झारखंड

jharkhand

ETV Bharat / state

झारखंड हाई कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला, कहा- समान काम के बदले मिलना चाहिए समान वेतन

झारखंड हाई कोर्ट ने समान काम के लिए समान वेतन दिए जाने के मामले पर फैसला सुनाया है. अदालत ने माना है कि समान काम के बदले में समान वेतन दिया जाना चाहिए. वर्ष 1982 से कैजुअल वर्कर के रूप में फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया में कार्य कर रहे अनिल कुमार ने सर्वप्रथम श्रम न्यायालय में याचिका दायर की थी.

By

Published : Oct 29, 2020, 7:55 PM IST

Jharkhand High Court ruled to give equal pay for equal work
झारखंड हाई कोर्ट

रांची: समान काम के लिए समान वेतन दिए जाने के मामले पर झारखंड हाई कोर्ट के न्यायाधीश डॉ एसएन पाठक ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें अदालत ने यह माना है कि समान काम के बदले में समान वेतन दिया जाना चाहिए. उन्होंने अपनी टिप्पणी में कहा है कि, 'यह मौलिक अधिकार तो नहीं लेकिन अगर नीति निर्देशक तत्व को देखा जाए तो अधिकार के समान ही प्रतीत होता है' अदालत ने समान काम के लिए समान वेतन देने का आदेश देते हुए याचिका निष्पादित कर दिया है.

जानकारी देते अधिवक्ता
एफसीआई कर्मी अनिल कुमार के मामले में अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि वर्ष 1982 से कार्यरत कर्मी को समान कार्य के बदले समान वेतन दिया जाना बिल्कुल सही है, क्योंकि कॉरपोरेशन में टाइपिस्ट का पद भी था और 1982 के बाद नियमित बहाली भी की गई, लेकिन अनिल कुमार को कैजुअल ही रखा गया, इसमें उनकी कोई गलती नहीं है, ऐसे में उन्हें भी अन्य टाइपिस्ट की तरह समान वेतन दिया जाना बिल्कुल न्यायोचित है और उन्हें इस लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता. हाई कोर्ट ने श्रम न्यायालय के फैसले को सही मानते हुए कहा कि श्रम न्यायालय का आदेश दस्तावेजों पर आधारित है और जब तक दस्तावेजों में कोई बड़ी त्रुटि ना दिखाई दे या श्रम न्यायालय अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर कोई फैसला ना दे, तब तक फैसलों में हाई कोर्ट का हस्तक्षेप करना उचित नहीं होता. इस मामले में भी श्रम न्यायालय ने सभी संबंधित दस्तावेजों और नियमों देखने के बाद यह फैसला दिया है, अब इसमें किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है, फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया की याचिका खारिज की जाती है और श्रम न्यायालय का आदेश बरकरार रखा जाता है. क्या है केसवर्ष 1982 से कैजुअल वर्कर के रूप में फूड कारपोरेशन ऑफ इंडिया में कार्य कर रहे अनिल कुमार ने सर्वप्रथम श्रम न्यायालय में याचिका दायर की थी. अपने में याचिका के माध्यम से उन्होंने बताया कि उनको कभी भी नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया था. वह हिंदी टाइपिस्ट के रूप में कॉरपोरेशन में काम कर रहे थे. वर्ष 1984 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई, जिसके खिलाफ वह श्रम न्यायालय में गए. वर्ष 1990 में श्रम न्यायालय ने उनकी सेवा बहाल करने का आदेश दिया, इसके बाद उन्हें कैजुअल कर्मचारी के रूप में ही रख लिया गया.नियुक्ति प्रक्रिया को चुनौती दीवर्ष 1995 में एफसीआई ने नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की. इसके लिए आंतरिक कर्मियों से भी आवेदन मांगा गया था, लेकिन अनिल कुमार ने इस नियुक्ति प्रक्रिया के खिलाफ श्रम न्यायालय गए. उन्होंने कहा कि लंबे समय से टाइपिस्ट के पद पर काम कर रहे हैं, जब पद रिक्त हैं तो उनकी सेवा नियमित की जानी चाहिए. इस मामले पर सुनवाई के बाद श्रम न्यायालय ने प्रार्थी की सेवा नियमित करने और स्थायी कर्मचारी के समान वेतन और अन्य सुविधाएं देने का निर्देश दिया.श्रम न्यायालय के आदेश को दी चुनौतीश्रम न्यायलय के इस आदेश के खिलाफ एफसीआई ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की. हाई कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद अदालत ने प्रार्थी के पक्ष में फैसला दिया और श्रम न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और टाइपिस्ट को वर्ष 1991 से ही नियमित मानते हुए वेतन और अन्य सुविधाएं देने का आदेश दिया.

इसे भी पढे़ं:-NCAP रिपोर्टः देश के सबसे प्रदूषित राज्यों में झारखंड दूसरे नंबर पर, राज्य में धनबाद सबसे प्रदूषित

मामला लंबित रहते हो गए रिटायर
टाइपिस्ट अनिल कुमार का हाई कोर्ट में मामला लंबित रहते के दौरान ही वर्ष 2018 में रिटायर कर गए. कोर्ट के निर्देश के बाद अब उन्हें वर्ष 1991 से ही नियमित टाइपिस्ट के समान वेतन और अन्य सुविधाओं का लाभ मिलेगा.

अन्य मामलों में भी मिल सकता है लाभ
हाई कोर्ट के इस आदेश का अन्य मामलों में भी लाभ मिल सकता है. विधि विशेषज्ञों के अनुसार इस आदेश में इस तरह के सभी मामलों पर लागू होने की बात तो नहीं कही गई है, लेकिन अदालतों में समान काम के लिए समान वेतन के लिए लंबित या भविष्य में दायर होने वाले मामलों में इस आदेश का हवाला देकर लाभ लिया जा सकता है. सरकार के कई विभागों के दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की सेवा नियमित करने और समान काम का समान वेतन देने की मांग को लेकर याचिका लंबित है. कई राज्यों की हाई कोर्ट ने भी समान काम के समान वेतन को जरूरी बताया है. ऐसे में हाई कोर्ट का यह आदेश काफी महत्वपूर्ण है.

ABOUT THE AUTHOR

...view details