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राज्यसभा चुनाव: सियासी घमासान का पड़ सकता है प्रभाव, हर दिन बदल रहा है समीकरण

ईडी की कार्रवाई, ऑफिस ऑफ प्रॉफिट मामले और बाबूलाल के दलबदल मामले को लेकर पिछले कुछ दिनों से झारखंड की सियासत गर्म है. इस गर्माहट को राज्यसभा चुनाव ने और बढ़ा दिया है. क्योंकि यहां हर दिन समीकरण बदल रहे हैं.

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Published : May 17, 2022, 7:24 PM IST

रांची: झारखंड में 10 जून को राज्यसभा की दो सीटों पर चुनाव होने जा रहा है. इस चुनाव के बेहद रोचक होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है. इसकी वजह है झारखंड में चल रहा सियासी घमासान, जो हार-जीत के आंकड़ों और समीकरण को नया रूप दे सकता है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट की तलवार लटक रही है. आय से अधिक संपत्ति और शेल कंपनियों में हिस्सेदारी से जुड़ी याचिका हाईकोर्ट में है.

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झामुमो विधायक बसंत सोरेन और मिथिलेश ठाकुर पर ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के उल्लंघन की चुनाव आयोग से शिकायत के बाद रिपोर्ट और जवाब देने की कवायद चल रही है. दूसरी तरफ भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी पर दलबदल का मामला चल रहा है. इस बीच झारखंड कैडर की सीनियर आईएएस पूजा सिंघल के खिलाफ ईडी की तफ्तीश के बढ़ते दायरे ने राजनीति और ब्यूरोक्रेसी में खलबली मचा रखी है. इसकी जद में कई सफेदपोश के भी आने की संभावना है. इस उठापटक का राज्यसभा की दो सीटों के चुनाव पर असर पड़ना तय माना जा रहा है.

वर्तमान में विधानसभा में विधायकों की संख्या 80 है. आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा मिलने के बाद कांग्रेस विधायक बंधु तिर्की की सदस्यता रद्द होने की वजह से एक सीट कम हो चुकी है. भाजपा के सिंदरी विधायक इंद्रजीत महतो लंबे समय से हैदराबाद के एआईजी अस्पताल में भर्ती हैं. लिहाजा, वोटिंग के दिन उनका उपस्थित रहना न के बराबर है. ऐसे में कुल 79 विधायकों के मत के आधार पर हार जीत तय होनी है. एक सीट को जीतने के लिए पहली वरीयता के 27.33 मतों की जरूरत होगी.

सत्ताधारी गठबंधन में झामुमो के 30, कांग्रेस के 17 और राजद का एक विधायक है. ऐसे में सत्ताधारी दल के लिए एक सीट तो तय है. दूसरी सीट के लिए उसके पास पहली प्राथमिकता के 21 वोट बचेंगे. भाकपा माले का साथ मिलने पर 22 वोट हो जाएंगे. लेकिन दूसरी सीट जीतने के लिए यह नाकाफी है. सत्ताधारी गठबंधन को दूसरी सीट पर जीत के लिए और पांच विधायकों के वोट की दरकार होगी. एनसीपी का सरकार को समर्थन है. लेकिन वोट मिलने की गारंटी नहीं है. निर्दलीय विधायक सरयू राय और अमित यादव का स्टैंड क्लियर नहीं है. वहीं आजसू के दो विधायकों का वोट मिलना न के बराबर है.

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दूसरी तरफ भाजपा के 26 विधायक हैं. इसमें बाबूलाल मरांडी की सदस्यता को लेकर संशय बना हुआ है. भाजपा विधायक इंद्रजीत महतो भी अस्पताल में जिंदगी से जूझ रहे हैं. कांके से भाजपा विधायक समरी लाल की सदस्यता भी खतरे में है. जाति छानबीन समिति ने उनके अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र को निरस्त कर दिया है. गवर्नर से मिलकर सत्ता पक्ष उनकी सदस्यता रद्द करने की मांग कर चुका है. हालाकि यह मामला हाईकोर्ट में चला गया है और अगली सुनवाई की तारीख 29 जून तय कर दी है. इस, लिहाज से समरी लाल का 10 जून के वोटिंग में शामिल होना तय है. फिर भी भाजपा को एक सीट पर कब्जा करने के लिए पहली वरीयता के कम से कम तीन और वोट की दरकार होगी. इसके लिए उसे आजसू के सुदेश महतो और लंबोदर महतो के अलावा एनसीपी के कमलेश सिंह, निर्दलीय विधायक सरयू राय या अमित यादव में से किसी एक का विश्वास हासिल करना होगा. अगर इस खेमे में बात नहीं बनी तो भाजपा का समीकरण बिगड़ भी सकता है.

सबसे खास बात है कि झारखंड में राज्य सभा चुनावों के दौरान क्रॉस वोटिंग का खेल होता आया है. वर्तमान में जो दो सीटे खाली हो रहीं हैं, उनमें से महेश पोद्दार वाली सीट पर 2016 के चुनाव में जीत मुश्किल दिख रही थी. क्योंकि वोट का अंकगणित भाजपा के फेवर में नहीं था. दूसरी तरफ मुख्य विपक्षी दल झामुमो अपने प्रत्याशी बसंत सोरेन की जीत को लेकर आश्वस्त था. फिर भी खेल हो गया. झामुमो के चमरा लिंडा बीमार पड़ गये. माले की तरफ से क्रॉस वोटिंग हो गई. लिहाजा, बसंत सोरेन की हार हो गई. तब झारखंड की कमान रघुवर दास के पास थी. यह चुनाव विवादों में रहा. आईपीएस अफसर अनुराग गुप्ता पर वोट के लिए योगेंद्र साव पर दबाव डालने का आरोप लगा. उनको लंबे समय तक निलंबन झेलना पड़ा.

इसी तरह जून 2020 में प्रेमचंद गुप्ता और परिमल नथवाणी की सीट खाली होने पर सत्ताधारी दल झामुमो ने शिबू सोरेन और कांग्रेस ने शहजादा अनवर को प्रत्याशी बनाया था. वहीं भाजपा ने दीपक प्रकाश को. लेकिन सत्ताधारी दल के पास ज्यादा वोट होने के बावजूद दीपक प्रकाश को शिबू सोरेन से एक ज्यादा यानी 31 वोट हासिल हुए थे. लिहाजा, इस बार भी पक्ष और विपक्षी खेमे में अंकगणित का खेल शुरू हो गया है. लेकिन इस बार का चुनावी गणित इस बात पर निर्भर करेगा कि सीएम, बसंत सोरेन और मिथिलेश ठाकुर के मामले में चुनाव आयोग क्या फैसला लेता है.

अब सवाल है कि सत्ताधारी दल और भाजपा की तरफ से राज्यसभा की टिकट किसको मिलती है. अभी तक इसपर सस्पेंस है. झामुमो की बात करें तो वर्तमान में खुद शिबू सोरेन राज्यसभा सांसद हैं. उनके बड़े पुत्र हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री और बसंत सोरेन विधायक. उनकी बहू सीता सोरेन भी विधायक हैं. लिहाजा, इस परिवार से अगर किसी को मौका दिया जाता है तो वह सीएम की पत्नी कल्पना सोरेन हो सकती हैं. हालाकि, यह सब सियासी संकट के नतीजों तक पहुंचने के बाद ही तय हो पाएगा. प्रदेश भाजपा की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है. यहां के किसी भी नेता को जरा भी इल्म नहीं है कि किसी स्थानीय को मौका मिलेगा या बाहर का प्रत्याशी आएगा. जब बात रघुवर दास को लेकर होती है तो उनके साथ सरयू राय की अदावत आड़े आ जाती है. बहरहाल, दोनों सीटें भाजपा की हैं. केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी और महेश पोद्दार का कार्यकाल खत्म हो रहा है. लेकिन इतना तो तय है कि भाजपा को एक सीट बचाने के लिए भी मशक्कत करनी पड़ेगी.

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