रांची: कांटा टोली फ्लाईओवर का निर्माण वर्ष 2021 के अंत तक भी पूरा होने की उम्मीद नहीं है. पिछले डेढ़ वर्षों से कांटा टोली फ्लाईओवर का काम बंद है. अब तक मात्र 132 पाइल, दो पायल कैप और एक पीयर की कास्टिंग हुई है. फ्लाईओवर की प्रस्तावित लंबाई लगभग 2300 मीटर है. कांटा टोली फ्लाईओवर का संशोधित डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार करने के लिए परामर्शी कंपनी को 3 महीनों का समय दिया गया है. जिसके बाद निर्माण के लिए टेंडर किया जाएगा. टेंडर में एल वन आने वाली कंपनी फ्लाईओवर का निर्माण करेगी. पहले कांटा टोली फ्लाईओवर का निर्माण बहुबाजार की ओर से वाईएमसीए से लेकर कोकर स्थित शांति नगर तक था. लेकिन अब बहुबाजार की ओर फ्लाईओवर का विस्तार योगदा सत्संग आश्रम तक किया जाना है.
लागत राशि में करोड़ों रुपए का इजाफा
दरअसल, 2017 की शुरुआत में ही कांटा टोली फ्लाईओवर बनाने का काम नगर विकास विभाग के तहत एजेंसी जुडको ने शुरू किया था. शुरुआती समय में जमीन अधिग्रहण सबसे बड़ी समस्या बनी थी. लेकिन जमीन अधिग्रहण की समस्या को सुलझाया गया. इसके बावजूद डीपीआर में ही गलती सामने आ गई, जिसके बाद मुख्य डीपीआर की राशि 40 करोड़ से बढ़कर 84 करोड़ हो गई थी. इसके बाद कई तकनीकी कमियों को देख निर्माण कार्य का काम रुक गया. 84 करोड़ के इस प्रोजेक्ट में लगभग 20 करोड़ रुपये खर्च होने का भी अनुमान है. लेकिन निर्माण के नाम पर अभी तक एक पीलर भी सही तरीके से खड़ा नहीं हो सका है. ऐसे में फिर से नए सिरे से निर्माण कार्य शुरू होने पर लागत राशि में करोड़ों रुपए का इजाफा तय है.
जाम की समस्या लगातार से परेशान
आलम यह है कि हजारीबाग और टाटा रोड को जोड़ने वाली यह फ्लाईओवर अधूरी पड़ी हुई है. इसकी वजह से जाम की समस्या भी लगातार होती है. निर्माण कार्य की वजह से डस्ट भी ज्यादा उड़ता है, जो आम लोगों को बीमार भी कर सकता है. वर्षों से अधूरे पड़े कांटा टोली फ्लाईओवर की वजह से परेशानियां झेल रहे लोगों का साफ कहना है कि इस प्रोजेक्ट में करोड़ों का घोटाला किया गया होगा.
लोगों में अविश्वास की भावना
हालांकि, शहर के डिप्टी मेयर संजीव विजयवर्गीय ने फ्लाईओवर की लंबाई बढ़ाने को लेकर अपनी बातों को रखा था, जिसके बाद नई सरकार और नए सचिव ने इस और क्रियान्वयन भी किया. लेकिन अब तक काम शुरू नहीं होने से लोगों में अविश्वास की भावना बढ़ गई है. ऐसे में सरकार को इस पर संज्ञान लेते हुए काम शुरू करना चाहिए. उनका कहना है कि अगर जनता से किए गए वादे और जरूरतों को पूरा नहीं किया जाएगा, तो जनप्रतिनिधि जनता के बीच कुछ कहने में असहज महसूस करने लगेंगे.