रांची:झारखंड के गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ मिलेगा या नहीं इसके लिए फिलहाल इंतजार करना होगा. अब सभी की नजरें झारखंड हाई कोर्ट के डबल बेंच पर टिकी हैं. गरीब सवर्णों को 10% आरक्षण देने के मामले में राज्य सरकार की तरफ से दायर एलपीए याचिका पर सुनवाई हुई. न्यायाधीश रंगन मुखोपाध्याय और न्यायाधीश राजेश शंकर की अदालत ने मामले पर सुनवाई की. सुनवाई के बाद आदेश को सुरक्षित रख लिया गया है.
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अदालत में सुनवाई के दौरान रंजीत कुमार शाह की ओर से अधिवक्ता सौरव शेखर ने अपना पक्ष रखते हुए कहा कि असिस्टेंट इंजीनियर की नियुक्ति में गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ देना उचित नहीं है. असिस्टेंट इंजीनियर की जो नियुक्ति हो रही है उसमें जो रिक्त पद हैं, वह 2019 से पूर्व का है और गरीब सवर्णों को आरक्षण देने का नियम 2019 में बना है. यह आरक्षण 2019 से लागू किया जा सकता है. इससे पूर्व के रिक्त पद पर यह नियम लागू नहीं किया जा सकता. इस याचिका को रद्द किया जाए और नए तरह से विज्ञापन निकालने का आदेश दिया जाए.
सिंगल बेंच के आदेश को रद्द करने की मांग
सरकार और आयोग की ओर से अधिवक्ता ने अदालत में अपना पक्ष रखते हुए कहा कि सरकार को यह अधिकार है कि वह चाहे तो आरक्षण दे सकती है. जब विज्ञापन निकाला जाता है उस समय जो नियम रहता है उसी के अनुरूप आरक्षण लागू किया जाता है. इस नियुक्ति के लिए विज्ञापन 2019 में निकाला गया उससे पूर्व ही आरक्षण संबंधी नियम बन चुका था और लागू भी कर दिया गया था. ऐसे में इस विज्ञापन में आरक्षण का लाभ दिया जाना कहीं से भी गलत नहीं है और एकल पीठ के आदेश को रद्द कर दिया जाए.
क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि झारखंड लोक सेवा आयोग ने वर्ष 2019 में असिस्टेंट इंजीनियर के 634 पदों पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन निकाला था जिसमें 10% गरीब सवर्णों को आरक्षण का लाभ दिया गया था. पीटी की परीक्षा ले ली गई. पीटी का रिजल्ट भी प्रकाशित कर दिया गया. मुख्य परीक्षा की तिथि 22 जनवरी 2021 को निर्धारित कर दी गई. इस बीच रंजीत कुमार शाह ने 10% गरीब सवर्णों को आरक्षण दिए जाने के विरोध में हाई कोर्ट में याचिका दायर की. अदालत ने मामले पर सुनवाई करते मुख्य परीक्षा से 1 दिन पूर्व अपना फैसला सुनाते हुए कहा था कि 10% सवर्णों को पूर्व के रिक्त पद पर आरक्षण देना उचित नहीं है. विज्ञापन को रद्द कर फिर से विज्ञापन निकालने का आदेश दिया है. उसी आदेश को राज्य सरकार की ओर से हाईकोर्ट के डबल बेंच में चुनौती दी गई, जिस पर सुनवाई पूर्ण कर अदालत ने आदेश सुरक्षित रख लिया है.