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महिला आरक्षियों की प्रोन्नति मामले में सरकार के जवाब पर हाई कोर्ट नाराज, पढ़ें पूरी खबर

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Published : Jan 15, 2021, 12:10 AM IST

जैप-10 में महिला आरक्षियों को प्रोन्नति नहीं दिए जाने के मामले में डीएसपी रैंक के अधिकारी के शपथपत्र दाखिल किए जाने पर गुरुवार को हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की. झारखंड हाई कोर्ट के जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने आईजी स्तर के एक अधिकारी को शपथपत्र दाखिल कर यह बताने को कहा कि जैप-10 की महिला आरक्षी को पदोन्नति क्यों नहीं दी जा रही है?

jharkhand High court angry over  government's response in promotion of women constables case
महिला आरक्षियों की प्रोन्नति मामले में सरकार के जवाब पर हाई कोर्ट नाराज

रांची: जैप-10 में महिला आरक्षियों को प्रोन्नति नहीं दिए जाने के मामले में डीएसपी रैंक के अधिकारी के शपथपत्र दाखिल किए जाने पर गुरुवार को हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर की. जस्टिस एसके द्विवेदी की अदालत ने आईजी स्तर के एक अधिकारी को शपथपत्र दाखिल कर यह बताने को कहा कि जैप-10 की महिला आरक्षी को पदोन्नति क्यों नहीं दी जा रही है? हाईकोर्ट ने चार सप्ताह बाद आईजी को शपथपत्र दाखिल कर जानकारी देने का निर्देश दिया है.

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जैप-10 की महिला आरक्षियों की ओर से दाखिल याचिका में याचिकाकर्ताओं की ओर से पक्ष रखते हुए अधिवक्ता सुभाशीष रसिक सोरेन ने अदालत को बताया कि महिला पुलिसकर्मियों की 2004 में नियुक्ति जैप-10 महिला बटालियन में हुई है, लेकिन अभी तक उन्हें प्रोन्नति नहीं दी गई है. जिस समय नियुक्ति हुई उस समय पुरुष और महिला दोनों की वरीयता सूची एक साथ तैयार की गई थी. एडीजी के आदेश पर 2017 में पुरुष व महिला पुलिसकर्मियों की वरीयता सूची को अलग-अलग कर दिया गया. महिला कांस्टेबल को क्लोज कैडर में रख दिया गया. सोरेन ने बताया कि यह नियमों का उल्लंघन है. किस नियमावली के तहत महिला आरक्षियों को क्लोज कैडर में रखा गया है यह नहीं बताया गया है. जैप-10 की कमांडेंट ने भी एक आदेश में कहा है कि महिलाओं को क्लोज कैडर में रखे जाने का कोई कानून नहीं है. सुनवाई के दौरान सरकार की ओर से जैप 10 के एक डीएसपी की ओर से शपथपत्र दाखिल कर बताया गया कि यह पद क्लोज कैडर का है. इस पर कोर्ट ने नाराजगी जताई और कहा कि डीएसपी स्तर के अधिकारी को इस मामले में शपथपत्र दाखिल नहीं करना चाहिए. अदालत ने आईजी स्तर के अधिकारी को शपथपत्र दाखिल करने का निर्देश दिया और सुनवाई की तारीख चार सप्ताह बाद निर्धारित की.

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