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EXCLUSIVE: गांवों में पटरी पर लौटने लगी जिंदगी, मनरेगा का काम शुरू - ranchi news in hindi

लॉकडाउन 2.0 में 20 अप्रैल से रांची के कुछ सेक्टरों में शर्तों के साथ काम की छूट दी गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को मजदूरी दिलाने का सबसे बड़ा जरिया मनरेगा को माना जाता है जो छूट के दायरे में है. पहले मनरेगा मजदूरों को प्रतिदिन काम के बदले 171 रुपया मिलता था जो अब बढ़कर 194 रुपये हो गया है.

गांवों में पटरी पर लौटने लगी जिंदगी
Life returned to track on villages of Ranchi

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Published : Apr 22, 2020, 8:44 PM IST

रांची: कोरोना वायरस ने जिंदगी की रफ्तार पर ब्रेक लगा रखी है जो है, वहीं फंसा हुआ है. इस बीच जान के साथ जहान को बचाने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाने शुरू कर दिए गए हैं. इसका असर भी दिखने लगा है. लॉकडाउन 2.0 में 20 अप्रैल से कुछ सेक्टरों में शर्तों के साथ छूट दी गई है.

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कोरोना की हार तय

ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को मजदूरी दिलाने का सबसे बड़ा जरिया मनरेगा को माना जाता है जो छूट के दायरे में है. लिहाजा इसकी पड़ताल करने के लिए ईटीवी भारत की टीम कांके प्रखंड के पिठोरिया पंचायत पहुंची. यह मनरेगा के तहत एक कुएं की खुदाई में जुटे मजदूरों को देखकर लगा जैसे अब कोरोना की हार तय है. कुएं की खुदाई में महिला और पुरुष समेत कुल 9 मजदूर जुटे हुए थे.

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मजदूरों को दी जाएगी तय राशि

एक महिला मजदूर ने ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान बताया कि काम बंद हो जाने से बहुत दिक्कत हो रही थी. 20 अप्रैल से काम मिलने से अब बहुत बड़ी राहत मिली है. महिला मजदूर ने बताया कि वह सब्जी की खेती भी करती है, लेकिन सब्जी लेने वाला कोई नहीं है. इसकी वजह से बच्चों के लिए जरूरी सामान खरीदना मुश्किल हो गया था. वही, रोजगार सेवक ने बताया कि 20 अप्रैल से कई जगहों पर काम शुरू किया गया गया है और 6 दिन के बाद सभी मजदूरों को तय राशि दे दी जाएगी.

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मनरेगा मजदूरों को कितना मिलता है मेहनताना

झारखंड में अप्रैल से पहले मनरेगा मजदूरों को प्रतिदिन काम के बदले 171 रुपया मिलता था जो अब बढ़कर 194 रु हो गया है. मनरेगा के तहत कुआं, तालाब, ग्रामीण सड़क निर्माण और मिट्टी खुदाई जैसे काम कराए जाते हैं. इसमें गांव के स्थानीय लोगों को ही काम दिया जाता है. मनरेगा का काम शुरू होने से गांव के मजदूर बेहद खुश हैं, लेकिन उन्हें इस बात की तकलीफ है कि जो न्यूनतम मजदूरी तय है उससे भी कम मजदूरी मनरेगा के काम में मिलती है. अच्छी बात यह है कि मनरेगा के तहत जो भी काम होता है उसे मजदूरों की सुविधा को देखते हुए कड़ी धूप निकलने से पहले कुछ घंटे कराया जाता है और शेष काम दोपहर के बाद होता है.

मजदूरों का रुझान हो रहा है कम

मनरेगा मजदूरों का कार्य दिवस 6 घंटे का होता है. झारखंड में 25 लाख से ज्यादा मनरेगा मजदूर हैं, लेकिन साल दर साल मनरेगा के तहत कार्य के प्रति मजदूरों का रुझान कम हो रहा है क्योंकि उन्हें उचित मजदूरी नहीं मिलती है, लेकिन लॉकडाउन के कारण रोजगार के संकट उत्पन्न होने से गांव के लोग अब मनरेगा के तहत जुड़ने लगे हैं. हालांकि अभी सोशल डिस्टेंसिंग को सुनिश्चित कराते हुए प्रखंडवार कुछ-कुछ जगहों पर मनरेगा का काम शुरू कराया गया है.

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