रांची: आपराधिक वारदातों को सुलझाने में पुलिस अक्सर नए-नए तकनीकों का इस्तेमाल करती है. मसलन कॉल डंप, सीडीआर और मोबाइल लोकेशन यह तीन पुलिस के ऐसे तकनीक हैं, जिनके बल पर बड़े-बड़े अपराधियों को सलाखों के पीछे पहुंचाया जाता रहा है. वहीं अनेकों आपराधिक वारदातों को भी आसानी से सुलझा भी लिया गया है. लेकिन, पुलिस की इन्हीं तकनीकों को अब अपराधी भी बेहतर तरीके से समझने लगे हैं. नतीजा कई कांड पुलिस के लाख प्रयास के बावजूद भी सुलझ नहीं पाते और अगर सुलझ भी जाते हैं तो उनमें अपराधियों की गिरफ्तारी बहुत मुश्किल से हो पाती है. ऐसे में रांची पुलिस तकनीक के साथ-साथ ह्यूमन इंटेलिजेंस नेटवर्क को मजबूत कर अपराधियों पर नजर रखने की रणनीति पर काम कर रही है.
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जान जाते हैं अपराधी की कैसे हुई उनकी गिरफ्तारी:जब भी पुलिस किसी कांड का खुलासा करती है, तब पुलिस इसकी जानकारी भी देते हैं कि अपराधी कैसे गिरफ्तार हुए. लेकिन ये जानकारी पकड़े गए अपराधियों के पास भी पहुंच जाती है. ऐसे में अब राजधानी रांची के कई शातिर अपराधी पुलिस की पकड़ से बचने के लिए, हर तरह के हथकंडे अपना रहे हैं. राजधानी के कई शातिर अपराधी जो पुलिस के पकड़ से दूर हैं, वे अब घटनाओं को अंजाम देने से पहले ना तो मोबाइल पर बात करते हैं और ना ही घटना के समय किसी मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं.
दरअसल, अपराधी यह जान चुके हैं कि पुलिस उन्हें कैसे पकड़ती है. जो अपराधी यह समझ चुके हैं, उन्हें गिरफ्तार करना पुलिस के लिए बड़ी चुनौती साबित हो रही है. रांची रेंज के डीआईजी अनूप बिरथरे के अनुसार, यह सही है कि कोई भी अपराधी जब गिरफ्तार हो कर जेल पहुंचता है, तब उसे यह जानकारी हो ही जाती है कि उसे पुलिस ने कैसे गिरफ्तार किया है. ऐसे में फिर जब वह अपराधी जेल से बाहर निकलता है और अगर फिर किसी आपराधिक घटना में शामिल होता है, तब वह पिछली सारी गलतियों को दोहराने से बचता है, जिसकी वजह से वह पिछली बार पकड़ा गया था.
क्या है कॉल डंप और सीडीआर:कॉल डंप और सीडीआर किसी भी आपराधिक वारदात को सुलझाने के साथ-साथ पकड़े गए अपराधी को सजा दिलावने में अहम किरदार निभाते हैं. कॉल डंप के जरिए यह पता चल जाता है कि वारदात के समय घटना स्थल पर कौन-कौन से मोबाइल एक्टिव थे और किस मोबाइल पर लगातार बातचीत हो रही थी, जिसके बाद पुलिस की टीम उसका सूक्ष्मता पूर्वक अध्यन करती है. इस वजह से पुलिस को अपराधियों तक पहुंचने में सहायता मिलती है. वैसे ही मोबाइल कंपनियों के द्वारा सीडीआर भी पुलिस को उपलब्ध कराया जाता है. किसी भी मोबाइल का सीडीआर यह बता देता है कि वारदात के पहले, वारदात के समय और वारदात के बाद अपराधी किन किन नंबर से बात कर रहे थे और किनके-किनके संपर्क में थे.