रांची:1 मई को पूरे देश में मजदूर दिवस मनाया जाता है. इस दिन मजदूरों को सम्मान देकर उन्हें सम्मानित भी किया जाता है. साथ ही साथ समाज में उनके अहम योगदान के पाठ पढ़ाया जाता है, लेकिन इस बार मजदूर दिवस में मजदूरों की स्थिति काफी दयनीय हो चुकी है, क्योंकि बाहर काम करने वाले मजदूर दूसरे राज्य में फंसे हैं या फिर दूसरे राज्य के मजदूर झारखंड में फंसे हैं.
मजदूरों पर आर्थिक संकट गहराया. पूरे देश के साथ-साथ झारखंड में भी लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की स्थिति दिन-प्रतिदिन दयनीय हो रही है. मजदूर अपनी परेशानी बताते हुए सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं.
वहीं दूसरी ओर मजदूरों की हिमायती करने वाली पार्टी और संगठन अपनी मांगें रखकर मजदूर की मदद करने की आवाज बुलंद कर रहे हैं. वर्तमान में मजदूर बिना किसी सुविधा के जिंदगी बिताने को मजबूर हैं
झारखंड में फंसे मजदूर सुनील कुमार पांडे बताते हैं कि पिछले एक माह से हम लोग बिना किसी सुविधा और काम के झारखंड में फंसे हैं.
साथ ही साथ वह अपनी परेशानी को साझा करते हुए बताते हैं कि हम लोग सामाजिक संगठन द्वारा बांटे जा रहे खाने के भरोसे अपने जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
यहां तक कि हम लोगों के नहाने और नित्य क्रिया करने की भी व्यवस्था मौजूद नहीं है. कई कई दिनों तक हम लोगों को बिना नहाये ही रहना पड़ रहा है और सड़क पर ही मच्छरों के बीच सोकर रात बिताना पड़ रहा है.
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लॉकडाउन के दौरान मजदूरों की दयनीय स्थिति पर भारतीय ट्रेड यूनियन श्रमिक संघ(सीटू) के मजदूर नेता भवन सिंह बताते हैं कि अगर सरकार लॉकडाउन के दौरान फंसे मजदूरों के लिए विशेष आर्थिक पैकेज और उनके जीवन यापन के लिए काम मुहैया नहीं कराती है तो सीटू मजदूरों के लिये सरकार के खिलाफ अपनी आवाज को बुलंद करेगी.
वहीं भाकपा माले के राज्य सचिव जनार्दन प्रसाद बताते हैं कि राज्य के बाहर फंसे प्रवासी मजदूरों को हरसंभव सुविधा पहुंचाने और उन्हें अपने राज्य तक वापस लाने के लिए भाकपा माले पूरे देश में मजदूर दिवस के अवसर पर अपने कार्यकर्ताओं के साथ सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए विरोध प्रदर्शन करेगी, जिसमें पूरे देश के साथ-साथ राज्य के हजारों कार्यकर्ता शामिल होंगे और मजदूरों के हक के लिए अपना विरोध जताएंगे.
गौरतलब है कि 1 मई को मजदूर दिवस के अवसर पर सरकार मजदूरों को सम्मानित और उन्हें हर सुविधा मुहैया कराने की बात करती है, लेकिन इस वर्ष मजदूर दिवस पर मजदूरों की स्थिति को देखने के बाद यह स्पष्ट कहा जा सकता है कि भले ही सरकार द्वारा मजदूरों को हर सुविधा देने की बात कहीं जाती हो लेकिन धरातल पर परिस्थिति कुछ और ही है.