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झारखंड आंदोलन से राज्य की सत्ता तक का सफर, फिर से वही करने की कोशिश, जानिए कैसा रहा आजसू का राजनीतिक इतिहास

झारखंड आंदोलन से निकली आजसू पार्टी हमेशा सत्ता के करीब रही है. चाहे पार्टी कितनी भी सीटें जीत ले, पार्टी सरकार में शामिल हो जाती है. पहली बार एनडीए से अलग होकर 2019 विधानसभा चुनाव लड़ने के बाद आजसू सत्ता से दूर रही. जानिए कैसा रहा आजसू पार्टी का राजनीतिक इतिहास. Political history of AJSU Party.

Political history of AJSU Party.
Political history of AJSU Party.

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Sep 30, 2023, 8:33 PM IST

आजसू के केंद्रीय महाधिवेशन में वक्ताओं ने रखे विचार

रांची:झारखंड आंदोलन से निकली आजसू पार्टी की स्थापना 22 जून 1986 को सोनारी, जमशेदपुर में हुई थी. युवा शक्ति को राजनीति की धारा में लाने वाली आजसू पार्टी हमेशा राज्य की सत्ता के करीब रही है. आजसू का बीजेपी के साथ दोस्ताना रिश्ता रहा है, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में इसमें खटास आ गई. इसका खामियाजा दोनों पार्टियों को भुगतना पड़ा. 15 नवंबर 2000 को राज्य के गठन के बाद 2005 में पहली बार झारखंड में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें आजसू ने दो सीटें जीतीं.

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इसके बावजूद आजसू न सिर्फ अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार में शामिल हुई, बल्कि आजसू प्रमुख सुदेश महतो गृह मंत्री जैसा पद पाने में सफल रहे. इतना ही नहीं, एक और विधायक चंद्रप्रकाश चौधरी भी अर्जुन मुंडा कैबिनेट में जगह बनाने में सफल रहे. 2009 के विधानसभा चुनाव में आजसू ने लंबी छलांग लगाई और पांच विधायकों के साथ विधानसभा पहुंची. इसी सत्र में आजसू ने हटिया विधानसभा उपचुनाव भी जीता. इस तरह इसकी संख्या 06 हो गई.

29 दिसंबर 2009 को आजसू प्रमुख ने झारखंड के उपमुख्यमंत्री का पद संभाला. 2014 के विधानसभा चुनाव में एक बार फिर आजसू पार्टी के पांच उम्मीदवार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे. चंद्र प्रकाश चौधरी रघुवर दास सरकार में कैबिनेट मंत्री बने. विधानसभा के बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में एनडीए के बैनर तले आजसू लोकसभा में अपनी जगह बनाने में सफल रही और पार्टी नेता चंद्र प्रकाश चौधरी गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित होकर पार्टी के पहले सांसद बने.

2019 में एनडीए से अलग हो गई आजसू: लेकिन, 2019 के विधानसभा चुनाव आते-आते एनडीए में आई दरार के कारण बीजेपी और आजसू अलग-अलग चुनाव लड़ने के लिए मैदान में उतर गये. इस चुनाव में आजसू ने 81 में से 53 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे. जिसमें आजसू को 8.10 फीसदी वोट मिले, जो 2014 चुनाव से 4 फीसदी ज्यादा माने जा रहे हैं. इस चुनाव में आजसू ने दो सीटें जीतीं. 2019 की गलतियों से सीख लेते हुए एक बार फिर एनडीए रामगढ़ उपचुनाव में एकजुट हुई और आजसू यह सीट जीतने में सफल रही. फिलहाल पार्टी के तीन विधायक और एक लोकसभा सांसद हैं.

सातवां केंद्रीय महाधिवेशन तय करेगा भविष्य की राह:आजसू का सातवां केंद्रीय महाधिवेशन रांची के मोरहाबादी में चल रहा है. इस तीन दिवसीय महाधिवेशन के दूसरे दिन भी विभिन्न विषयों पर चर्चा जारी रही. सत्र की शुरुआत आजसू प्रमुख सुदेश महतो के संबोधन से हुई. जिसमें उन्होंने कहा कि खतियान आधारित स्थानीय नीति सिर्फ झारखंड के मूलवासियों और आदिवासियों का मांग पत्र नहीं है. ये हमारे पूर्वजों का सपना है, जिसके लिए झारखंड की धरती ने बहुत बलिदान दिया है. हम इसके लिए कानूनी ढांचे के भीतर ईमानदारी से तब तक लड़ते रहेंगे जब तक हम इसे हासिल नहीं कर लेते. वर्तमान सरकार राज्य के मूलवासियों खासकर दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के साथ साजिश कर धोखा दे रही है.

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कई विषयों पर वक्ताओं ने रखे विचार:आजसू के केंद्रीय महाधिवेशन के दूसरे दिन वक्ताओं ने विभिन्न विषयों पर खुलकर अपने विचार व्यक्त किये. भूमि, कृषि और सिंचाई, खनन और उद्योग, पर्यावरण और पर्यटन जैसे विषयों पर भारत के सर्वोच्च न्यायालय के वकील संजय उपाध्याय, संजय बसु मलिक, शिक्षाविद् रमेश शरण, प्रसिद्ध अर्थशास्त्री हरिश्वर दयाल, झारखंड आंदोलनकारी और झारखंड के प्रसिद्ध फिल्म निर्माता मेघनाथ भट्टाचार्य, संतोष शर्मा आदि लोगों ने अपने विचार व्यक्त किये. डॉ कौशल का व्याख्यान झारखंड में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति विषय पर दिया गया. इसी प्रकार स्वशासन और महिला सशक्तिकरण के विषय पर भी खुलकर चर्चा की गई.

आजसू विधायक लंबोदर महतो और पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता देवशरण भगत ने इस महाधिवेशन को ऐतिहासिक बताया और कहा कि 2017 के बाद यह महाधिवेशन हुआ है, जो अपने आप में अलग है. इस बार का महाधिवेशन वैश्विक है जिसमें देश-विदेश से झारखंड के विकास में रुचि रखने वाले शिक्षाविद अपने विचार रख रहे हैं. केंद्रीय सम्मेलन के तीसरे और आखिरी दिन रविवार 1 अक्टूबर को मोरहाबादी मैदान में खुला सत्र आयोजित किया जायेगा, जिसमें राजनीतिक प्रस्तावों के साथ-साथ पार्टी भविष्य के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए अपनी रणनीति तय करेगी.

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