रांचीः कृतज्ञ राष्ट्र हूल दिवस पर उन अमर शहीदों को याद कर रहा है, जिन्होंने देश में 1857 से पहले ही संथाल विद्रोह कर अंग्रेजी शासन को चुनौती दी थी. 30 जून 1855 को अपनी माटी की आजादी के लिए सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो ने अपना बलिदान दिया, उन्हें हूल दिवस पर याद किया जा रहा है. इसको लेकर प्रदेश में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है.
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रांची के सिदो कान्हू पार्क में स्थापित अमर शहीदों की प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित करने वालों का तांता लगा रहा. झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, आजसू, भाजपा सहित अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं-कार्यकर्ताओं, सामाजिक संगठनों से जुड़े लोगों ने सिदो कान्हू की प्रतिमा पर माल्यार्पण कर उन्हें नमन किया. पूर्व शिक्षा मंत्री बंधु तिर्की, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर, झारखंड मुक्ति मोर्चा के केंद्रीय महासचिव विनोद पांडेय, सुप्रियो भट्टाचार्य, राज्यसभा सांसद महुआ माजी, झामुमो के जिलाध्यक्ष मुस्ताक अहमद, सचिव हेमलाल मेहता हेमू, महिला राजद के प्रदेश अध्यक्ष रानी कुमारी, पूर्व शिक्षा मंत्री गीताश्री उरांव, सरना धर्म के पाहन जगलाल पाहन ने अमर शहीद की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया.
जल जंगल जमीन की रक्षा के लिए झामुमो कृतसंकल्पितः हूल दिवस पर झारखंड मुक्ति मोर्चा के महासचिव विनोद पांडेय ने कहा कि झामुमो सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो के बताए मार्ग पर चलकर उनके सपने को पूरा करेगा. उन्होंने कहा कि जेएमएम का गठन ही जल जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हुआ है. इस दिशा में महागठबंधन की सरकार आगे बढ़ी है, कुछ सपने पूरे हुए हैं बाकी को भी हेमंत सरकार पूरा करेगी.
फूट डालो-राज करो की नीति पर चलने वाली केंद्र की सरकार को उखाड़ फेंकने का संकल्पः झारखंड कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने अमर शहीदों को याद करते हुए कहा कि आज यह संकल्प हम लोगों ने लिया है कि केंद्र की फूट डालो और राज करो की नीति पर चल रही है, उस सरकार को उखाड़ फेंकेंगे. प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष बंधु तिर्की ने उम्मीद जताई कि हेमंत सोरेन की सरकार में सीएनटी एसपीटी एक्ट की कड़ाई से पालन होगा और जल जंगल जमीन की रक्षा होगी. वहीं सरना धर्म गुरु जगलाल पाहन ने कहा कि
संथाल विद्रोह की वजह से ही हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं.
आजादी की पहली लड़ाई थी संथाल विद्रोहः भारत की आजादी की पहली लड़ाई के रूप में भले ही इतिहास में 1857 का सिपाही विद्रोह को जगह मिली हो. लेकिन यह एक सच्चाई है कि फिरंगियों के खिलाफ 1857 के विद्रोह से काफी पहले अंग्रेसी हुकूमत को चुनौती संथाल में मिली थी. अमर शहीद सिदो कान्हू, चांद भैरव, फूलो झानो के नेतृत्व में हजारों की संख्या में आदिवासियों ने मिलकर अपनी माटी के लिए अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया था. इस संथाल विद्रोह में 20 हजार से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया था और फिरंगियों की सत्ता की बुनियाद हिला दी थी. संथाल विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने साहिबगंज के भोगनाडीह में सिदो कान्हू को फांसी दे दी थी.
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