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हिन्दी में होनी चाहिए झारखंड हाई कोर्ट की कार्यवाही, राज्यपाल ने संविधान का दिया हवाला, राष्ट्रपति को लिखा पत्र

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Published : Dec 16, 2022, 7:23 PM IST

Updated : Dec 17, 2022, 12:43 PM IST

राज्यपाल रमेश बैस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है (Governor wrote letter to President ). इसमें उन्होंने कहा कि है झारखंड हाई कोर्ट में हिंदी में कार्यवाही होनी चाहिए. उन्होंने लिखा है कि राज्य में अधिकतर लोग हिंदी बोलते और समझते हैं और यहां की राजभाषा भी यही है इसलिए कोर्ट की कार्यवाही भी हिंदी में होनी चाहिए.

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रांची:राज्यपाल रमेश बैस ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखा है (Governor wrote letter to President ). उन्होंने जिक्र किया है कि झारखंड की राजभाषा हिन्दी है. यहां के ज्यादातर लोग हिन्दी बोलते और समझते हैं. बहुत कम लोग हैं जो अंग्रेजी बोल पाते हैं. इसके बावजूद झारखंड उच्च न्यायालय की कार्यवाही में अंग्रेजी भाषा का इस्तेमाल होता है. संविधान में निहित प्रावधानों का उपयोग करते हुए हिंदी को झारखण्ड उच्च न्यायालय की भाषा अब तक नहीं बनाया जा सका है, जबकि देश के हिन्दी भाषी कई राज्यों मसलन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार के उच्च न्यायालयों में हिन्दी भाषा को शामिल किया गया है.

राज्यपाल ने अपने पत्र के जरिए कहा है कि साल 2000 में झारखंड बनने से पहले पटना उच्च न्यायालय के न्यायिक क्षेत्राधिकार के तहत आता था. एकीकृत बिहार के पटना उच्च न्यायालय की कार्यवाही में हिन्दी भाषा के रूप में लागू है. झारखंड गठन के बाद यहां हिंदी राजभाषा ज़रूर बनी पर झारखण्ड उच्च न्यायालय में हिंदी न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में लागू नहीं हो सकी.

उन्होंने कहा है कि न्याय सर्वसुलभ और स्पष्ट रूप से सबको समझ में आए, इसके लिए आवश्यक है कि न्याय की प्रक्रिया सरल हो और उसे आम आदमी को समझ आती हो. झारखंड जैसे राज्य के उच्च न्यायालय में कानूनी प्रक्रियाओं का माध्यम अंग्रेजी होना न्याय को आम आदमी की समझ और पहुंच से दूर बनाता है. उन्होंने कहा है कि अनुच्छेद 348 के खंड (2) में प्रावधान है कि किसी राज्य का राज्यपाल राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उस उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों में हिंदी भाषा का या उस राज्य की शासकीय भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा. अब चूकि हिंदी झारखंड की राजकीय भाषा भी है, ऐसे में इसे उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा घोषित करना संविधान के प्रावधानों के अनुरूप होगा.

भारत के संविधान के अनुच्छेद 351 में हिंदी भाषा के विकास के लिए स्पष्ट निर्देश दिया गया है. मसलन, संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए. उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किए बिना हिन्दुस्तानी में और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहां आवश्यक या वांछनीय हो वहां उसके शब्द-भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे.

ऐसे में राज्यहित और न्यायहित में संविधान के अनुच्छेद 348(2) में प्रदत्त प्रावधानों का प्रयोग करते हुए हिन्दी को झारखण्ड उच्च न्यायालय की कार्यवाही की भाषा के रूप में प्राधिकृत किया जा सकता है.

Last Updated : Dec 17, 2022, 12:43 PM IST

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