रांची: कर्नाटक विधानसभा चुनाव के नतीजों ने देश की राजनीतिक दशा और दिशा बदल दी है. पीएम मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद कर्नाटक के लोगों ने भाजपा को सत्ता से बेदखल कर दिया. इस बदलाव ने 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्ष में उम्मीद की बड़ी किरण जगा दी है. इसका असली चेहरा 20 मई को बेंगलुरू के कांति राव स्टेडियम में देखने को मिल सकता है.
ये भी पढ़ें-सीएम हेमंत सोरेन को मिला सिद्धारमैया का न्यौता, शपथ ग्रहण समारोह के बहाने विपक्षी एकजुटता दिखाने की कोशिश!
शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने गैर भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों को विशेष तौर पर न्यौता भेजा है. इसमें झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का भी नाम शामिल है. यह बताने के लिए काफी है कि हेमंत सोरेन का राजनीतिक कद कितना बड़ा हो गया है. इसका इंडिकेशन 10 मई को ही मिल गया था, जब उनसे मिलने खुद बिहार के सीएम नीतीश कुमार और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव उनके आवास आ पहुंचे थे. करीब एक घंटे की चर्चा के बाद नीतीश कुमार ने कहा था कि 2024 का चुनाव विपक्ष मिलकर लड़ेगा और परिणाम पूरा देश देखेगा. उस वक्त सीएम हेमंत ने भी खुलकर कह दिया था कि वह अभिभावक तुल्य नीतीश कुमार के मार्गदर्शन में काम करने को तैयार हैं. हालांकि हेमंत सोरेन से मुलाकात के ठीक पहले नीतीश कुमार को ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक से इस बाबत किसी तरह का भरोसा नहीं मिला था.
अब सवाल है कि क्या वाकई हेमंत सोरेन ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी अलग पहचान बना ली है या जरूरत का हिस्सा भर हैं. आखिर वह भाजपा विरोधी विपक्षी एकता में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं, जबकि कई बार उनकी पार्टी खुद भाजपा के साथ झारखंड की सत्ता में रह चुकी है. झारखंड की राजनीति के जानकार वरिष्ठ पत्रकार बैजनाथ मिश्र का मानना है कि हेमंत सोरेन का बेंगलुरू जाना नैतिकता का हिस्सा है क्योंकि वह कांग्रेस के बूते झारखंड के सीएम बने हुए हैं. इसलिए इस आमंत्रण से यह आंकलन करना कि हेमंत सोरेन का कद राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा हुआ है, यह मुनासिब नहीं लगता. रही बात नीतीश कुमार की उनसे मुलाकात की तो उन्हें लगता है कि भले बयानबाजी विपक्षी एकजुटता को लेकर हुई लेकिन इस मुलाकात के पीछे नीतीश कुमार की मंशा झारखंड में जदयू के लिए स्पेस तलाशने की थी. क्योंकि कुछ दिन पहले ही जदयू के अध्यक्ष ललन सिंह भी आकर सीएम हेमंत से मिल चुके थे. रही बात विपक्षी एकजुटता की तो कांग्रेस ने यह संभावना तलाशने के लिए ऑथोराइज किया था. उन्होंने कहा कि कर्नाटक चुनाव के नतीजों से एक बात तो साफ हो गई है, अब कांग्रेस अपर साइड पर आ गई है. अब आगे क्या होगा, यह कहना मुश्किल है.