रांची: एक तरफ झारखंड के नक्सली संगठन बरसात का फायदा उठाकर अपने संगठन के विस्तार की तैयारी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ झारखंड पुलिस के जवान उनके इरादों पर पानी फेरने के लियर मॉनसून में भी जंगल में नक्सलियों से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार हो चुके हैं. झारखंड में नक्सलियों के खिलाफ पुलिस एक तरह से अपनी निर्णायक लड़ाई लड़ रही है. यह लड़ाई अब वैसे इलाकों में चल पड़ी है जहां पुलिस के लिए पहुंचना काफी मुश्किल है, क्योंकि लगातार सुरक्षा बलों के जोरदार अभियान और कोविड संक्रमण से उपजे हालात की वजह से नक्सली अपने सबसे सुरक्षित ठिकानों तक ही सीमित होने पर मजबूर हो गए. लेकिन बरसात उनके लिए मौका लेकर हर वर्ष आता है ताकि वह अभियान के शिथिल होने पर अपने क्षेत्रों पर वापस कब जा पा सके. हालांकि इस बार नक्सलियों को यह मौका भी नहीं मिलने जा रहा है. इस बार सांप और बिच्छू से बचाव के लिए जवानों को बरसात के पहले ही क्लोरोक्वीन, प्रीमाक्वीन, एसीटी काम्बी ब्लिस्टर जैसे मेडिसिन उपलब्ध करवा दिया गया है.
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वज्रपात, मच्छर, सांप और बिच्छू बनते है बाधक:भरी बरसात में नक्सलियों के खिलाफ मोर्चे पर निकले जवानों को जंगलों में भारी मुसीबत का सामना करना पड़ता है. एक तो बरसात की वजह से सांप बिच्छू खुलेआम जंगलों में घूम रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ मच्छरों का आतंक भी कम नहीं है. जवान नक्सलियों की गोलियों से जितना नहीं डरते हैं उससे ज्यादा खौफ उन्हें सांप बिच्छू और मच्छरों का है. झारखंड के नक्सल प्रभावित कुछ ऐसे जिले हैं जहां के जंगलों में लगातार बारिश होते रहता है. ऐसे जंगलों में मलेरिया जवानों के लिए सबसे बड़ी बीमारी है.
2008 से 69 जवानों ने गवाएं अपने जान:आपको यह जानकर हैरानी होगी कि नक्सलियों से लोहा लेते जितने हमारे जवान शहीद नहीं हुए हैं, उससे ज्यादा ब्रेन मलेरिया, सांप बिच्छू के काटने और दूसरी बीमारियों की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं. झारखंड जगुआर झारखंड पुलिस की अपनी स्पेशलाइज फोर्स है जो 2008 से ही नक्सलियों के खिलाफ हर मोर्चे पर लड़ाई लड़ रही है. आंकड़े बताते हैं कि 2008 से लेकर अब तक झारखण्ड जगुवार के नक्सलियों के साथ हुए एनकाउंटर में 21 जवान शहीद हुए हैं लेकिन 69 जवान मलेरिया, सांप काटने और गम्भीर बीमारी की वजह से अपनी जान गवा चुके हैं.
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डीसी एसपी को भी जारी किया गया है निर्देश:अमोल वेणुकान्त होमकर का कहना है कि बरसात के मौसम में अभियान मे परेशानी आती है. वहीं दुर्गम क्षेत्र के कारण भी नक्सल अभियान चलाने में काफी परेशानी आती है. ऐसे में जवान कई बीमारियों से ग्रसित होते हैं. जिसे लेकर प्रिवेंटिव मेडिसिन दी जाती है. इसके लिए जिले के एसपी और डीसी को निर्देश दिया गया है. उन्होंने कहा कि पहले कि तुलना में अब बीमारियों से जवानों की मौत में कमी आई है.
नक्सल विरोधी अभियान में लगे जवान झारखंड जगुआर के सभी मारक दस्ते में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी:झारखंड पुलिस के आईजी ऑपरेशन अमोल होमकर ने बताया कि पूर्व की घटनाओं से सबक लेते हुए नक्सल विरोधी अभियान में अब बरसात कतई बाधक नहीं है. इसका अभियान पर अब कोई असर नहीं है. सभी जवानों को जंगलों में होने वाली समस्या से संबंधित मेडिकल किट, मच्छरदानी, लोशन, उपकरण और केमिकल सुविधाएं उपलब्ध करवाए गए हैं, ताकि वे हर परिस्थिति से खुद को सुरक्षित रख सकें. नक्सलियों के खिलाफ झारखंड जगुआर के 40 मारक दस्ता (असाल्ट ग्रुप) अभी जंगलों में घुसे हुए हैं, जिन्हें मेडिकल सुविधा उपलब्ध कराने के लिए अलग से प्रत्येक ग्रुप में दो-दो पारा मेडिकल कर्मी दिए गए हैं. ये कर्मी पूरी तरह प्रशिक्षित हैं. आईजी के अनुसार वर्तमान समय में ट्रेनिंग का स्तर काफी बेहतर हो गया है हमारे जवान भी कमांडो जैसी ट्रेनिंग ले चुके हैं. ऐसे में वे जंगली जानवर सहित सांप और बिच्छू से निपटने में भी माहिर हो चुके हैं.