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झारखंड में कर्मचारियों के प्रमोशन का रास्ता साफ, हाई कोर्ट ने हटाई रोक - Ranchi News

Jharkhand High Court ने प्रोन्नति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए कर्मचारियों के प्रमोशन पर लगाई गई रोक को हटाने का आदेश दिया है. साथ ही मामले में राज्य सरकार की ओर से जवाब दाखिल की गई है, जबकि डीजीपी को जवाब देने के लिए दो सप्ताह का समय दिया गया है.

Jharkhand High Court
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Published : Aug 18, 2022, 6:41 PM IST

रांची: झारखंड हाई कोर्ट (Jharkhand High Court) के न्यायाधीश डॉ एसएन पाठक की अदालत में प्रोन्नति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई हुई. अदालत ने मामले में सभी पक्षों को सुनने के बाद मौखिक रूप से कर्मचारियों के प्रमोशन पर लगाई गई रोक को हटाने का आदेश दे दिया है. मामले में राज्य सरकार की ओर से जवाब दायर किया गया. डीजीपी की ओर से जवाब पेश नहीं किया जा सका जवाब पेश करने के लिए समय की मांग की गई. इस पर कोर्ट ने डीजीपी को जबाब दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है.

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राज्य सरकार के आदेश को दी गई है चुनौती:श्रीकांत दुबे और अन्य की ओर से झारखंड के डीजीपी और राज्य के प्रधान सचिव कार्मिक प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग के 3 जून 2022 के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. कोर्ट ने पिछली सुनवाई में आदेश दिया था कि प्रधान सचिव कार्मिक प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग और राज्य के डीजीपी शपथ पत्र दायर करके बताएं कि उक्त दोनों आदेश न्याय संगत हैं या नहीं.

क्या है पूरा मामला: 24 दिसंबर 2020 को राज्य सरकार ने फैसला लिया था कि किसी भी विभाग में अगले आदेश तक प्रोन्नति नहीं दी जाएगी. उस आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने 13 जनवरी 2022 को सरकार के 24 दिसंबर 2020 के आदेश को निरस्त कर दिया. साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया गया कि सभी विभागों में सक्षम पदाधिकारियों को प्रोन्नति का लाभ दिया जाए. इसके बाद 3 जून 2022 को राज्य सरकार के प्रधान सचिव कार्मिक प्रशासनिक सुधार एवं राजभाषा विभाग ने एक आदेश निकाला कि सभी विभागों में प्रोन्नति तत्काल प्रभाव से हटा दिया जाएगा. साथ ही यह शर्त लगा दिया कि एसटी/एससी के कर्मी जनरल कैडर में भी वरीयता के आधार पर प्रोन्नति ले सकते हैं. इसके आलोक में राज्य के डीजीपी ने 23 जून 2022 को एक आदेश निकाला, जिसमें एएसआई से एसआई के लिए सभी वाहिनी एवं जिला में मनोनयन की मांग की गई थी. डीजीपी और प्रधान सचिव कार्मिक प्रशासनिक एवं सुधार राजभाषा विभाग के आदेश को प्रार्थी ने हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

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