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रांचीः BAU में 'सेरीकल्चर एक संभावित एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल' विषय पर व्याख्यान का आयोजन - सेरीकल्चर एक संभावित एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल विषय पर व्याख्यान

रांची के बीएयू में 'सेरीकल्चर एक संभावित एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल' पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. जहां बताया गया कि कृषि वानिकी में रेशम कीट पालन बेहतर आय का माध्यम हो सकता है. वहीं आयोजन की अध्यक्षता कुलपति डॉ. ओएन सिंह ने की.

lectures on sericulture is a potential agroforestry model held at bau in ranchi
सेरीकल्चर एक संभावित एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल विषय पर व्याख्यान

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Published : Feb 14, 2021, 7:15 AM IST

रांची:बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि सभागार में 'सेरीकल्चर एक संभावित एग्रोफोरेस्ट्री मॉडल' विषय पर व्याख्यान का आयोजन किया गया. टेक्सटाइल मंत्रालय, भारत सरकार अधीन कार्यरत सेंट्रल सिल्क बोर्ड, बेंगलुरु के सदस्य सचिव रजीत रंजन ओखंडियार व्याख्यान के मुख्य वक्ता रहे. उन्होंने सेरीकल्चर यानि रेशम कीट पालन को कृषि पर आधारित कुटीर उद्योग बताया. कृषि कार्य और अन्य घरेलू कार्यों के साथ-साथ इस उद्यम को अपनाकर ग्रामीण क्षेत्रों में कम लागत से शीघ्र उत्पादन की तरफ से बेहतर आय प्राप्त करने की बात कही है. बताया कि वैश्विक स्तर पर जंगल विकास की निशानी है.


कच्चे रेशम का उत्पादन
भारतीय उपमहाद्वीप का 22 प्रतिशत भूभाग जंगलों से आच्छादित है. अन्य देशों की अपेक्षा उपमहाद्वीप के जंगलों की जैव विविधता बेहतर स्थिति में है. कच्चे रेशम का उत्पादन रेशम कीट पालन से किया जाता है. इसकी प्रमुख गतिविधियों में पौधों की खेती है, जो रेशम के कीट को ग्रहण करती है. कृषि वानिकी प्रणाली में शहतूत, गूलर, पलाश और अर्जुन आदि पौधों को लगाकर सफलता से रेशम कीट का पालन किया जा सकता है. कहा कि पांच किस्मों के रेशम में मलबरी, तसर, ओक तसर, एरि और मुगा सिल्क का उत्पादन करने वाला भारत अकेला देश है. विश्व में चीन के बाद कच्‍चे सिल्क का भारत दूसरा प्रमुख उत्पादक देश है. जबकि भारत रेशम का सबसे बड़ा उपभोक्ता है. देश में चीन से बड़ी मात्रा में मलबरी कच्‍चे सिल्क और रेशमी वस्त्रों का आयात किया जाता है.


तसर सिल्क उत्पादन
वर्ष 2017 में देश में इसका 30 मिलियन टन उत्पादन हुआ था, जो वैश्विक उत्पादन का करीब 16 फीसदी है. तसर सिल्क उत्पादन के मामले में झारखंड का देश में अग्रणी स्थान है. प्रदेश में हल्दी, अदरख, अर्जुन, गेहूं, धान के साथ, रोड, नहर किनारे पौधों को लगाकर आसानी से रेशम कीट का पालन किया जा सकता है. एक हेक्टेयर क्षेत्र में न्यूनतम 80 पौधों को लगाकर 45 दिनों के बाद और वर्ष में 3 से 4 बार कच्चे रेशम को प्राप्त की जा सकती है. इस उद्यम को कृषि वानिकी मॉडल में क्लस्टर में सामुहिक गतिविधियों में शामिल कर एक एकड़ से डेढ़ से दो लाख आमदनी प्राप्त की जा सकती है. उन्होंने इस दिशा में विस्तार गतिविधियों और प्रक्षेत्र प्रदर्शन को बढ़ावा देने के साथ बाजार प्रबंधन और किस्मों के बचाव की आवश्यकता जताई.


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ये लोग रहे मौजूद
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुलपति डॉ. ओएन सिंह ने कृषि विज्ञान केन्द्रों के माध्यम से विस्तार गतिविधियों को बढ़ावा, प्रक्षेत्र प्रदर्शन व छात्रों के शोध कार्य में सहभागिता और सहयोग देने की बात कही. स्वागत भाषण डीन एग्रीकल्चर डॉ. एमएस यादव ने किया. संचालन शशि सिंह और धन्यवाद ज्ञापन डॉ. निभा बाड़ा दी. मौके पर विवि के डीन, डायरेक्टर, प्रोफेसर, साइंटिस्ट, स्टूडेंट्स सहित तसर अनुसंधान संस्थान, नगड़ी, रांची के संकाय सदस्य भी मौजूद रहे.

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