के दिन देवी दुर्गा ने राक्षस महिषासुर का अंत कर दिया. इसलिए नवरात्रि की शुरुआत महालया से होती है, इस दिन श्रद्धालु मां दुर्गा को अपने घर लाते हैं और इसके 10 दिन बाद विजयादशमी मनाया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.