कन्जयूमर कोर्ट से उपभोक्ताओं को न्याय कैसे मिलेगा? रांची:इस बाजारवादी युग में आम उपभोक्ताओं के साथ धोखाधड़ी की घटनाएं आम हो गई हैं. ऐसे में सरकार ने उपभोक्ताओं के अधिकारों की रक्षा के लिए कई ऐसे प्रावधान किए हैं, जिसमें सजा जेल तक हो सकती है. इसके बावजूद आरोपी जटिल न्यायिक प्रक्रिया का फायदा उठाकर बच निकलते रहते हैं और पीड़ित न्याय की गुहार लगाता रहता है. ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि न्याय कैसे मिलेगा?
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उपभोक्ता न्यायालय में कन्ज्यूमर के हितों के लिए कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अधिवक्ता विजय तिवारी कहते हैं कि एक तो सुनवाई के दौरान आरोपी पक्ष उपस्थित होना उचित नहीं समझते और यदि कोर्ट के दबाव हाजिर भी होते हैं तो कन्ज्यूमर को वाजिब हक के तहत मुआवजा नहीं देना चाहते. यदि जिला न्यायालय में फैसला होता है तो अपील के लिए राज्य आयोग और कई केस में तो नेशनल कन्ज्यूमर फोरम तक मामला चला जाता है. ऐसे में कई वर्षों तक अदालत की कार्यवाही में समय बीत जाता है. अंत में यदि कन्ज्यूमर के पक्ष में जजमेंट आता है तो इसे इम्प्लीमेंट कराने के लिए फिर आरोपी के पास ही जाना होता है.
कन्ज्यूमर प्रोटेक्शन के लिए बने हैं कड़े कानून:उपभोक्ता संरक्षण के लिए संविधान में कई प्रावधान किए गए हैं. जिसके तहत आरोप सिद्ध होने पर कंपनी या उसके जिम्मेदार व्यक्ति को न्यूनतम 6 महीने और अधिकतम 3 साल तक की सजा हो सकती है. कानूनी जटिल प्रक्रिया के कारण कन्ज्यूमर को ससमय न्याय मिलने में आ रही परेशानी पर सफाई देते हुए राज्य उपभोक्ता आयोग के प्रभारी अध्यक्ष बसंत कुमार गोस्वामी कहते हैं कि जागरुकता की कमी की वजह से न्याय पाने में लोगों को देरी हो रही है.
कंज्यूमर कोर्ट को यह अधिकार है कि यदि आरोप सिद्ध हो जाता है तो पीड़ित को न्याय कैसे मिलेगा यह सुनिश्चित करे. नए कानून में अब 3 साल तक की जेल का भी प्रावधान किया गया है. ऐसे में यदि निचली अदालत के फैसले पर 60 दिनों में अमल नहीं किया जाता है तो राज्य उपभोक्ता आयोग में भी अपील की जा सकती है. इसी तरह राज्य उपभोक्ता आयोग के फैसले को राष्ट्रीय स्तर पर बने उपभोक्ता न्यायालय में अपील की जा सकती है. जिसके बाद सिविल मुकदमा के अलावे सजा पर भी केस चलेगा, जिसके तहत न्यूनतम छह महीने और अधिकतम तीन साल के कारावास की सजा हो सकती है.
प्रथम अपील के मामले ज्यादा:उपभोक्ताओं की परेशानी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिला स्तर पर कई वर्षों तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद जब उन्हें कोर्ट से उनके पक्ष में फैसला आता है तो अमल नहीं हो पाता है. यही वजह है कि राज्य उपभोक्ता आयोग में प्रथम अपील के मामले सर्वाधिक आते हैं. आंकड़ों पर नजर डाले तो प्रथम अपील के दर्ज 6490 मामलों में आयोग ने 5832 निष्पादित किया है और शेष 658 केस कोरम के अभाव में सुनवाई नहीं होने की वजह से लंबित है.