रांची:झारखंड में मानव तस्करी बड़ी समस्या है. गरीबी और अशिक्षा के कारण यहां की भोली भाली लड़कियां ह्यूमैन ट्रैफेकिंग की शिकार होती रहती हैं. सुनियोजित रूप से इस काम में लगे दलालों के द्वारा इस कदर जाल फैलाया गया है कि इसमें ग्रामीण क्षेत्रों के बालिग-नाबालिग लड़के-लड़कियां आसानी से फंस जाते हैं. काम दिलाने के नाम पर चल रहे इस गोरखधंधे की जड़ काफी मजबूत है. कभी ग्रामीण तो कभी अपने रिश्तेदार के झांसे में आकर दलालों के रैकेट में फंसने वाली ऐसी बच्चियों के साथ दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों में अमानवीय बर्ताव होता रहता है.
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मानव तस्करी में लगे दलालों का नेटवर्क गांव से लेकर महानगर तक है. हाल ही में दिल्ली से छुड़ाई गई झारखंड की दो दर्जन बच्चियों की दास्तां उदाहरण के तौर पर है. जानकारों की मानें तो ट्रैफिकिंग के इस खेल की शुरुआत अपने रिश्तेदार या ग्रामीण ही करते हैं जो चंद पैसा लेकर दलालों के जरिए शहरों में काम करने बच्चे-बच्चियों को भेज देते हैं. मानवाधिकार कार्यकर्ता वैद्यनाथ सिंह की मानें तो जब तक ग्रामीण स्तर पर इसे रोकने की व्यवस्था नहीं की जाएगी तब तक यहां ट्रैफिकिंग होती रहेगी. झारखंड में खूंटी, गुमला, सिमडेगा, चाईबासा, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूम, लातेहार और दुमका में मानव तस्करी के ज्यादा मामले सामने आते हैं.
कानून में हैं कड़े प्रावधान
ह्यूमन ट्रैफिकिंग को रोकने के लिए कड़े कानून बनाए गए हैं. इसकी रोकथाम के लिए सजा भी मुकर्रर की जाती है. कानूनविदों की मानें तो IPC की धारा 370 और 371 में ह्यूमन ट्रैफिकिंग में संलिप्तता प्रमाणित होने पर खरीद बिक्री करने वाले दोनों को पांच लाख का जुर्माना के अलावा दस वर्ष तक की सजा दी जा सकती है. अधिवक्ता अविनाश कुमार पांडेय की मानें तो न्यायालय में प्रमाणित होने पर दोषी को कठोर सजा देने का प्रावधान है. दिक्कत तब आती है जब इनके खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं मिलता या रिश्तेदार के आरोपी होने पर उन्हें लोग बचाने की कोशिश करने लगते हैं.