रांचीः झारखंड में औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान यानी आईटीआई जुगाड़ से चल रहा है. हालत यह है कि 20 साल में एक भी प्रिंसिपल और प्रशिक्षक की नियुक्ति नहीं हो सकी है. ऐसे में इन संस्थानों में हर वर्ष हजारों विद्यार्थियों की ट्रेनिंग भगवान भरोसे चलती है.
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झारखंड में संचालित सरकारी औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान यानी आईटीआई भगवान भरोसे चल रहा है. यह वही संस्थान है, जहां युवा अपने हुनर को तराशकर देशभर के तकनीकी संस्थानों में अपने करियर की शुरुआत करते हैं. मगर सरकारी सिस्टम का हाल देखिए कि आईटीआई कैंपस में धूल फांक रही मशीनों को साफ करनेवाला एक अदना-सा कर्मचारी तक विभाग को मयस्सर नहीं है. जब कर्मशाला में ट्रेनर ही नहीं रहेंगे तो बच्चे कैसे हुनरमंद होंगे, इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है.
राज्य में 59 आईटीआई कॉलेजझारखंड में 59 आईटीआई हैं. सभी आईटीआई की कमोबेश यही स्थिति है. कहीं मशीन है तो अनुदेशक नहीं तो किसी के पास बिल्डिंग ही नहीं है. इतना ही नहीं राज्य के 59 आईटीआई कॉलेजों में 55 कॉलेज के पास प्रिंसिपल तक नहीं है. प्रभारी प्राचार्य के भरोसे आईटीआई कॉलेजों में पढ़ाई किसी तरह चल रही है.
बिना प्रशिक्षक के आईटीआई सूना
आसपास के आईटीआई में तैनात प्रशिक्षक एक-दूसरे के पास जाकर घंटी के हिसाब से पढ़ाते हैं. मैनपावर की कमी से जूझ रहे रांची के हेहल स्थित आईटीआई के मुख्य प्रभारी प्राचार्य साधु चरण प्रधान की मानें तो इस संस्थान में 163 की जगह मात्र 62 कर्मी कार्यरत हैं. ऐसे में ट्रेनिंग कार्य पर असर पड़ रहा है, साथ बच्चों के प्रशिक्षण पर इसका बुरा असर पड़ता है.
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59 आईटीआई में मात्र 4 प्राचार्य
बदहाली का आलम यह है कि राज्य के कुछ आईटीआई में मात्र एक कर्मी के भरोसे काम चल रहा है. वहीं विभाग में ट्रेनिंग का निरीक्षण का जिम्मेदारी संभालने वाले उपनिदेशक रैंक के अधिकारी 10 जगहों पर पदस्थापित हैं. आईटीआई हेहल के मुख्य ट्रेनिंग ऑफिसर देवेंद्र प्रसाद सिंह की मानें तो राज्य गठन के बाद से आईटीआई संस्थाओं की संख्या तो बढ़ी, पर मैनपावर घटते चले गए. इस वजह से विद्यार्थियों की पढाई प्रभावित हो रहा है.
औद्योगिक प्रशिक्षण संस्थान बदहाल का हाल साल 2016 में राज्य में 32 नए आईटीआई खोले गए, जिसमें 4 ट्रेड की शुरुआत हुई थी. प्रत्येक वर्ष 9000 स्टूडेंट हर आईटीआई में एडमिशन लेते हैं. सरकार ने आइटीआई तो खोल दिया, ट्रेड भी बढ़ा दिए, मगर इसकी पढॉाई कैसे होगी इसके लिए शिक्षक और प्रशिक्षकों की नियुक्ति नहीं की. ऐसे में 50% से अधिक प्रशिक्षक के पद खाली हैं और छात्रों की पढ़ाई कागज पर पूरा करा दी जाती है.
इतना ही नहीं कई आईटीआई कॉलेज के भवन जर्जर हो चुके हैं, इनके पुनर्निर्माण और मरम्मतीकरण पर सरकार का ध्यान नहीं है. इसके बावजूद इन ट्रेडों में पढ़ाई पूरा कर लेने का दावा किया जाता है. सवाल ये उठता है कि इलेक्ट्रिशियन, फीटर, डीजल मैकेनिक, वेल्डर, टर्नर, वायरमैन, रेडियो, टीवी, मशीनिस्ट, वायरलेस ऑपरेटर की पढ़ाई आखिर बिना कुशल ट्रेनर के कैसे होगी. आखिर बच्चों को तकनीकी ज्ञान कहां से मिलेगा.
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सरकारी ITI संस्थाओं की हकीकत
झारखंड के 59 आईटीआई कॉलेजों में 55 में प्राचार्य नहीं है. महज 5 संस्थान के पास ही प्रिंसिपल है. रांची के हेहल स्थित आईटीआई में 163 की जगह 62 कर्मी कार्यरत है. आईटीआई संस्थानों में 1400 मैनपावर चाहिए, जिसमें मात्र 468 कर्मचारी कार्यरत हैं. गैर-तकनीकी अधिकारी को प्रिसिंपल का प्रभार प्राप्त है. एक-एक प्रभारी प्रिंसिपल कई जगह के प्रभार में हैं. एक उप निदेशक को 10 आईटीआई का प्रभार मिला हुआ है. 2016 में राज्य में 32 नये आईटीआई खोले गये जिसमें 4 ट्रेड की शुरुआत हुई. हर साल 9000 स्टूडेंट हर आईटीआई में एडमिशन लेते हैं.
मशीन चलाने वाले प्रशिक्षक नहीं राज्य गठन के समय से झारखंड में 27 आईटीआई संचालित थे. जिसके बाद साल 2016 में रघुवर सरकार के कार्यकाल में 32 नए आईटीआई खोलने का फैसला लिया. लेकिन इनका संचालन का जिम्मा भी उन्हीं कर्मियों के भरोसे छोड़ दिया गया, जो पहले से काम कर रहे थे, कोई नई नियुक्ति नहीं की गई. ऐसे में पहले से मैनपावर और संसाधनों की कमी झेल रहे इन आईटीआई संस्थानों की स्थिति बद से बदतर होती चली गई.