रांची: महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के झारखंड के 3 दिन के दौरे ने विकास की राह पर झारखंड को ले जाने के नए आयाम की कई कड़ियों को जोड़ दिया. परेशानियां कभी भी विकास की राह में इतना भी बड़ा रोड़ा नहीं है जिसे जीता न जा सके. जिन मुद्दों को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सार्वजनिक मंच से लोगों के बीच रखा वह निश्चित तौर पर अगर राजनीति से अलग हटकर विकास के लिए कर दिया जाए तो झारखंड बुलंदी की नई ऊंचाई पर जा सकता है. क्योंकि ऊंचाई पर जाने के लिए हर झारखंड वासी के शरीर में बहने वाला खून विकास को जोड़कर चलता है. विकास के इसी एहसास को झारखंड के हर आम अवाम को आत्मसात करने की कोशिश के संदेश दे गई देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू.
महिलाओं के जिस कार्यक्रम में राष्ट्रपति खूंटी में शामिल हुई थी उसमें उन्होंने झारखंड के विकास को दिशा देने वाली ऐसी बात को रखा जो निश्चित तौर पर पूरे विश्व में नए तौर पर खड़े हुए भारत की एक बड़ी कहानी है. यह कहानी जो सिर्फ और सिर्फ संघर्ष के मजबूत इरादे से ही बन सकती है. इसके लिए न तो कोई शॉर्टकट रास्ता है और ना ही कोई दूसरा विकल्प. महिलाओं के स्वयं सहायता समूह द्वारा बनाए गए सामानों को देखते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन महिलाओं से पूछा था कि क्या इससे कुछ कमाई होती है. उन महिलाओं ने जवाब दिया कि खर्च भी निकल जाता है और कुछ पैसे बैंक में भी जमा होते हैं.
यह प्रश्न उन महिलाओं की कमाई से है, यह बात उन महिलाओं की है, यह बात उस समाज की महिलाओं से जुड़ी है, जिन लोगों के लिए 2 जून की रोटी के जद्दोजहद में जिंदगी को कुर्बान कर देने वाली तक की कहानी है. अपने बाल्यकाल के बारे में बताते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने कहा था कि हम जब छोटे थे तो 2 बजे रात से हमें महुआ चुनने के लिए जाना होता था और जब हमारे पास खाना नहीं होता था तो महुआ को गर्म करके हम खा लेते थे और यही हमारे जीवन की दिनचर्या हुआ करती थी.
राष्ट्रपति की यह बातें निश्चित तौर पर उन तमाम लोगों के लिए हौसला देने वाली हैं. वे जो संसाधन का हवाला देकर के हिम्मत से मेहनत करने के बजाय थक हार कर बैठ जाते हैं. जो लोग महुआ खाकर के दिन बिताते थे आज वह देश की राष्ट्रपति हैं. उन्होंने इस चीज को बताने में न तो कोई गुरेज किया और ना ही इस तरह का कोई इसे किस रुप में लिया जाएगा. लेकिन झारखंड जैसे आदिवासी राज्य के लिए यह किसी विकास की धारा बहाने वाली किसी धरोहर से कम नहीं है. जिन शब्दों को संजो कर के रख लेना झारखंड के विकास की गौरव गाथा लिख सकता है. झारखंड विकास के ऐसे बुलंदी पर जा सकता है जिसकी कल्पना शायद किसी ने किया ही नहीं हो.
महुआ को गर्म कर खा कर जीवन जीने की जद्दोजहद से राष्ट्रपति बनने तक का सफर द्रौपदी मुर्मू ने तय किया है. उन्होंने कहा कि अब तो महुआ से केक बनने लगा है. महुआ से बिस्किट बनने लगा है, तो यह समझा जा सकता है कि हम विकास के किस राह पर चले गए हैं. महिलाएं देश के विकास में भागीदार हैं यह सभी लोगों को पता है. राजनीति में आरक्षण और जाति को भजा लेने की जो कवायद चल रही है उस पर भी द्रौपदी मुर्मू झारखंड की राजनीति और झारखंड के राजनेताओं को एक नई दिशा देकर चली गई है जो कम से कम ईमान वाली राजनीति के साथ जुड़ा हुआ है.
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का साफ तौर पर कहना था कि लोग कहते हैं कि आदिवासी राज्य है. मान लिया कि यहां पर 26 फ़ीसदी आबादी आदिवासियों की है. लेकिन यह भी मान कर के चलिए यहां आधी आबादी महिलाओं की है. विकास का नया मापदंड तैयार कर रहे झारखंड के लिए यह किसी नीतियों के मार्गदर्शक से कम नहीं है जो झारखंड के विकास के लिए बनाई जा रही हैं. महिलाओं के विकास की अवधारणा अगर खड़ी कर दी गई तो झारखंड बदलाव के उस मुहाने पर खड़ा हो जाएगा जहां से शायद पीछे मुड़ कर देखना जरूरी नहीं होगा.
महिलाओं के जिस आत्मनिर्भरता की बात राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने की है वह निश्चित तौर पर झारखंड में रोजगार के लिए है. झारखंड में आधी आबादी रोजगार को अपने हाथों से पैदा करने लगी तो झारखंड की सबसे बड़ी परेशानी पलायन रुक जाएगी. अगर झारखंड से पलायन रुकता है तो या झारखंड के विकास में और ज्यादा मददगार साबित होगा. पलायन शिक्षा व्यवस्था के लिए अभिशाप बन गया है.
महिलाओं की चर्चा इस सदी में करना लाजमी भी है क्योंकि जिस तरीके से महिलाओं ने अपना परचम लहराया है. इस बात की चर्चा एकदम जरूरी है. महिलाओं के हक और अधिकार के लिए कम से कम उन्हें वंचित समाज के नजरिए से नहीं देखना चाहिए. 2022 के यूपीएससी के जिस तरीके से परिणाम आए हैं वह अपने आप में सोचने को विवश करता है कि महिलाओं के आयाम कहां है.
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JAC में लड़कियों ने जिस तरीके से रिजल्ट दिया है, वह भी अपने आप में झारखंड जैसे राज्य के लिए किसी सुहाने सपने से कम नहीं है. झारखंड के खिलाड़ी बेटियों ने विश्व स्तर पर जिस तरीके से भारत का मान बढ़ाया है यह भी बहुत बड़े अभिमान की बात है. संसाधन इनके पास कितना रहा है इस के विवाद में जाने के बजाय इस बात पर विचार करिए कि राजनेता अपने खुद गिरेबान में झांक कर के देखें कि जिन लोगों ने इतने बड़े फलक पर नाम किया है उसमें इनकी भूमिका और भागीदारी क्या रही है .