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झारखंड उत्पाद संशोधन विधेयक 2022ः फिर सदन में बिल लाएगी सरकार, राज्यपाल की आपत्तियों पर नहीं किया विचार

झारखंड विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा है. आज सत्र का चौथा दिन है. आज सदन में सरकार झारखंड उत्पाद संशोधन विधेयक 2022 (Jharkhand Excise Amendment Bill 2022)को फिर से पेश करेगी. विधेयक को इससे पहले सदन से पारित करवा कर राज्यपाल की मंजूरी के लिए भेजा गया था. जिसे राज्यपाल ने कुछ आपत्तियों के साथ वापस कर दिया था. सरकार उन आपत्तियों पर बिना विचार किए ही फिर से विधेयक सदन में ला रही है. जिसे लेकर विपक्ष ने निशाना साधा है.

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जगरनाथ महतो, उत्पाद मंत्री

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Published : Dec 22, 2022, 7:45 AM IST

Updated : Dec 22, 2022, 8:22 AM IST

मंत्री जगरनाथ महतो और विधायक बिरंचि नारायण

रांचीः सरकार झारखंड उत्पाद संशोधन विधेयक 2022(Jharkhand Excise Amendment Bill 2022) पर राज्यपाल रमेश बैस की आपत्तियों को नजरअंदाज कर पूर्व में विधानसभा के पटल पर रखे गये विधेयक को बिना किसी संशोधन के सदन में पेश करने जा रही है. 1 मई 2022 से झारखंड राज्य बिवरेज कॉरपोरेशन लि के माध्यम से शराब की खुदरा बिक्री हो रही है. इसके लिए उत्पाद विभाग ने नीति निर्धारित कर नयी व्यवस्था के तहत शराब का व्यापार शुरू किया है. नयी नीति के अनुरूप कानून में बदलाव के लिए विधानसभा ने झारखंड उत्पाद संशोधन विधेयक 2022 पारित किया था. जिसे राज्यपाल को भेजा गया था. इस विधेयक पर राज्यपाल ने आठ बिंदुओं पर आपत्ति जताते हुए इसे सरकार को लौटा दिया था.

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उत्पाद मंत्री जगरनाथ महतो ने कहा है कि विधेयक पर की गयी आपत्तियों के अनुरूप किसी संशोधन की आवश्यकता नहीं है. सरकार सदन में इस विधेयक को लायेगी. इधर सरकार द्वारा एक बार फिर उत्पाद विधेयक को सदन के पटल पर लाने की तैयारी पर भाजपा विधायक बिरंचि नारायण ने आपत्ति जताते हुए कहा कि राज्य में नई उत्पाद नीति के जरिए एक हजार करोड़ का घोटाला हुआ है. सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचार में लिप्त है. जब महामहिम ने आपत्ति जताते हुए संशोधन करने की सलाह दी है तो सरकार इससे भाग क्यों रही है इसे समझा जा सकता है.

इधर संवैधानिक मामलों के जानकार अधिवक्ता अविनाश पांडे का मानना है कि राज्यपाल के परामर्श को मानना राज्य सरकार की बाध्यता है. यदि कोई विधेयक पर राज्यपाल का हस्ताक्षर नहीं होता है तो तीन बार सदन से पास होने पर इसे स्वतः कानूनी रुप लेने का भी प्रावधान है, मगर जो परिस्थिति बन रही है उससे राजभवन और सरकार के बीच संबंधों में दूरी बढेगी जो लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है.


राज्यपाल ने विधेयक के जिन प्रावधानों पर आपत्ति जाहिर की है वो इस प्रकार हैंः

  • Section-7 की उपधारा- 3 में उड़नदस्ता के गठन का प्रावधान किया गया है. जबकि पूर्व से ही उत्पाद विभाग को आवश्यकतानुसार पदाधिकारियों के उड़नदस्ता, Task force, Mobile force आदि गठित करने की सम्पूर्ण शक्ति निहित है. अतः पुनः धारा-7 की उपधारा-3 जोड़े जाने का औचित्य नहीं है.
  • प्रश्नगत विधेयक में राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन निगम द्वारा संचालित अनुज्ञप्तियों के मामलों में निगम द्वारा अधिकृत एजेंसी एवं कर्मचारियों को असंवैधानिक कृत्यों के लिए उत्तरदायी माना गया है. वर्तमान में राज्य सरकार के लिए निर्धारित शराब की बिक्री के दुकान Beverage Corporation के माध्यम से चयनित एजेंसियों के द्वारा संचालित किये जाते हैं. प्रश्नगत प्रावधान से किसी भी प्रकार की अनियमितता पाये जाने पर एजेंसी के कर्मचारी जो उक्त बिक्री स्थल का संचालन करते हैं, उन्हें ही जवाबदेह माना जायेगा, जबकि यह सम्पूर्ण जवाबदेही संबंधित एजेंसी की होनी चाहिए तथा निगम के स्तर से नियमित रूप से इसका अनुश्रवण किया जाना भी आवश्यक है. किन्तु किये गये संशोधन से मात्र स्थानीय कर्मचारी ही असंवैधानिक कृत्यों के जबावदेह माने जायेंगे. यह व्यवस्था निगम के पदाधिकारियों को तथा एजेंसियों के उच्च पदाधिकारियों को आपराधिक/ असंवैधानिक कृत्यों से संरक्षण देने का प्रयास करने का कार्य देखा जा सकता है.
  • धारा-52 में नया प्रावधान जोड़ा गया है, जिसमें सजा के साथ मुआवजा भुगतान का भी प्रावधान किया गया है. विचारणीय है कि मुआवजा का भुगतान सजा से अलग यह व्यवस्था है. अतः उचित होगा कि सजा एवं मुआवजा के निर्धारण हेतु अलग-अलग धाराओं में प्रावधान किया जाय.
  • धारा-55 (A) में किये गये सजा के प्रावधान धारा-47 के प्रावधानों के अनुरूप रखा जाना उचित होगा. नई धाराएं 55(D) एवं 55 (E) के प्रावधानों को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा-106 के आलोक में समीक्षा किया जाना अपेक्षित है.
  • वर्तमान में Beverage Corporation ही अनुज्ञप्तिधारी का कार्य कर रहा है. धारा-57 में अनुज्ञप्तिधारी अथवा उनके सेवक के कृत्यों के लिए दंड का प्रावधान किया गया है. इन प्रावधानों में निगम के पदाधिकारियों को अलग करते हुए मात्र अधिकृत एजेंसी के स्थानीय कर्मचारियों के लिए असंवैधानिक कृत्यों के लिए उत्तरदायी माना गया है. स्पष्टतः इस प्रकार के वैधानिक संरक्षण से मूल अनुज्ञप्तिधारी निगम की जवाबदेही कम हो जाती है.
  • धारा-79 (IV) में 20 लीटर तक शराब के संग्रहण करने की स्थिति में स्वयं के बंध-पत्र पर आरोपित को अधिकारी के विवेक के अनुसार मुक्त किया जा सकता है. स्पष्टतः इस प्रावधान से यह अर्थ निकल सकता है कि 20 लीटर तक शराब कोई भी व्यक्ति अपने पास संग्रहित कर सकता है, जो उचित प्रतीत नहीं होता है.
  • सामान्यतः उत्पाद नीति एवं अधिनियम के प्रावधानों के संबंध में राजस्व पर्षद के स्तर से समीक्षा की जाती है, क्योंकि राजस्व पर्षद को उत्पाद अधिनियम के अंतर्गत कतिपय शक्तियां प्रदत्त है. प्रश्नगत संशोधन विधेयक के मामलों में राजस्व पर्षद का कोई परामर्श लिया गया प्रतीत नहीं होता है.
  • राज्य में नई उत्पाद नीति लागू किये जाने के संबंध में विभाग द्वारा उत्पाद राजस्व में बढ़ोत्तरी के दावे किये गये थे, किंतु प्रथम 6 माह में उत्पाद राजस्व में निरंतर ह्रास देखा जा रहा है. उत्पाद अधिनियम में विभागीय तथा निगम के पदाधिकारियों की सीधी जवाबदेही कम होने से अनुश्रवण और कमजोर होगा तथा अवैधानिक कृत्यों को बढ़ावा मिलने के साथ राजस्व में भी और ह्रास संभावित है.

इस तरह से राज्यपाल ने इस विधेयक के प्रावधानों पर पुनर्विचार करने तथा अन्य राज्यों से इससे संबंधित प्रावधानों की समीक्षा करने, राजस्व पर्षद से मंतव्य प्राप्त करने के उपरांत विधेयक के प्रावधानों को संशोधित करने की बात कहते हुए विधेयक को पिछले दिनों वापस लौटा दिया था.

Last Updated : Dec 22, 2022, 8:22 AM IST

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