रांची: झारखंड के सरकारी स्कूल दो साल बाद अभी गुलजार होना शुरू ही हुए थे कि उनकी पढ़ाई में फिर रुकावट होने लगी है. इन दिनों राज्य के सरकारी स्कूलों में छह घंटे की क्लास भी नहीं चल पा रही है. इसका कारण है सरकारी स्कूलों में संचालित होने वाले मध्याह्न भोजन के संचालन में रुकावट आना. मध्याह्न भोजन के संचालन के लिए स्कूल प्रबंधन के पास पैसे नहीं हैं और मध्याह्न भोजन में आ रही दिक्कतों की वजह से बच्चे स्कूल में रुकना नहीं चाहते हैं.
उधार के निवाले से भरेगा मासूमों का पेट! सरकारी स्कूलों से वापस लिए गए सारे फंड
कोरोना के कारण लंबे समय बाद स्कूल खुले हैं, लेकिन झारखंड के सरकारी स्कूलों में मिड डे मिल का संचालन बाधित हो गया है. जिसके कारण बच्चों की पढ़ाई भी बाधित हो रही है. सरकार ने सरकारी स्कूलों से सारे फंड वापस ले लिए थे, जिससे प्रबंधन के पास मध्याह्न भोजन के लिए पैसे नहीं हैं.
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विद्यालय प्रबंधन समिति के खाते में जीरो बैलेंस: दरअलस, कुछ दिनों पहले झारखंड सरकार ने सभी स्कूलों के विद्यालय प्रबंधन समिति के खाते को जीरो बैलेंस कर राशि वापस मंगा ली है. स्कूल इसी विद्यालय प्रबंधन समिति के पैसे से मिड डे मील एमडीएम (Mid Day Meal MDM) का संचालन करती है. पैसे वापस लिए जाने की वजह से आज स्कूल प्रबंधन के पास एक रुपये भी नहीं है कि वह मध्याह्न भोजन का संचालन कर सके. इसके बाद भी सरकार ने प्रधानाध्यापकों को यह निर्देशित किया है कि वे उधार पर एमडीएम का संचालन करें, खर्च के अनुसार उन्हें राशि का भुगतान किया जाएगा. शिक्षा मंत्री ने भी डीईओ-डीएसई के साथ हुई मीटिंग में यह कहा है कि स्कूलों से जो 450 करोड़ रुपये वापस मंगाये गये हैं. वे इस बात के प्रमाण हैं कि स्कूलों ने इन पैसों को खर्च ही नहीं किया, इसलिए अब पहले स्कूल खर्च दिखाएं, इसके बाद उन्हें पैसे का भुगतान किया जाएगा. इसलिए अब उधार के पैसे से मध्याह्न भोजन की व्यवस्था चल रही है. शिक्षकों की मानें तो उन्हें अपने जेब से पैसे लगा कर मध्याह्न भोजन योजना को संचालित करना पड़ रहा है.
स्कूलों में एमडीएम की स्थिति:शिक्षकों से मिली जानकारी के अनुसार विभाग की ओर से एमडीएम योजना के तहत स्कूलों को चावल उपलब्ध करा दिया जा रहा है. लेकिन सब्जी-दाल आदि के लिए पैसे नहीं दिए जा रहे हैं. स्कूलों को अंडा का पैसा दिया गया है. चावल के अलावा अन्य खर्च के लिए शिक्षकों को जेब से पैसे लगाने पड़ रहे हैं. इसके बाद होने वाले खर्च का बिल बना कर दिया जाता है. उसके बाद पैसे का भुगतान होता है. बिल बना कर देने और पैसे का भुगतान होने तक शिक्षकों की स्थिति ऐसी हो जा रही है कि उन्हें मध्याह्न भोजन संचालित करने के लिए उधार लेना पड़ रहा है. इसके बाद भी राज्य के तीन चौथाई स्कूलों में एमडीएम नहीं बन रहा है.