रांची: बीमारी शब्द ही ऐसी है जो सिर्फ परेशानी लेकर आती है. चाहे वह एक मामूली बुखार ही क्यों न हो. अब जरा सोचिए कि जिस घर में कैंसर जैसी बीमारी दस्तक देती होगी, उनपर क्या बीतती होगी. ऊपर से जब यह पता चले कि फाइनल स्टेज का कैंसर है, तब क्या होता होगा. इस दर्द को वही समझ सकता है जो इससे जूझ रहा है. यह बीमारी आई नहीं कि मरीज के साथ-साथ पूरा परिवार बिखर जाता है. इलाज कराने में संपत्ति बिक जाती है. पहले स्टेज पर तो फिर भी उम्मीद की किरण बनी रहती है, लेकिन फाइनल स्टेज पर सिर्फ अंधेरा दिखता है.
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सीएम ने कैंसर को अधिसूचित रोग की श्रेणी में डालने का फैसला लियाः लंग कैंसर के फाइनल स्टेज से गुजर रहे झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश उम्मीद का दीपक जला रहे हैं. उन्होंने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को थैंक्यू कहा है. इसलिए धन्यवाद दिया क्योंकि उन्हीं के सलाह पर सीएम हेमंत सोरेन ने झारखंड में कैंसर को NOTIFIABLE DISEASE यानी अधिसूचित रोग की श्रेणी में डालने का फैसला लिया है. कायदे से यह काम केंद्र सरकार को करना चाहिए था. इसके लिए उन्होंने पीएम को चिट्ठी भी लिखी थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ. अब रवि प्रकाश का सिर्फ एक मकसद है, लोगों को जागरूक करना और मरीजों को हिम्मत बंधाना.
कभी तंबाकू को छुआ नहीं, फिर भी हो गया कैंसरःजीवन में कभी सिगरेट को छुआ तक नहीं. फिर भी कमबख्त कैंसर उनके फेफड़े में जा बैठा. फाइनल स्टेज के लंग कैंसर को हर दिन हरा रहे हैं. यह जंग जनवरी 2021 से जारी है. जब कैंसर डिटेक्ट हुआ तो टीएमएच मुंबई के एक डॉक्टर ने कहा कि आपके पास ज्यादा से ज्यादा 18 महीने हैं. जब इलाज के खर्च की बात कि तो रवि प्रकाश ने सबसे सस्ते इलाज को चुना. फर्क इतना भर था कि ज्यादा पैसे वाले इलाज से दर्द थोड़ा कम होता. जिसको वहन करने की क्षमता ही नहीं थी. इलाज के साथ चेहरा काला पड़ गया है, लेकिन क्या मजाल कि यह बीमारी उनकी मुस्कान छीन ले.
12 राज्यों ने कैंसर को अधिसूचित रोग की श्रेणी में रखा हैःवरिष्ठ पत्रकार रवि प्रकाश ने बताया कि देश के महज 11 या 12 राज्यों ने इस बीमारी को NOTIFIABLE DISEASE घोषित कर रखा है. इसमें अब झारखंड का नाम भी जुड़ गया है. कैबिनेट में इस प्रस्ताव पर मुहर लगते ही अब राज्य के हर अस्पताल प्रबंधन को कैंसर मरीजों की सारी जानकारी संबंधित जिला के सिविल सर्जन को देनी होगी. इससे बहुत जल्द पता चल जाएगा कि झारखंड में कितने लोग कैंसर से जूझ रहे हैं. कौन किस स्टेज पर है. कौन किस तरह के कैंसर से ग्रसित है. उन परिवारों की आर्थिक स्थिति कैसी है. इन आंकड़ों की बुनियाद पर सरकार अपने लोगों के लिए योजनाएं चला सकती है. राहत पहुंचा सकती है. उन्होंने बताया कि भारत में पिछले 22 वर्षों में करीब सवा करोड़ लोग इस बीमारी की वजह से जान गंवा चुके हैं. पिछले तीन साल में करीब 23 लाख लोगों को यह लील चुका है.