रांची: 1967 में नक्सलवाड़ी से शुरू सशस्त्र आंदोलन की विचारधारा नक्सलवाद ने आहिस्ता आहिस्ता अविभाजित बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा में पांव पसारे. नक्सलवाद और झारखंड की बात करें तो झारखंड में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ नक्सलवादी आंदोलन (Naxalite movement) की शुरूआत 80 के दशक में हुई थी. अविभाजित बिहार में रोहतास, कैमूर की पहाड़ी से नक्सली गतिविधियों का संचालन होता था. धीरे-धीरे नक्सलवाद की आग झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा तक पहुंच गई, उस दौरान पलामू से नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा और निराला यादव इसकी मजबूत धूरी थे. (History of Naxalism)
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कामेश्वर बैठा संगठन से हुए अलग:कामेश्वर बैठा ने उस समय संगठन को छोड़ा जिस समय नक्सलवाद चरम पर था. उसी दौरान कामेश्वर बैठा ने सरेंडर किया और मुख्यधारा में लौटे. मुख्यधारा में लौटने के बाद बैठा ने चुनाव लड़ा और सांसद भी बने. लेकिन कामेश्वर बैठा के आत्मसमर्पण करने के बाद भी झारखंड में नक्सलवाद की आग ठंडी नहीं हुई बल्कि नक्सली गतिविधियों की जद में पलामू के बाद झारखंड के अधिकांश जिले आ गए.
ग्रामीणों के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन:80 के दशक में चतरा, पलामू, गढ़वा, कोल्हान और गिरिडीह में ग्रामीणों को एकजूट करने में नक्सली सफल हो गए थे. उस दौरान झारखंड के गिरिडीह और चतरा जिले में लाल खंडी नाम का एक गुट सक्रिय हुआ था. वह ग्रुप महाजनी प्रथा के खिलाफ लोहा तो ले रहा था. लेकिन उसके पास हथियार नहीं थे. इस दौरान कई लाल खंडी संघर्ष में मारे भी गए. बाद में लाल खंडी संगठन के लोग तेज तलवार, धारदार हथियार का इस्तेमाल करने लगे. उन्होंने दहशत फैलाने के लिए लोगों की गर्दन काट कर बीच सड़क पर रखना शुरू किया. लेकिन हथियार की कमी की वजह से संगठन आगे नहीं बढ़ रहा था.
बंगाल में शुरू हुआ अभियान तो पारसनाथ बना नया ठिकाना:जिस समय झारखंड में लाल खंडी अपने आप को मजबूत करने में लगे हुए थे उसी समय बंगाल में नक्सलियों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया जा रहा था. बंगाल पुलिस के अभियान से घबराकर नक्सलियों की एक टोली छुपते छुपाते गिरिडीह के पारसनाथ पहुंची. वहां लालखंडियों से नक्सली संगठन के नेताओं की मुलाकात हुई. पारसनाथ में ही लाल खंड का विलय भाकपा माओवादियों के साथ हो गया. धीरे-धीरे नक्सलियों ने पारसनाथ को अपने मजबूत किले में तब्दील कर लिया और वहीं से समानांतर हुकूमत चलाने लगे. जिस समय पारसनाथ से नक्सलियों के समानांतर सरकार चल रही थी उसी दौरान झारखंड के चतरा जिले में भी नक्सलवाद का फैलाव हुआ. धीरे-धीरे नक्सली संगठन जमीन से जुड़े मामलों में दखल देने लगे. पांच साल में हालात इतने खराब हुए की जमींदारों को घर छोड़ना पड़ा. इस दौरान कईयों के घर में आगजनी हुई, जमीन छिन कर भूमिहीनों को बांटा गया. ऐसे में नक्सली आंदोलन से लोगों का जुड़ाव होते चला गया.