रांची: दीपावली के साथ राज्यभर में लोगों ने धूमधाम से काली पूजा भी मनाई. इस मौके पर जहां श्रद्धालुओं ने जहां भगवान गणेश और मां लक्ष्मी की पूजा अर्चना की, वहीं देर रात मां काली की पूजा कर सुख समृद्धि की कामना की (Maa Kali worshiped in Ranchi). इस दौरान देर रात कर पूजा पंडालों में श्रद्धालुओं की भीड़ दिखी.
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देश के अन्य राज्यों की तरह झारखंड में भी काली पूजा बड़े ही धूमधाम से मनाया गया. प.बंगाल के बाद झारखंड ही एक ऐसा राज्य है जहां बड़े पैमाने पर काली पूजा होती है. राजधानी रांची में हरमू मैदान, कडरू कपिलदेव स्कूल मैदान, अशोक नगर, किशोरगंज चौक, लालपुर क्लब, डोरंडा सहित कई स्थानों पर मां काली की पूजा देर रात हुई. कडरु स्थित कपिलदेव स्कूल मैदान में आकर्षक ढंग से बने मां काली की पूजा पंडाल में बड़ी संख्या में श्रद्धालु देर रात तक जुटे रहे. बंग्ला पद्धति से पूरे विधि विधान से यहां भक्त मां की आराधना करते दिखे.
इस दिन मेनरोड स्थित काली मंदिर में तांत्रिक विधि से पूजा करने की परंपरा है. कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को निशा रात्रि में मां काली का आवाहन और विसर्जन किया जाता है. रातभर होनेवाले इस पूजा के दौरान मान्यता यह है कि जो भी श्रद्धालु इसमें शामिल होते हैं उन्हें मनोवांछित फल मिलता है. तंत्र विद्या से जुड़े लोग काली पूजा के दौरान विशेष साधना कर सिद्धि प्राप्त करते हैं.
काली पूजा की ये है मान्यता:वैसे तो सनातन धर्म में सभी देवी देवताओं का आराधना करने का खास महत्व है. मगर मां काली की पूजा अन्य देवी देवताओं से अलग ही महत्व रखता है. पौराणिक कथाओं में मां काली की पूजा का विशेष महत्व है. मान्यता यह है कि मां काली ने चंड-मुंड और शुंभ-निशुंभ नाम के दैत्यों के अत्याचार से मुक्ति के लिए मां अंबे ने चंडी का रूप धारण कर इन राक्षसों को मार गिराया. उनमें से एक रक्तबीज नाम का राक्षस भी था, जिसके शरीर का एक भी बूंद जमीन पर पड़ने से उसी का एक दूसरा रूप पैदा हो जाता.
रक्तबीज का अंत करने के लिए मां काली ने उसे मार कर उसके रक्त का पान कर लिया और रक्तबीज का अंत हो गया. राक्षसों का अंत करने के बाद भी देवी का क्रोध शांत नहीं हुआ, तब सृष्टि के सभी लोग घबरा गए कि यदि मां का क्रोध शांत नहीं हुआ तो दुनिया खत्म हो जाएगी. ऐसे में भगवान शिव, देवी को शांत करने के लिए जमीन पर लेट गए और माता का पैर जैसे ही शिव जी पर पड़ा उनकी जीभ बाहर निकल आई और वे बिल्कुल शांत हो गई. तब से काली पूजा की परंपरा शुरू हो गई, भक्त आज भी मां को उसी रूप में पूजते हैं. उनकी प्रतिमाओं में मां काली की जीभ बाहर की ओर निकली दिखती है.