रांची: झारखंड की अनुसूचित जाति की श्रेणी में शुमार भोगता जाति को अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा मिलने जा रहा है. इसको लेकर संविधान (अनुसूचित जातियां और अनुसूचित जनजातियां) आदेश (संशोधन) विधेयक, 2022 पिछले दिनों लोकसभा और राज्यसभा में पारित हो चुका है. लेकिन जनजातीय मामलों के केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा की इस पहल के विरोध में सूबे के श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता खुलकर सामने आ गये हैं.
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श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने केंद्र सरकार की इस पहल को राजनीतिक साजिश बताया है. उनका कहना है कि झारखंड की तीन विधानसभा सीटों यानी चतरा, लातेहार और सिमरिया में इस जाति का मजबूत राजनीतिक आधार रहा है. तीनों सीटें एससी समाज के लिए रिजर्व हैं. चतरा विधानसभा सीट पर साल 1985 से लेकर अबतक हुए चुनाव में छह बार भोगता समाज के प्रतिनिधियों की जीत हुई है. अगर भोगता जाति को एसटी का दर्जा मिल जाएगा तो फिर इस समाज का पॉलिटिकल डेथ हो जाएगा. ईटीवी भारत के ब्यूरो चीफ राजेश सिंह से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा कि भोगता जाति के लोग बिहार के गया और पश्चिम बंगाल में भी निवास करते हैं. अगर ऐसा था तो उन्हें भी एसटी बनाना चाहिए था.
ब्यूरो चीफ राजेश सिंह के साथ श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने झारखंड सरकार की सिफारिशों का हवाला देकर सिर्फ झारखंड के लिए संविधान (अनुसूचित जातियां) आदेश, 1950 और संविधान ( अनुसूचित जनजातियां ) आदेश, 1950 में संशोधन का प्रस्ताव लाया था. यह सरासर गलत है. उन्होंने कहा कि तत्कालीन रघुवर सरकार के समय 5 दिसंबर 2017 को कैबिनट में आए जिस प्रस्ताव का हवाला दिया गया है, उसमें कंडिका - 6 में साफ लिखा हुआ है कि भोगता को छोड़कर खरवार की शेष उपजाति को राज्य की अनुसूचित जनजाति की सूची में सूचीबद्ध करने का अनुरोध भारत सरकार से की जाए. हालांकि इससे पहले कैबिनेट की स्वीकृति के बाद 2 मार्च 2012 के द्वारा जनजातीय कार्य मंत्रालय के सचिव को लिखे पत्र में देशवारी, गंझू, दौलतबंदी, पटबंदी, राउत, माझिया और खैरी के अलावा भोगता को एसटी में शामिल खरवार जनजाति की उपजाति के रूप में मान्यता देने का प्रस्ताव दिया था.
इस बिंदु को आधार बनाकर श्रम मंत्री सत्यानंद भोक्ता ने कहा कि उनके समाज के लोग अपने हक की आवाज उठाएंगे. उन्होंने कहा कि केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा का पुतला फूंका जाएगा. इसके बाद सिलसिलेवार तरीके से राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के अलावा अन्य मंत्रियों से मिलकर इंसाफ की मांग की जाएगी. अगर बात नहीं बनी तो कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया जाएगा. उन्होंने कहा कि आजादी से पहले 1936 में अनुसूचित जाति को लेकर जारी आदेश में भी भोगता जाति को एससी का दर्जा दिया गया था.
हालाकि, इस पहलू का एक दूसरा पक्ष भी है. बेशक, राजनीतिक रूप से इस जाति को नुकसान होता दिख रहा है लेकिन आदिवासी की श्रेणी में आने से इस समाज को कई तरह के फायदे भी होंगे. मसलन, उन्हें अब एससी को मिलने वाले 9 प्रतिशत आरक्षण की जगह एसटी को मिलने वाले 26 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलने लगेगा. एसटी के लिए रिजर्व 28 सीटों पर इस जाति के लोग चुनाव लड़ सकेंगे. साथ ही ट्राइबल के लिए चलायी जा रही योजनाओं का भी फायदा मिल पाएगा.