रांची:झारखंड में इस वर्ष भी सामान्य से काफी कम वर्षा हुई है. राज्य के 24 में से 22 जिलों में स्थिति बेहद खराब है. ऐसे में अब तक धान की खेती करने वाले किसानों को राज्य सरकार मोटे अनाज (मिलेट्स) की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है.
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अंतर्राष्ट्रीय मिलेट्स वर्ष 2023 में भारत सरकार भी राज्य सरकार की मदद कर रही है. भारत सरकार की ओर से 9000 किलोग्राम 'श्रीअन्न' (Millets) के बीज झारखंड को दिए हैं. जिसे प्रखंड स्तर पर मिनी किट बनाकर किसानों के बीच वितरित किया गया है. राज्य सरकार ने अपने स्तर से भी किसानों को मड़ुआ, ज्वार और बाजरा के बीज उपलब्ध करा रही है. ताकि किसान मोटे अनाज की खेती की ओर आकर्षित हों.
48 हजार हेक्टेयर में होगी खेती:राज्य में 28 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है. इसमें मोटे अनाज सिर्फ 2200 हेक्टेयर में होती है. अब झारखंड सरकार ने लक्ष्य रखा है कि इस वर्ष कम से कम 53 हजार हेक्टेयर में 'श्रीअन्न' यानी मोटे अनाज की खेती की जाएगी. जिसमें अकेले मड़ुआ की खेती 48 हजार हेक्टेयर में होगी. राज्य सरकार ने मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने के लिए 50 करोड़ की राशि का अलग से बजट भी रखा है.
वैश्विक स्तर पर हो रहे प्रयास:रांची में कृषि पदाधिकारी राम शंकर सिंह कहते हैं कि कई कारण हैं जिस वजह से धान, गेंहू की जगह मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लगातार कम होते वर्षापात में मोटे अनाज की खेती आसानी से की जा सकती है. जलवायु के अनुकूल होने की वजह से मोटे अनाजों पर क्लाइमेट चेंज का कोई खास असर नहीं होता. इसलिए इसकी खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है.
रसायन का साइड इफेक्ट शुरू:कृषि पदाधिकारी ने बताया कि इसके साथ-साथ यह भी देखा गया है कि हरित क्रांति के बाद धान और गेंहू की पैदावार काफी बढ़ी है. इसका उपयोग भी बढ़ा है. इसकी उपज बढ़ाने में इस्तेमाल किये गए उर्वरक और रसायन का साइड इफ़ेक्ट मानव स्वास्थ्य पर पड़ना शुरू हो गया है. डिजीज बढ़ें हैं. ऐसे में कई तरह के न्यूट्रियंट्स, माइक्रो न्यूट्रियंट्स, अच्छे किस्म के फाइबर्स प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की वजह से मोटे अनाज स्वास्थ्य के लिए काफी अच्छे होते हैं.
अनाज की खेती से बढ़ेगी आय:कृषि विशेषज्ञ रामशंकर सिंह कहते हैं कि इसके साथ साथ यह जमीन की उर्वरा शक्ति को बनाये रखने में मदद करता है. इतने सारे लाभ को देखते हुए ही दुनिया मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देने में लगी है. उन्होंने कहा कि झारखंड के संदर्भ में तो ये और भी जरूरी है क्योंकि यहां के किसान मोनो क्रॉप यानी एक फसल ही उगाते हैं. ऐसे में मोटे अनाज की खेती उनकी आय का एक दूसरा स्रोत बन सकता है.
बीएयू कर रहा किसानों की मदद:राज्य में मोटे अनाज की खेती करने के लिए सरकार जहां कई कार्यक्रम चला रही है. वहीं बिरसा कृषि विश्वविद्यालय तकनीकी सहायता के साथ साथ झारखंड की आवोहवा के अनुसार अच्छी उपज देने वाले मोटे अनाजों की बीज विकसित कर किसानों को उपलब्ध करा रही है.
क्या कहते नोडल अधिकारी अरुण:BAU में चल रहे मिलेट्स शोध कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ अरुण कुमार कहते हैं कि राज्य में मिलेट्स की खेती की असीम संभावनाएं हैं.आज जिस तरह से लोग स्वास्थ्य को लेकर जागरूक हुए हैं और दुनिया भर में मोटे अनाज और उसके उत्पादों की मांगें बढ़ी है. वैसे में अगर राज्य के किसानों ने मोटे अनाज की खेती को उसी जोश और उत्साह से अपनाया जैसे वह धान की खेती करते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब मोटे अनाज के बल पर राज्य के अन्नदाता खुशहाल होंगे.