जानकारी देते शिशु रोग विशेषज्ञ युवा डॉक्टर मृत्युंजय एवं अन्य रांची:झारखंड में डॉक्टरों का पलायन जारी है. जिसका असर राज्य के स्वास्थ्य व्यवस्था पर पड़ रहा है. डिजिटल युग में जिस तेजी से चीजें बदल रहीं हैं, चिकित्सकों के विचार भी उसी स्पीड से चेंज हो रहे हैं. युवा डॉक्टरों में सेवा की अहमियत कम होती जा रही है. इन नए धरती के भगवान के लिए अब पैसा ही परमो धर्म: बन गया है.
राज्यों में डॉक्टरों की घोर कमी: झारखंड में सरकारी स्वास्थ्य सेवा की स्थिति लचर बनी हुई है. इसकी सबसे बड़ी वजहडॉक्टरों की कमी को बताया जा रहा है. राज्य की जनसंख्या के अनुपात में सरकारी चिकित्सा उपलब्ध नहीं है. इसका असर राज्य की चिकित्सा व्यवस्था पर भी पड़ता है. यही कारण है कि राज्य की स्वास्थ्य प्रणाली हाशिये पर जा रही है. आखिर बिना पर्याप्त डॉक्टरों के मरीजों को इलाज कैसे होगा?
चिकित्सकों की कमी का ये कारण: झारखंड के युवा डॉक्टरों को सरकारी नौकरी रास नहीं आ रही है. कुछ दिन सेवा देने के बाद वे पलायन कर जा रहे है. ज्यादातर युवा चिकित्सक प्राइवेट की ओर रुख कर रहे हैं. सरकार और स्वास्थ्य महकमा चिकित्सकों की कमी दूर करने के लिए लगातार कोशिश करती रहती है. डॉक्टर्स सरकारी सेवा में आते भी हैं. लेकिन जितने डॉक्टर्स सेवा में आते हैं उनमें से बड़ी संख्या में धीरे-धीरे जॉब छोड़ देते हैं. सदर अस्पताल में शिशु रोग विशेषज्ञ युवा डॉक्टर मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि कॉरपोरेट अस्पतालों में चिकित्सक को अच्छे पैकेज ऑफर और बेहतर सुविधाएं मिलती हैं. इसी कारण कुछ दिन नौकरी करने के बाद वो झारखंड से पलायन कर जाते हैं या फिर नौकरी होने के बाद भी ज्वाइन नहीं करते.
क्या कहते है आंकड़े:डॉक्टर मृत्युंजय कुमार सिंह ने कहा कि पांच वर्ष पहले शिशु रोग विशेषज्ञों की 200 पदों के लिए वैकेंसी निकली थी. जिसमें 70 लोगों ने इंटरव्यू दिया. इसमें केवल 36 लोगों ने ही ज्वाइन किया. कहा कि इन 36 लोगों में भी कईयों ने नौकरी छोड़ दी.
वहीं 2022-23 में JPSC ने 252 मेडिकल अफसर की वैकेंसी निकाली थी. उसमें करीब 1200 डॉक्टरों ने आवेदन दिया था. जेपीएससी ने 600 के करीब युवा डॉक्टर का साक्षात्कार लिया और 172 सफल डॉक्टरों की सूची जारी की. इनमें केवल 133 लोग ही प्रशिक्षण में भाग लिए. 39 लोगों ने दूरी बना ली.
ऐसे रुक सकता पलायन:युवा डॉक्टरी की पढ़ाई कर निकल रहे हैं उन्हें एक लाख -डेढ़ लाख की सैलरी निजी अस्पतालों से ही आफर कर दी जाती है. जबकि सरकारी सेवा में 65-70 हजार प्रति महीना ही मिल पाता है. ऐसे में डॉक्टर कैसे सरकारी सेवा में टिकेगा? सरकार को सैलरी, सुविधा और सुरक्षा तीनों बढ़ानी होगी, तभी चिकित्सकों का पलायन रुक सकता है.
वहीं झारखंड स्टेट हेल्थ सर्विसेस एसोसिएशन के सदस्य डॉ सतेंद्र कुमार कहते हैं कि आज की तारीख में मेडिकल की पढ़ाई महंगी हो गयी है. क्रीम ब्रेन वाले विद्यार्थी ही ज़्यादातर डॉक्टरी की पढ़ाई करते हैं. जब वह कठिन पढ़ाई कर डॉक्टर बनते हैं तो उनके सपने भी ऊंचे होते हैं. ये सपने सरकारी सेवाओं से पूरे नहीं होते. झारखंड में दूर दराज के इलाके में अवस्थित CHC और PHC में उन्हें सेवा देना पसंद नहीं करते. डॉ सतेंद्र कहते हैं कि डॉक्टर्स के लिए सरकार को स्मार्ट सैलरी, सुरक्षा और ब्लॉक स्तर पर सुविधाएं बढ़ानी होगी, तभी युवा चिकित्सकों को सरकार पलायन से रोक पाएगी.