रांची:2019 में झारखंड को अपना विधानसभा भवन मिला, तब तक झारखंड विधानसभा का काम-काज किराए के भवन में ही चल रहा था. विधानसभा भवन अपने शिलान्यास के समय से ही विवादों में रहा है. इसी तरह रांची में झारखंड हाई कोर्ट के नए भवन का निर्माण हो रहा है. इसमें भी अनियमितता की बात सामने आ रही है. जिसकी जांच चल रही है. हाई कोर्ट इसके निर्माण की निगरानी खुद कर रहा है.
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शिलान्यास को लेकर विवाद
2012 में अर्जुन मुंडा की सरकार के समय नए विधानसभा भवन और नए हाई कोर्ट भवन के निर्माण की सहमति बन गई थी. 21 जनवरी 2014 को तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नए विधानसभा भवन का शिलान्यास किया था. स्थानीय लोगों ने शिलान्यास की ईंट को हटा दिया था. 12 जून 2015 को फिर से तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने शिलान्यास किया. स्थानीय लोगों ने तब भी विरोध किया था.
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निर्माण काम में अनियमितता
12 सितंबर 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड के नए विधानसभा भवन का उद्घाटन किया. उस समय इस बात को लेकर विवाद था कि निर्माण पूरा होने से पहले श्रेय लेने के लिए उद्घाटन कर दिया गया है. पहली बार विधानसभा भवन निर्माण का टेंडर 323.03 करोड़ रुपए का था. बाद में वास्तु दोष के नाम पर निर्माण काम के लिए 136 करोड़ रुपए की टेंडर राशि बढ़ा दी गई. 39 एकड़ में फैले तीन मंजिला इमारत का निर्माण 465 करोड़ रुपये की लागत से पूरा हुआ. लेकिन उदघाटन के बाद से ही इसके गुणवत्ता पर सवाल उठने शुरू हो गए. विधानसभा के इस नवनिर्मित भवन में फायर फाइटिंग के अभाव के कारण आग लगने के अलावा दो बार फॉल्स सिलिंग टूटकर गिर चुका है. अब एसीबी इसपर हुए खर्च की पूरी जांच करेगी.
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हाई कोर्ट के नए भवन का शिलान्यास
9 फरवरी 2013 को झारखंड हाई कोर्ट के नए भवन का शिलान्यास किया गया. तत्कालीन सीजेआई अल्तमस कबीर शिलान्यास कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. उस समय केंद्रीय कानून मंत्री अश्विनी कुमार भी कार्यक्रम में मौजूद थे. झारखंड के नए हाई कोर्ट भवन शिलान्यास के समय राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था और डॉ. सैय्यद अहमद राज्यपाल थे.
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हाई कोर्ट भवन निर्माण में अनियमितता झारखंड हाई कोर्ट का धुर्वा में बन रहा है नया भवन
झारखंड हाई कोर्ट भवन के निर्माण में अनियमितता को लेकर हाई कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर है. इसमें कहा गया है कि अधिकारी और संवेदक की मिलीभगत से अनियमितता बरती गई है. रघुवर दास के शासनकाल में हाई कोर्ट भवन के निर्माण के लिए 365 करोड़ की प्रशासनिक स्वीकृति दी गई थी. लेकिन एक चहेते संवेदक को काम दिलाने के लिए 100 करोड़ की राशि घटाकर 265 करोड़ में टेंडर दे दिया गया था. फिर बाद में इस प्रोजेक्ट की राशि बढ़ाकर 697 करोड़ कर दी गई. याचिका में जिक्र है कि इसके लिए न तो सरकार से अनुमति ली गई और न ही नया टेंडर निकाला गया था.
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एसीबी करेगी जांच
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने नव निर्मित झारखंड विधानसभा और झारखंड उच्च न्यायालय भवन के निर्माण कार्य में बरती गई. वित्तीय अनियमितता की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो से कराने का आदेश दिया है. दोनों भवनों को राम कृपाल कंस्ट्रक्शन ने बनाया है. उद्घाटन के बाद से ही विधानसभा का भवन कभी वाटर लॉगिंग तो कभी सीलिंग ढहने को लेकर विवादों में रहा है. अभी तक हाई कोर्ट का निर्माण कार्य पूरा नहीं हुआ है. दोनों भवन का शुरुआती एस्टीमेट कुछ और था जिसे बाद में एक्सटेंशन दिखाकर बढ़ाया गया.