रांची:छह दशक से ज्यादा समय तक देश की सत्ता की बागडोर संभालने वाली कॉन्ग्रेस पार्टी की साख समय के साथ कम होने लगी है. लगातार दो लोकसभा चुनाव हारने वाली पार्टी 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' की स्थिति अब पिछलग्गू पार्टी की तरह हो गई है. आखिर क्यों पार्टी के कई प्रदेश अध्यक्षों ने नाता तोड़ लिया, लेकिन जब इनमें से कुछ ने पार्टी में वापसी की कोशिश की तो अपनों ने ही विरोध करना शुरू कर दिया.
कांग्रेस क्यों कमजोर हो गई है. पार्टी में मास लीडर क्यों नहीं दिखता. जनता के बीच साख खोने के पीछे कि आखिर क्या वजह है. ऐसे ही कई सवालों के साथ हमारे वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने झारखंड के वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुबोध कांत सहाय से बातचीत की. सुबोधकांत सहाय का मानना है कि झारखंड में कांग्रेस की भूमिका पिछलग्गू पार्टी के रूप में नहीं बल्कि मार्गदर्शक के रुप में रही हैं. जहां तक परफॉर्मेंस की बात है तो इस मोर्चे पर पार्टी को जरूर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इसकी खास वजह है संघ और भाजपा की तथाकथित सांप्रदायिक सोच. कांग्रेस एकजुटता की राजनीति करती है और भाजपा विभाजन की. इस वजह से कांग्रेस को दो मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ता है.