रांची: क्या झारखंड में झामुमो खुद को धीरे धीरे उस स्थिति में लाना चाहता है कि उसे सत्ता के लिए कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल जैसे राजनीतिक दलों की ओर समर्थन के लिए नहीं देखना पड़े (JMM preparing to get majority)? आज यह सवाल इसलिए उठने लगा है क्योंकि 7 अक्टूबर को झारखंड मुक्ति मोर्चा की बेहद अहम विस्तारित केंद्रीय समिति की बैठक की थी. इस बैठक में झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन और कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने बंद हॉल में अपने केंद्रीय समिति सदस्यों के माध्यम से कार्यकर्ताओं को कई मंत्र दिए. उनमें एक मंत्र यह भी था कि हेमंत सरकार की जन उपयोगी योजनाओं को पार्टी कार्यकर्ता आमजन तक ले जाएं. जगह जगह पार्टी के झंडे बैनर के साथ कैंप लगाएं और हेमंत सरकार की योजनाओं का लाभ जरूरतमंदों तक पहुंचाने में मदद करें. ताकि पार्टी का जनाधार बढ़े और पार्टी अकेले दम पर झारखंड विधानसभा में बहुमत पाने की स्थिति में हो .
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दिशोम गुरु के सपने को पार्टी कार्यकर्ता पूरा करने के लिए तैयार: पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता और केंद्रीय समिति सदस्य मनोज पांडे, दिशोम गुरु के इस सपने को छुपाते भी नहीं है. दिशोम गुरु की इस इच्छा को पूरा करने के लिए पार्टी के सभी कार्यकर्ता हमेशा तैयार रहते हैं. मनोज पांडे कहते हैं कि गुरुजी ने जो मंत्र दिया है, उसपर अगर हम सब ईमानदारी से चले तो अगले विधानसभा आम चुनाव में पार्टी अकेले दम पर बहुमत हासिल कर लेगी और महागठबंधन के साथ तो यह आंकड़ा 65 प्लस का होगा.
अकेले बहुमत पाने को बेताब है झामुमो, केंद्रीय समिति की बैठक में गुरुजी ने कार्यकर्ताओं को दिया मंत्र - Ranchi News
झामुमो की केंद्रीय समिति की बैठक के बाद झारखंड की सत्ता को लेकर सवाल उठने लगे हैं. सवाल ये है कि क्या झारखंड मुक्ति मोर्चा अकेले बहुमत हासिल करने की तैयारी में है (JMM preparing to get majority)? इसे लेकर पार्टी के केंद्रीय समिति स्दस्य ने भी अपने दम पर बहुमत हासिल करने की बात कही है. इधर कांग्रेस का कहना है कि यह बस कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए है. लेकिन अगर जेएमएम ने अकेले बहुमत हासिल कर ली तो सहयोगी दल कांग्रेस और राजद कहां होगा?
अकेले बहुमत पाने की बेचैनी झामुमो को क्यों?: अब झारखंड की राजनीति (Jharkhand politics) में यह सवाल भी उठने लगे हैं कि जब महागठबंधन के साथी दल कांग्रेस और राजद के साथ झामुमो कंफर्ट फील कर रहा है तो फिर अकेले दम पर बहुमत पाने की इतनी ललक क्यों? इस सवाल का जवाब ढूंढने से पहले कुछ महीने पहले के एक इवेंट की चर्चा करते हैं. जहां कांग्रेस कोटे से हेमंत कैबिनेट में ही मंत्री बन्ना गुप्ता ने गिरिडीह में पार्टी के चिंतन शिविर में कांग्रेस की नाव डुबाने वाले माझी यानि नाविक से तुलना सीएम से कर दी थी. उस समय काफी राजनीतिक बवाल हुआ था. तो क्या झामुमो के केंद्रीय समिति की विस्तारित बैठक में जो बातें अब अकेले बहुमत पाने को लेकर आ रही है, उस समय बन्ना गुप्ता इसी ओर इशारा कर रहे थे? क्या कांग्रेस और राजद की कीमत पर झारखंड मुक्ति मोर्चा अकेले बहुमत हासिल करने वाली पार्टी बनना चाहती है?
झामुमो की अकेले बहुमत पाने की इच्छा, सामान्य बात: महागठबंधन में रहकर भी अकेले दम पर बहुमत पाने की झारखंड मुक्ति मोर्चा की इच्छा को झारखंड कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने सामान्य कहा. वह इसे कार्यकर्ताओं के मनोबल बढ़ाने के लिए कही बात बताते हैं. राजेश ठाकुर कहते हैं कि जब कांग्रेस और राजद के कार्यकर्ता भी किसी बैठक सेमिनार में होते हैं तो उनका मनोबल बनाये रखने और बढ़ाने के लिए इस तरह की बातें कही जाती है. राजेश ठाकुर कहते हैं कि अगर झामुमो अकेले बहुमत पाएगा तो उसका भी लाभ महागठबंधन को ही होगा. लेकिन, इस सवाल का जवाब उनके पास भी नहीं कि अगर झामुमो अकेले सत्ता पाने वाला बहुमत पा ले तो उस परिस्थिति में कांग्रेस और राजद महागठबंधन में किस रूप में रहेगा.
सवाल इसलिए भी अहम: भले ही झारखंड मुक्ति मोर्चा के अकेले दम पर बहुमत को सहयोगी दल अभी सामान्य बात बता रहे हों लेकिन, अगर झामुमो अकेले दम पर बहुमत पाता है तो वह किस दल की कीमत पर होगा, क्या भाजपा और आजसू की सीटें कम कर झामुमो बहुमत का मैजिक आंकड़ा जो 41 का है, को पायेगा या फिर सहयोगी कांग्रेस और राजद की परंपरागत सीट पर ही उसकी नजर है? यह सवाल इसलिए भी वाजिब है क्योंकि गढ़वा, लातेहार, मनोहरपुर सरीखे कई सीटें हैं, जहां पहले राजद का वर्चस्व रहा करता था और आज वहां झामुमो का परचम लहरा रहा है. तो गांडेय से कांग्रेस की जगह आज झामुमो का विधायक है. रांची विधानसभा सीट जहां पहले भाजपा का सीधा मुकाबला कांग्रेस से होता था. वहां अब कांग्रेस की जगह झारखंड मुक्ति मोर्चा ले चुका है. ऐसे और भी अन्य सीटें हैं जहां कभी राजद और कांग्रेस का परचम लहराता था लेकिन, वहां अब तीर धनुष है. ऐसे में भले ही कांग्रेस और राजद के नेता झारखंड मुक्ति मोर्चा के अकेले दम पर बहुमत पाने की महत्वाकांक्षा को सामान्य बात कहें लेकिन, अंदर से वह भी बेचैन जरूर होंगे.