रांची:झारखंड में आदिवासी और कुर्मी समुदाय के बाद अब बंगाली समुदाय के लोग भी अपने हक और अधिकार के लिए आंदोलन और प्रदर्शन करते दिख रहे हैं. सोमवार को झारखंड बंगला भाषी उन्नयन समिति के बैनर तले राज्य भर के बंगाली समुदाय के लोगों ने मोरहाबादी से राजभवन तक रैली निकाली और झारखंड में बांग्ला भाषा को राजभाषा का दर्जा देने की मांग की.
झारखंड की दूसरी भाषा बांग्ला, पर बंगाली शिक्षकों की नियुक्ति नहींः इस संबंध में बंगभाषी उन्नयन समिति के अध्यक्ष अचिंतम गुप्ता ने कहा कि राज्य सरकार के द्वारा बांग्ला को दूसरी भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया है. इसके बावजूद झारखंड में बंगाली शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो रही है और ना ही बंगला स्कूलों में बंगाली पुस्तकें मुहैया करायी जा रही हैं. उन्होंने कहा कि झारखंड के विभिन्न प्रमंडलों में बांग्ला भाषी और बांग्ला समुदाय के लोगों की संख्या है, लेकिन इसके बावजूद ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले बच्चे बंगाली भाषा में पढ़ाई करने से वंचित हैं.
पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने दिया था आश्वासनःवहीं रैली में शामिल प्रवीर मुखर्जी ने कहा कि पूरे झारखंड में बांग्ला भाषी लोगों की संख्या करीब 40 प्रतिशत है. इसके बावजूद उनकी बातें नहीं सुनी जाती है. उन्होंने बताया कि पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन के पास बंग भाषी समाज के लोग अपनी समस्या लेकर गए थे. जिसके बाद पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने यह माना था कि झारखंड में बंगालियों की संख्या अधिक ही नहीं, बल्कि बंगाली समुदाय यहां के मूलवासी भी हैं. तत्कालीन मुख्यमंत्री शिबू सोरेन की तरफ से यह आश्वासन दिया गया था कि झारखंड में रहने वाले बांग्ला समुदाय के लोगों की मांगें पूरी की जाएगी, लेकिन अब तक इस पर कोई विचार नहीं किया जा सका है. कई सरकारें आईं और चली गई, लेकिन बांग्ला समुदाय की समस्या के लेकर किसी ने भी कोई ठोस कदम नहीं उठाया.
बांग्ला भाषा में पुस्तकें मुहैया कराए राज्य सरकारः राज्य में बांग्ला भाषा के स्कूलों के बेहतर संचालन और बच्चों को बांग्ला भाषा में पुस्तकें मुहैया कराने को लेकर रैली में पहुंचीं पुष्पा मुखर्जी ने कहा कि यदि सरकार झारखंड में बंद पड़े सभी बांग्ला स्कूलों को फिर से शुरू नहीं कराती है और बांग्ला भाषा में किताबें मुहैया नहीं कराती है तो और भी उग्र आंदोलन किया जाएगा.
झारखंड के 11 जिलों में बंगाली समुदाय के लोगों की अच्छी तादादः रैली में शामिल पंपा सेन विश्वास बताती हैं कि राज्य में 11 ऐसे जिले हैं, जहां पर बंगाली समुदाय के लोग चुनाव में किसी भी राजनीतिक पार्टी के लिए निर्णायक साबित हो सकते हैं, लेकिन इसके बावजूद कोई भी राजनीतिक पार्टी बांग्ला समुदाय के लिए आगे नहीं आ रही है. चुनाव के दौरान वोट लेने के लिए बड़े-बड़े वादे किए जाते हैं, लेकिन जब जीत कर सदन में जाते हैं तो वादे को भूल जाते हैं.