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Jharkhand News: कर्नाटक में 15 एसटी रिजर्व सीट, फिर भी चुनाव प्रचार से झारखंड के ट्राइबल नेताओं की दूरी क्यों? पढ़िए, पूरी रिपोर्ट - रांची न्यूज

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार चरम पर है. 10 मई को यहां वोट डाले जाएंगे और 13 मई को मतगणना होगी. 15 अनुसूचित जनजाति के लिए रिजर्व सीट होने के बावजूद झारखंड के ट्राइबल नेताओं ने कर्नाटक से दूरी क्यों बना ली है? ईटीवी भारत की रिपोर्ट से जानिए, आखिर क्या है वजह.

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Published : May 4, 2023, 5:45 PM IST

रांचीः कर्नाटक में विधानसभा चुनाव के लिए 10 मई को मतदान होना है, लिहाजा कर्नाटक में चुनाव प्रचार चरम पर है. पीएम नरेंद्र मोदी, यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह से लेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी तक ताबड़तोड़ चुनावी सभाएं कर रहे हैं. वहीं झारखंड जैसे प्रदेश जहां शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, डॉ. रामेश्वर उरांव, गीता कोड़ा, केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा, नीलकंठ सिंह मुंडा सहित आदिवासी नेताओं की लंबी फौज सभी दलों में है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अनुसूचित जनजाति रिजर्व 15 अहम विधानसभा सीट होने के बाद भी झारखंड के आदिवासी नेता की कर्नाटक चुनाव प्रचार में भागीदारी ना के बराबर है.

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बुलाया जाता तो जरूर जाते कर्नाटक- रामेश्वर उरांवः झारखंड कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वित्त मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव कर्नाटक विधानसभा चुनाव में आदिवासी आरक्षित 15 सीटों पर अहम भूमिका निभा सकते थे. वो कहते है भी हैं कि राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष होने के नाते पूर्व में कई बार बेल्लारी और मैसूर इलाके में गए हैं. वहां आदिवासियों की संख्या काफी है, फिर कर्नाटक विधानसभा चुनाव में प्रचार करने या आदिवासी समुदाय से भावनात्मक लगाव दर्शाने के लिए कर्नाटक क्यों नहीं गए? इस सवाल के जवाब में डॉ. रामेश्वर उरांव कहते हैं कि शायद उनके उम्र और सेहत का ख्याल रख पार्टी ने उन्हें कर्नाटक नहीं भेजा गया होगा.

झारखंड के अन्य आदिवासी नेताओं को क्यों कर्नाटक से अलग रखा गया? इस सवाल के जवाब में मंत्री डॉ. रामेश्वर उरांव कहते हैं कि यह तो पार्टी को तय करना होता है. उन्होंने कहा कि अगर झारखंड के आदिवासी नेता को बुलाया जाता तो यहां के नेता जरूर कर्नाटक जाते.

दिशोम गुरु शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन भी नहीं गए कर्नाटकः झारखंड मुक्ति मोर्चा कर्नाटक में विधानसभा चुनाव नहीं लड़ रहा है. झारखंड में महागठबंधन की बड़ी सहयोगी होने के नाते उनके नेता कांग्रेस के उम्मीदवार को समर्थन देने के लिए शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन कम से कम आदिवासी बहुल क्षेत्रों में चुनावी सभाएं कर सकते थे. झामुमो के केंद्रीय प्रवक्ता मनोज पांडेय कहते भी हैं कि शिबू सोरेन को आदिवासियों ने ही दिशोम गुरु यानी देश का गुरु से संबोधित किया.

मनोज पांडेय कहते हैं कि हेमंत सोरेन और शिबू सोरेन की लोकप्रियता देशव्यापी है. फिर कर्नाटक में चुनाव नहीं लड़ने के बावजूद भावनात्मक मार्गदर्शन के लिए कार्यक्रम क्यों नहीं बना. इस सवाल के जवाब में मनोज पांडेय ने कहा कि झामुमो वहां चुनाव नहीं लड़ रहा है. सहयोगी कांग्रेस पार्टी अगर कोई कार्यक्रम बनाती तो हेमंत सोरेन जरूर कर्नाटक में चुनावी सभाएं करते.

जेएमएम नेता मनोज पांडेय ने कहा कि यह सही है कि शिबू सोरेन और हेमंत सोरेन ने झारखंड के साथ साथ अभी तक बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, छत्तीसगढ़ पर ध्यान केंद्रित किया है लेकिन उनकी स्वीकार्यता पूरे देश में है. सबसे लोकप्रिय युवा चेहरा हेमंत सोरेन का है. अगर सहयोगी पार्टी इसका लाभ लेना चाहेगी तो हेमंत सोरेन जरूर कर्नाटक जायेंगे और उसका लाभ भी मिलेगा. लेकिन वहां कांग्रेस चुनाव लड़ रही है, अभी तक उनका कोई आग्रह नहीं मिला है, इसलिए उनके नेता कर्नाटक नहीं गए हैं.

झारखंड के आदिवासी नेता की राष्ट्रीय स्तर पर पहचान नहीं- सीपी सिंहः झारखंड के सभी राजनीतिक दलों के आदिवासी नेताओं की कर्नाटक विधानसभा चुनाव प्रचार से दूरी को लेकर भाजपा विधायक सीपी सिंह ने सीधी और सपाट बात कही है. उन्होंने कहा कि झारखंड के बाहर इन नेताओं की आदिवासी समूह में क्या पकड़ और पहचान है, जिसका लाभ राजनीतिक दल उठाएंगे.

सीपी सिंह ने कहा कि कर्नाटक, नार्थ ईस्ट या किसी अन्य क्षेत्र के आदिवासी, इनके रहन-सहन, बोली, भाषा सब अलग होता है. ऐसे में झारखंड के आदिवासी नेता कर्नाटक के आदिवासी बहुल विधानसभा क्षेत्रों में जाकर क्या कर लेंगे. यहां के नेताओं की भाषा ना उनकी समझ में आएगी और न ही झारखंड के आदिवासी नेता इतने प्रभावी हैं कि आदिवासी वोटरों पर कोई असर डाल पाएंगे.

सीपी सिंह ने कहा कि जब झारखंड में ही एक इलाके के आदिवासी समूह में दूसरे समूह के आदिवासी नेता की पकड़ नहीं है तो दूसरे राज्य में ये कितने कारगर होंगे. सीपी सिंह ने कहा कि भले ही कोई शिबू सोरेन को दिशोम गुरु यानी देश का गुरु बताएं लेकिन सच्चाई यही है कि वो झारखंड के बड़े आदिवासी नेता हो सकते हैं, देश के नहीं. सीपी सिंह ने कहा कि देश में नहीं बल्कि विश्व स्तर पर एक ही नेता इस देश में हैं और वह हैं नरेंद्र मोदी. झारखंड के किसी भी आदिवासी नेता की राष्ट्रीय स्तर पर आदिवासियों के बीच कोई पहचान नहीं है. ऐसे में ये नेता कर्नाटक विधानसभा चुनाव में घूमने फिरने जा सकते हैं लेकिन उसका कोई चुनावी फायदा नहीं मिलने वाला है.

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