रांची: मथुरा और अवध की होली तो सदियों से मशहूर रही है. समय के साथ होली खेलने का तौर तरीका बदलता रहा है. बॉलीवुड ने इसपर फैशन का तड़का लगाया तो बनारस की गलियों में फुहड़ता और गालियां होली के रंग में सराबोर होती रहीं हैं. केमिकल कलर से लोग हाय तौबा कर चुके हैं. हर्बल कलर पर भी हर्बल गुलाल हावी हो गया है. अब तो ऑर्गेनिक गुलाल उड़ाए जा रहे हैं. लेकिन इन सबसे इतर बिहार में होली को एक नया रूप दिया राजनीति के धुरंधर लालू प्रसाद यादव ने.
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बिहार के मुख्यमंत्री रहते इन्होंने कुर्ताफाड़ होली का ऐसा चलन शुरू किया, जो राजनीति का एक हिस्सा बन गया. लालू की कुर्ताफाड़ होली से पता चल जाता था कि बिहार की राजनीति में किसका कितना रसूख है. लेकिन अब वो बात कहां. पिछले पांच साल से खुद लालू यादव को रंग नसीब नहीं हो पा रहा है. जनाब जेल में हैं. चारा घोटाला के पांचवें मामले में सजा काट रहे हैं. फिलहाल, खराब सेहत की वजह से रिम्स अस्पताल के पेइंग वार्ड में भर्ती हैं. किडनी भी ठीक से फंक्शन नहीं कर रहा है. दवा और परहेज के बीच वक्त काट रहे हैं.
लालू यादव के लिए लगातार पांचवा साल ऐसा होगा, जब वह होली के दिन अपनों से दूर रहेंगे. उनकी कुर्ताफाड़ होली को बिहार के लोग मिस कर रहे हैं. राजनीतिक के जानकार बताते हैं कि लालू के कुर्ताफाड़ होली के पीछे भी एक मकसद छिपा होता था. गरीबों और पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले लालू यादव अपनी कुर्ताफाड़ होली के जरिए ऊंच-नीच और बड़े-छोटे का भेद खत्म कर दिया करते थे. आम लोगों की तरह झूमते थे. झाल और ढोल बजाते थे. फाग गाते थे. अंत में जोगीरा सा रा रा रा करते करते कहते थे कि " जा लोग, नहा लोग, अब सांझी के अइहअ" .
पिछले माह ही डोरंडा कोषागार से अवैध निकासी मामले में उन्हें सीबीआई की विशेष अदालत से पांच साल की सजा मिली है. हालाकि चाईबासा कोषागार से जुड़े दो मामलों के अलावा देवघर और दुमका कोषागार मामले में उन्हें पहले ही जमानत मिल चुकी है. वह अधिकतम अवधि की आधी सजा काट चुके हैं. पांचवे मामले में उनकी जमानत याचिका पर 1 अप्रैल को सुनवाई होनी है. लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है. लालू यादव के लिए इस बार बेरंग रही होली.