रांची: झारखंड में 25 अगस्त से सियासी खिचड़ी पक रही है. लेकिन खिचड़ी कब पककर तैयार होगी, इसका जवाब सिर्फ मुख्यमंत्री और राजभवन के पास है. खनन लीज आवंटन मामले में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की विधानसभा सदस्यता को लेकर चुनाव आयोग से राजभवन पहुंची सिफारिश पर रहस्य का पर्दा उठने का नाम नहीं ले रहा है. इस बीच सत्ताधारी दल के विधायक और मंत्री लतरातू डैम से लेकर रायपुर के मेफेयर रिसोर्ट का आनंद उठा रहे हैं. लेकिन 31 विधायक और मंत्रियों के रायपुर रवानगी के 24 घंटे के भीतर चार मंत्रियों की वापसी के लिए मंत्री सत्यानंद भोक्ता और कांग्रेस विधायक प्रदीप यादव को भेजे जाने से राजनीति के जानकारों के कान खड़े हो गये हैं.
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चर्चा है कि एक सितंबर को अपने सभी 10 मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कैबिनेट की बैठक (Hemant Soren cabinet meeting) के बाद या उससे पहले कोई सरप्राइजिंग स्टेप उठा सकते हैं. दरअसल, चुनाव आयोग की सिफारिश के बाद से अब तक राजभवन ने अपना पता नहीं खोला है. अभी तक राजभवन की तरफ से मुख्यमंत्री के विधानसभा सदस्यता मामले में चुनाव आयोग को आदेश नहीं गया है. लिहाजा, संशय के बादल के बीच सत्ता पक्ष के लिए राजनीति की छतरी को लंबे समय तक खोले रखना आसान नहीं है. जाहिर है कि राजभवन जितना वक्त लेगा, उतनी ही यूपीए की बेसब्री बढ़ेगी. अब इससे बचने का आखिर क्या उपाय है. इस ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन खुद ही इशारा कर चुके हैं.
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्रा का मानना है कि ऐसे हालात को खींचने के बजाय मुख्यमंत्री को बोल्ड स्टेप उठाना चाहिए. उनका कहना है कि नैतिकता का हवाला देकर अगर मुख्यमंत्री इस्तीफा दे देते हैं और दूसरी वैकल्पिक व्यवस्था तैयार करते हैं तो इससे न सिर्फ झारखंड की राजनीति में उनका कद बढ़ेगा बल्कि केंद्र पर भी दबाव बनेगा. उन्होंने कहा कि अगर उन्हें किसी तय सीमा के लिए अयोग्य करार दिए जाने का संदेह है, तब भी उन्हें आज नहीं तो कल फैसला लेना ही होगा. इसलिए मुख्यमंत्री जितना विलंब करेंगे, उनके लिए इतनी बड़ी परेशानी खड़ी होगी.