रांची: राजधानी रांची के लालपुर और धुर्वा क्षेत्र में लगने वाले पोतला बाजार का नाम सुनते ही लोग इस बाजार का रूख करते हैं. सर्दियों में शिद्दत के साथ रांची के लोग इस बाजार का इंतजार करते हैं. क्योंकि इस बाजार में लोगों को अच्छे सामान कम कीमत पर मिल जाती है. इसके अलावा भी इस मार्केट की कई और खासियत है.
दरअसल पोताला बाजार तिब्बत से आए शरणार्थियों के द्वारा लगाया जाता है. यहां पर सामान बेचने वाले सभी दुकानदार वैसे हैं जो तिब्बत के मूल निवासी हैं. ये भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. तिब्बत से आए दुकानदार और पोतला बाजार के अध्यक्ष तेनजिन लहुनडूप बताते हैं कि वर्ष 1973 से रांची में वे लोग बाजार लगा रहे हैं. शुरुआत के समय में यह बाजार सदर अस्पताल के पास लगाया जाता था. उसके बाद जिला प्रशासन ने जयपाल सिंह स्टेडियम में बाजार लगाने की अनुमति दी लेकिन अब यह बाजार लालपुर में लगाया जाता है.
तेनजिन लहुनडूप ने बताया कि इस व्यापार में तिब्बत से आए कई शरणार्थी जुड़े हैं. वर्ष 1959 में जब चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया तब उनके पूर्वजों ने भारत में शरण लिया और तब से वह भारत में शरणार्थी के रूप में रह रहे हैं. भारत में आने के बाद अपने जीवन यापन के लिए उन्होंने इस व्यापार की शुरुआत की जिसमें धीरे-धीरे तिब्बत से आए सभी शरणार्थी जुड़ते चले गए.
रांची में लगने वाले इस बाजार में हिमाचल प्रदेश, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, कर्नाटक में बसे सभी तिब्बती लोग एकजुट होते हैं. ये सभी 3 महीने तक रांची में रहकर अपना व्यापार करते हैं. पिछले कई दशक से रांची में पोताला बाजार के नाम से अपनी दुकान लगा रहे हैं. तिब्बती दुकानदार फूंटसोक डोलमा बताती हैं कि उनके जीवन के लिए यह व्यापार सबसे महत्वपूर्ण है.
हाथों से बुने हुए कपड़े होते हैं खासः फूंटसोक डोलमा बताती हैं कि उनका पूरा समुदाय इस व्यापार से जुड़ा रहता है और अपने घरों में भी कई तरह के प्रोडक्ट बनाते हैं. उन्होंने बताया कि भारत में शरण लेने के बाद उन लोगों ने इस व्यवापर को अपने जीवन यापन का साधन बनाया. इसलिए साल के 9 महीने देश के विभिन्न क्षेत्रों में जाकर सामान इकट्ठा करते हैं और फिर उसके बाद उसे अपने कारखाने या घरों में डिजाइनदार कपड़े का रूप देते हैं, जो लोगों को खासा आकर्षित करता है. जब डिजाइनदार कपड़े बुनकर तैयार हो जाते हैं तो उन कपड़ों को व्यापारी देश के विभिन्न राज्यों में जाकर साल के 3 महीने बेचने के लिए जाते हैं. इससे हुए मुनाफे से अपने जीवन यापन करते हैं.