रांची:आईआईटी, आईआईएम जैसे संस्थानों में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्रों की आंखों में लाखों-करोड़ों रुपए के पैकेज के साथ किसी मल्टीनेशनल कंपनी या विदेश में जॉब पाने के सपने तैर रहे होते हैं. लेकिन, इन सब के बीच एक ऐसे छात्र हैं जिन्होंने आईआईएम से पढ़ाई की और प्लेसमेंट में शामिल होने की बजाय किसानों के साथ काम करने की योजना बनाई. रांची के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय में BPD यानि व्यवसाय योजना और विकास इकाई में CEO के रूप में सेवा दे रहे सिद्धार्थ जायसवाल जैसे शख्स बिरले ही होते हैं.
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साबरमती जेल में पहली बार जैविक खेती शुरू कराने का श्रेय
पटना के डॉन बॉस्को स्कूल में सिद्धार्थ की प्रारंभिक शिक्षा हुई. इसके बाद उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से एमएससी और फिर आईआईएम अहमदाबाद से एग्री बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई की. सिद्धार्थ बताते हैं कि IIM से पढ़ाई करने के बाद स्टूडेंट सेक्रेटरी होने के बावजूद प्लेटमेंट में नहीं बैठे बल्कि किसानों के बीच अपने ज्ञान को ले जाने की योजना बनाई. गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में किसानों के साथ काम किया. इस दौरान 2009 में साबरमती जेल में कैदियों को जैविक खेती सिखाई और वहां जेल की खाली जमीन में जैविक खेती शुरू कराया.
जब विश्व बैंक की परियोजना आई तो झारखंड आ गए
पटना से दिल्ली, फिर अहमदाबाद IIM होते हुए रांची कैसे आ गए, इसके जवाब में सिद्धार्थ जायसवाल कहते हैं कि BPD को लेकर उस समय विश्व बैंक की 10 परियोजना देश भर के लिए आई थी. पूर्वी क्षेत्र में रांची और कोलकाता में ही यूनिट था. ऐसे में कोलकाता में सिर्फ जूट रिलेटेड काम था और झारखंड में किसानों के लिए बहुत सारी योजना थी, इसलिए झारखंड आ गया.