रांची:मानसून सत्र के पांचवे दिन मुख्य विपक्षी दल भाजपा ने झारखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम एवं निवारण के उपाय) विधेयक, 2023 पर जमकर बवाल काटा. संशोधन प्रस्ताव अस्वीकृत होने पर भाजपा विधायकों ने वेल में आकर बिल की कॉपी फाड़ी और सदन से वॉक आउट कर दिया. भाजपा विधायकों ने इस बिल की तुलना रॉलेट एक्ट से की और इसे काला कानून बताया. हालांकि विधायक विनोद सिंह और प्रदीप यादव द्वारा परीक्षार्थियों के नकल करते पकड़े जाने पर सजा की अवधि में कटौती के सुझाव को सरकार ने मान लिया.लेकिन नकल करते पकड़े जाने पर जांच से पहले गिरफ्तारी नहीं किए जाने के सुझाव को सरकार ने नकार दिया.
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प्रभारी मंत्री आलमगीर आलम ने बिल की कॉपी सभा पटल पर रखी. इसको कुछ संशोधनों के साथ प्रवर समिति को भेजने के लिए भाकपा माले विधायक विनोद कुमार सिंह, आजसू विधायक लंबोदर महतो, भाजपा विधायक अनंत ओझा, अमर बाउरी, अमित कुमार मंडल और नवीन जायसवाल ने प्रस्ताव दिया. इस दौरान बिल की कॉपी में कई जगह अधिनियम की जगह अध्यादेश प्रिंट रहने पर सरकार की फजीहत भी हुई. विनोद सिंह ने स्पष्ट तौर पर कहा कि इसको देखने से लगता है कि बिल की कहीं से कॉपी की गई है.
परीक्षार्थी की सजा अवधि में कटौती: विधायकों के सुझाव पर बिल की धारा 12(1) में नकल करते पकड़े गये परीक्षार्थियों की सजा पर सरकार ने नरमी दिखाई है. इसमें संशोधन करते हुए पहली बार नकल करते पकड़े जाने पर 03 साल की जगह 01 साल की सजा और दूसरी बार पकड़े जाने पर 07 साल की जगह 03 साल की सजा होगी. हालांकि पहली बार पकड़े जाने पर पांच लाख का जुर्माना और नहीं देने पर नौ माह की अतिरिक्त सजा होगी. दूसरी बार पकड़े जाने पर दस लाख का जुर्माना और नहीं देने पर अतिरिक्त तीस माह की सजा होगी. परीक्षार्थी पर दोष साबित होने पर 10 साल तक प्रतियोगिता परीक्षा में बैठने नहीं दिया जाएगा.
प्रतियोगिता परीक्षा विधेयक पर क्या बोले सीएम: मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि हमारे विपक्षी साथी इस बिल पर गंभीर दिख रहे हैं. सरकार को गलत नहीं मान रहे हैं. साथ ही इसे काला कानून भी कह रहे हैं. इनको अपना काला चश्मा उतारना चाहिए. उन्होंने कहा कि एनडीए का कुनबा कैसा-कैसा कानून देश में लाता है, उसे पूरी दुनिया देख रही है. उन्होंने दिल्ली पर अध्यादेश और वन अधिकार कानून का भी जिक्र करते हुए निशाना साधा.
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मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि बड़े पैमाने पर सरकार वेकैंसी निकाल रही है. पहले करीब 70 प्रतिशत बाहरी बैकडोर से आ जाते थे, अब महज 20 प्रतिशत ही आ पा रहे हैं. उन्होंने कहा कि जहां कदाचार होगा, वहां कार्रवाई होगी. एक परीक्षार्थी की वजह से लाखों प्रभावित होते हैं. डर और भय उन संस्थाओं और परीक्षार्थियों पर होना चाहिए. उन्होंने कहा कि बदलाव जरूरी है. समय के साथ कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर में कई बदलाव आते हैं. हालांकि समर्थक दलों के विधायकों के सुझाव पर उन्होंने कहा कि अगर कुछ गड़बड़ लगेगा तो फिर विचार होगा.
किसको किस तरह की मिलेगी सजा: प्रतियोगी परीक्षाओं के दौरान प्रिंटिग प्रेस, परीक्षा कराने का प्रबंध तंत्र, परिवहन के लिए प्राधिकृत संस्था या व्यक्ति, कोचिंग संस्थान और अन्य षड़यंत्र में शामिल होते हैं तो दस साल से आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है. इनपर 02 करोड़ से 10 करोड़ तक के जुर्माना का प्रावधान है. जुर्माना नहीं देने पर अतिरिक्त 03 साल की सजा होगी. यदि कोई व्यक्ति संगठित अपराध में परीक्षा प्राधिकरण के साथ षड्यंत्र करता है या अधिनियम के उपबंधों का उल्लंघन करता है तो दस साल से आजीवन कारावास और 02 करोड़ से 10 करोड़ तक का जुर्माना लग सकता है. जुर्माना नहीं देने पर तीन साल की अतिरिक्त सजा होगी.
बिल की जरूरत पर क्या बोले मंत्री आलमगीर: उन्होंने कहा कि अकसर सुनने में आता है कि किसी दूसरे की तस्वीर लगाकर कोई और परीक्षा देने लगता है. इससे गरीब बच्चे प्रभावित होते हैं. उन्होंने कहा कि कदाचार रोकने, पेपर लीक को रोकने, इंविजीलेटर को डराने-धमकाने जैसे मामलों पर रोक लगेगी. ऐसे मामलों में कठोर दंड लगना ही चाहिए. यह सिर्फ परीक्षार्थी पर लागू नहीं होता है. इसके दायरे में प्रिटिंग प्रेस, कोचिंग संस्थान समेत अन्य भी शामिल हैं. उन्होंने कहा कि प्रतियोगी परीक्षा को प्रभावित होने से रोकने के लिए 10 वर्ष से आजीवन कारावास और 2 करोड़ से 10 करोड़ रु. तक जुर्माना का भी प्रावधान रखा गया है.
एनडीए विधायकों ने विरोध में क्या कहा: झारखंड प्रतियोगी परीक्षा (भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम एवं निवारण के उपाय) विधेयक, 2023 को एनडीए के विधायकों ने काला कानून बताया. अनंत ओझा ने कहा कि प्राथमिकी के लिए प्रारंभिक जांच की जरूरत नहीं समझी गई. डीसी,एसपी को जिम्मेवारी के दायरे में नहीं रखा गया है. गड़बड़ी उजागर करने वाले को क्यों आपराधिक कृत्य की श्रेणी में रखा गया है.
आजसू विधायक लंबोदर महतोने कहा कि राज्य में जब झारखंड परीक्षा संचालन अधिनियम, 2001 लागू है तो फिर अलग से कानून बनाने की क्या जरूरत है. परीक्षार्थी को नकल करते पकड़े जाने पर इतनी ज्यादा सजा कैसे दी जा सकती है. बिना वारंट के परीक्षार्थी को कैसे गिरफ्तार किया जा सकता है. धारा-33 के जरिए अधिकारियों को बचाने की कोशिश की गई है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का गाइडलाइन है कि सीआरपीसी के 41(A) के तहत कारण जाने बगैर जेल नहीं भेजा जा सकता है. लेकिन यहां उल्टा हो रहा है.
भाजपा विधायक अमर बाउरी ने कहा कि राज्य बनने के बाद से नियोजन की लड़ाई चल रही है. बहाली हो ही नहीं रही है. द्वितीय जेपीएससी का मामला आज भी कोर्ट में है. जेएसएससी मनमानी करता रहता है. इस बिल से जेपीएससी और जेएसएससी मनमानी करने लगेगा. इसमें आजीवन कारावास तक का प्रावधान है. यह छात्र हित में नहीं है.
भाजपा विधायक नवीन जयसवाल ने भी इसे काला कानून बताया. उन्होने कहा कि अगर परीक्षार्थी आवाज उठाता है तो इस बिल के जरिए उसकी आवाज दबा दी जाएगी. 26 हजार नौकरियां चोर दरवाजे से खोली जा रही हैं. अगर बिल पास हुआ तो छात्र सड़कों पर उतरेंगे. इस बिल में सुप्रीम कोर्ट के गाईडलाइन का भी उल्लंघन किया गया है.
बहरहाल, इस बिल में कुल 33 धाराएं हैं, जिनमें तलाशी, गिरफ्तारी की शक्ति, जांच के बाद आदेश, अपील, अपराधों की जांच, विशेष न्यायालयों के विचाराधीन मामले, नियम बनाने की शक्ति, निर्देश या आदेश जारी करने की शक्ति, परीक्षा केंद्र में प्रवेश का प्रतिषेध, परीक्षा केंद्र में उपकरणों को ले जाने का प्रतिषेध समेत अन्य बातों का जिक्र 33 धाराओं में विस्तार से किया गया है. राज्यपाल से स्वीकृति मिलने के बाद यह अधिनियम कानून का रूप ले लेगा. वैसे आजसू विधायक लंबोदर महतो ने कह दिया है कि वे पहले राज्यपाल से मिलकर इस बिल की कमियों पर प्रकाश डालें. इसके बावजूद अगर बात नहीं बनी तो कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.