रांचीः झारखंड में नक्सलियों का आतंक हमेशा से रहा है. झारखंड पुलिस नक्सली गतिविधियों पर लगाम लगाने के लिए हरमुमकिन कोशिश कर रही है. लगातार कार्रवाई सख्ती की वजह से झारखंड में नक्सली संगठन कमजोर हो रहे हैं. लेकिन अब झारखंड सरकार की आत्मसमर्पण नीति उन नक्सलियों के लिए समाज की मुख्यधारा में लौटने का एक सुनहरा मौका के जैसा है. जिससे वो शांति के साथ अपनी बाकी की जिंदगी बसर कर सकते हैं. इनामी नक्सली महाराज प्रमाणिक का आत्मसमर्पण इसी कड़ी में एक मील का पत्थर साबित हो रहा है.
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साल 2006 से झारखंड पुलिस के लिए चुनौती बने हुए भाकपा माओवादी जोनल कमांडर महाराज प्रमाणिक ने आखिरकार पुलिस के सामने अपने हथियार डाल दिए. कभी पुलिस में बहाल होने की इच्छा रखने वाला महाराज प्रमाणिक उर्फ अशोक अपनी मां के ऊपर हुए अत्याचार का बदला लेने के लिए हथियार थाम लिया. एके-47 लेकर सरेंडर करने पहुंचे नक्सली महाराज प्रमाणिक ने आत्मसमर्पण करने के बाद जंगल में चल रहे वर्तमान हालात की जानकारी साझा की, जिसमें उसने अपने नक्सली बनने की कहानी भी बताई. महाराज प्रमाणिक ने स्वीकारोक्ति बयान में बताया है कि वह सरायकेला के चांडिल स्थित एसबी कॉलेज से गणित ऑनर्स की पढ़ाई कर रहा था, पुलिस में बहाल होने के लिए उसने एनसीसी का बी-सर्टिफिकेट भी लिया था ताकि उसे पुलिस बहाली में अतिरिक्त अंक मिल सके.
नक्सली महाराज प्रमाणिक की मां आंगनबाड़ी सेविका थीं, उसी दौरान उनके द्वारा गांव में एक चबूतरे का निर्माण किया जा रहा था. चबूतरे का निर्माण को लेकर हुए विवाद में गांव के कुछ लोगों ने महाराज की मां की हत्या की सुपारी दे दी. सुपारी लेकर हत्यारे उसकी मां की हत्या करने के लिए उसे घर भी पहुंचे. लेकिन उस दौरान उसकी मां घर पर नहीं थी ऐसे में उसकी जान बच गयी. लेकिन बाद में इसी विवाद में महाराज को जेल जाना पड़ा. जेल जाने की वजह से महाराज प्रमाणिक का पुलिस में बहाल होने का सपना चकनाचूर हो गया.
जेल से छूटने के बाद संगठन के संपर्क में आयाः जेल से बाहर आने के बाद भी महाराज की दुश्मनी खत्म नहीं हुई. इसके लिए कई दफे पंचायत भी बैठी लेकिन फैसला नहीं हो सका और कुछ लोग महाराज के दुश्मन बन बैठे. महाराज के अनुसार उस दौरान गांव में संगठन के लोग आकर जन अदालत लगाते थे और फैसले किया करते थे. अपने ऊपर हुए अन्याय को लेकर वह उस दौरान के भाकपा माओवादियों के एरिया कमांडर रामविलास लोहरा के संपर्क में आया. रामविलास लोहरा ने महाराज को संगठन में आकर अन्याय का बदला लेने को कहा उसके बाद उसकी मुलाकात उस समय के कुख्यात माओवादी डेविड और मार्शल टूटी से भी हुई. जिसके बाद वह उनके प्रभाव में आकर माओवादी दस्ते में शामिल हो गया.
इसके बाद एक साल तक कई युवकों को माओवादी संगठन से जोड़ा. नक्सली महाराज प्रमाणिक ने बताया है कि साल 2011 में कुंदन पाहन से मुलाकात के बाद उसे एरिया कमांडर बनाया गया था. 2011 में कोटेश्वर राव समेत बड़े माओवादियों को बंगाल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उसे मिली थी. उस जिम्मेदारी को निभाने के बाद उसे सबजोनल कमांडर बनाया गया. साथ ही अनल दा ने अपने साथ रख लिया, इस दौरान उसकी मुलाकात प्रशांत बोस से भी करायी गयी थी.