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80 के दशक में शुरू हुआ नक्सलवाद अब झारखंड में तोड़ रहा दम, दो वर्षों में सबसे ज्यादा हुआ नुकसान - झारखंड न्यूज

झारखंड में नक्सलवाद (Naxalism in Jharkhand) की लौ आहिस्ता आहिस्ता मध्यम होते जा रही है. झारखंड पुलिस की आक्रमक रणनीति की वजह से झारखंड का सबसे बड़ा नक्सल संगठन भाकपा माओवादी भी बैकफुट पर है. खासकर पिछले दो सालों के दौरान झारखंड पुलिस ने माओवादियों को हर मोर्चे पर शिकस्त दी है. लेकिन आज से 22 साल पहले जब झारखंड का निर्माण हुआ था, उस समय परिस्थिति बिल्कुल उलट थी. साल 2000 से लेकर 2017 तक नक्सलियों ने झारखंड के सीने पर कई गहरे जख्म दिए हैं. इस क्रम में 300 से ज्यादा पुलिस वालों को अपनी शहादत देनी पड़ी, जिनमें दो आईपीएस भी शामिल थे.

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Published : Nov 12, 2022, 5:36 PM IST

रांची: 1967 में नक्सलवाड़ी से शुरू सशस्त्र आंदोलन की विचारधारा नक्सलवाद ने आहिस्ता आहिस्ता अविभाजित बिहार, आंध्र प्रदेश, मध्यप्रदेश, ओडिशा में पांव पसारे. नक्सलवाद और झारखंड की बात करें तो झारखंड में जमींदारी व्यवस्था के खिलाफ नक्सलवादी आंदोलन (Naxalite movement) की शुरूआत 80 के दशक में हुई थी. अविभाजित बिहार में रोहतास, कैमूर की पहाड़ी से नक्सली गतिविधियों का संचालन होता था. धीरे-धीरे नक्सलवाद की आग झारखंड के पलामू, गढ़वा, लातेहार, चतरा तक पहुंच गई, उस दौरान पलामू से नक्सली कमांडर कामेश्वर बैठा और निराला यादव इसकी मजबूत धूरी थे. (History of Naxalism)

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कामेश्वर बैठा संगठन से हुए अलग:कामेश्वर बैठा ने उस समय संगठन को छोड़ा जिस समय नक्सलवाद चरम पर था. उसी दौरान कामेश्वर बैठा ने सरेंडर किया और मुख्यधारा में लौटे. मुख्यधारा में लौटने के बाद बैठा ने चुनाव लड़ा और सांसद भी बने. लेकिन कामेश्वर बैठा के आत्मसमर्पण करने के बाद भी झारखंड में नक्सलवाद की आग ठंडी नहीं हुई बल्कि नक्सली गतिविधियों की जद में पलामू के बाद झारखंड के अधिकांश जिले आ गए.

ग्रामीणों के सहयोग से खड़ा हुआ संगठन:80 के दशक में चतरा, पलामू, गढ़वा, कोल्हान और गिरिडीह में ग्रामीणों को एकजूट करने में नक्सली सफल हो गए थे. उस दौरान झारखंड के गिरिडीह और चतरा जिले में लाल खंडी नाम का एक गुट सक्रिय हुआ था. वह ग्रुप महाजनी प्रथा के खिलाफ लोहा तो ले रहा था. लेकिन उसके पास हथियार नहीं थे. इस दौरान कई लाल खंडी संघर्ष में मारे भी गए. बाद में लाल खंडी संगठन के लोग तेज तलवार, धारदार हथियार का इस्तेमाल करने लगे. उन्होंने दहशत फैलाने के लिए लोगों की गर्दन काट कर बीच सड़क पर रखना शुरू किया. लेकिन हथियार की कमी की वजह से संगठन आगे नहीं बढ़ रहा था.



बंगाल में शुरू हुआ अभियान तो पारसनाथ बना नया ठिकाना:जिस समय झारखंड में लाल खंडी अपने आप को मजबूत करने में लगे हुए थे उसी समय बंगाल में नक्सलियों के खिलाफ जोरदार अभियान चलाया जा रहा था. बंगाल पुलिस के अभियान से घबराकर नक्सलियों की एक टोली छुपते छुपाते गिरिडीह के पारसनाथ पहुंची. वहां लालखंडियों से नक्सली संगठन के नेताओं की मुलाकात हुई. पारसनाथ में ही लाल खंड का विलय भाकपा माओवादियों के साथ हो गया. धीरे-धीरे नक्सलियों ने पारसनाथ को अपने मजबूत किले में तब्दील कर लिया और वहीं से समानांतर हुकूमत चलाने लगे. जिस समय पारसनाथ से नक्सलियों के समानांतर सरकार चल रही थी उसी दौरान झारखंड के चतरा जिले में भी नक्सलवाद का फैलाव हुआ. धीरे-धीरे नक्सली संगठन जमीन से जुड़े मामलों में दखल देने लगे. पांच साल में हालात इतने खराब हुए की जमींदारों को घर छोड़ना पड़ा. इस दौरान कईयों के घर में आगजनी हुई, जमीन छिन कर भूमिहीनों को बांटा गया. ऐसे में नक्सली आंदोलन से लोगों का जुड़ाव होते चला गया.

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कुंदा थाना बना तो विरोध में डीएसपी तक की हुई हत्या:चतरा में कुंदा में थाना झारखंड अलग राज्य बनने के बाद बना. थाना बनने के कुछ महीनों बाद वहां के डीएसपी विनय भारती और सीआरपीएफ कमांडेट को नक्सलियों ने ट्रैप कर मार दिया गया था. कुंदा थाना खोले जाने के विरोध में नक्सलियों ने इस वारदात को अंजाम दिया था. इसके बाद नक्सलियों ने हजारीबाग, कोडरमा, गिरिडीह, पलामू, गढ़वा, लातेहार, लोहरदगा, सिमडेगा, चाईबासा का कॉरिडोर बनाया. इस रास्ते से दूसरे राज्य के नक्सली झारखंड आते थे. छत्तीसगढ़, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, बिहार के नक्सली इस कॉरिडोर का इस्तेमाल करने लगे.

सारंडा, सरयू और झूमरा में था प्रशिक्षण कैंप:नक्सलियों की स्थिति झारखंड में इतनी मजबूत हो गई थी कि सारंडा, सरयू, बूढ़ा और झूमरा को उन्होंने अपने प्रशिक्षण स्थल के रूप में विकसित कर लिया. नक्सलियों के नए रंग रूट की बहाली तक इन क्षेत्रों से की जाने लगी.

लेवी से मजबूत हुआ संगठन:संगठन को मजबूत बनाने के लिए एक सुनियोजित तरीके से ठेकेदारों माइंस कारोबारी बीड़ी पत्ता और दूसरे तरह के बड़े कारोबारियों से संगठन ने पैसा वसूलना शुरू किया. समय के साथ-साथ यह संगठन करोड़ों की उगाही करने लगा और उसके बल पर अपनी जमीन को मजबूत करता रहा.

2009 में शुरू हुआ ऑपरेशन ग्रीन हंट:राज्य सरकार अपने खुद के बूते पर नक्सलियों से लोहा लेने में नाकामयाब रही थी ऐसे में नक्सलियों को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार की पैरामिलिटरी फोर्स और राज्य बलो का एक संयुक्त अभियान साल 2009 में शुरू किया गया जिसे ऑपरेशन ग्रीन हंट का नाम दिया गया था. हालांकि ऑफिसियल रूप से सुरक्षा बलों ने कभी भी इस ऑपरेशन को ग्रीन हंट के नाम से इंगित नहीं किया. झारखंड सहित “रेड कॉरिडोर” में आने वाले पांच राज्यों में नवंबर, 2009 में इस अभियान को शुरू किया गया था. ऑपरेशन ग्रीन हंट भी काफी सफल रहा है और कई नक्सलियों को इसके जरिए ढेर किया गया है. वहीं कई नक्सलियों ने आत्ममसमर्पण किया है. वहीं सबसे महत्वपूर्ण इस ऑपरेशन के जरिए कई नक्सली हमलों को रोकने में भी मदद मिली.

बूढ़ा पहाड़ पर चल रहा है ऑपरेशन ऑक्टोपस: पिछले कुछ दिनों से बूढ़ा पहाड़ इलाके में सुरक्षा बलों का ऑपरेशन ऑक्टोपस चल रहा है. इस ऑपरेशन के दौरान सुरक्षा बलों को काफी सफलता हाथ लगी है. माना जा रहा है कि बूढ़ा पहाड़ को नक्सलियों से मुक्त करा लिया है. पलामू, लातेहार इलाके में सुक्षझा बलों ने कई चरणों में भारी मात्रा में हथियार और बम बरामद किया है.

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