रांची: कोरोना संक्रमण बढ़ते ही महाराष्ट्र सहित पूरे देश के विभिन्न राज्यों से बड़ी संख्या में मजदूरों की घर वापसी शुरू हो गई है. एक बार फिर मजदूर काम छोड़कर घर वापस आ रहे हैं. इन मजदूरों के लिए इस बार ना तो स्टेशन पर कोई खास प्रबंध हैं और ना ही रोजी रोजगार के लिए सरकारी वायदे ही मिल रहे हैं.
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मजबूर होकर घर लौट रहे मजदूर
देश में कोरोना के कारण हालात गंभीर होते जा रहे हैं. महाराष्ट्र सहित देश के अन्य राज्यों में कोरोना संकट ने वहां काम कर रहे लाखों युवाओं को एक बार फिर घर वापसी के लिए मजबूर कर दिया है. राजधानी मुंबई, चेन्नई सहित अन्य स्थानों से बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर झारखंड आ रहे हैं. पुणे से हटिया स्टेशन पहुंचे हजारीबाग चौपारण के राजेश साहू की पीड़ा साफ झलक रही थी कि पिछले साल कोरोना संकट के दौरान किसी तरह वह अपने घर आए. वह फरवरी में ही पुणे गए थे. छोटे मोटे काम के साथ वहां रोजी रोजगार शुरू हुआ ही था कि कोरोना ने एक बार फिर दस्तक दे दी, जिसके कारण सब कुछ खत्म हो गया और वह मजबूर होकर झारखंड लौट आए.
स्टेशन पर मजदूरों के लिए कोई व्यवस्था नहीं रेलवे स्टेशन पर नहीं है कोई खास प्रबंध
इसी तरह देवघर के रितेश यादव और मोहम्मद अंसारी ने भी अपना दुखड़ा सुनाया और राज्य सरकार के प्रति नाराजगी जताई. इन प्रवासी मजदूरों का मानना है कि अगर अपने राज्य में रोजगार की व्यवस्था होती तो वे लोग क्यों पलायन करते. उन्होंने कहा कि सरकार तो वादा बहुत करती है, लेकिन इसे जमीन पर उतारने में नाकाम रहती है. कोरोना के बाद पिछले साल घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों के लिए रेलवे स्टेशन और एयरपोर्ट पर खास प्रबंध किए गए थे. सियासत के साथ-साथ प्रवासी मजदूरों का जमकर स्वागत होता रहा. इसके लिए प्रशासनिक महकमा रात दिन लगा रहा.
स्टेशन से बाहर निकलते मजदूर ये भी पढ़ें-कोविड पर नियंत्रण के लिए राज्य सरकार कटिबद्ध, केंद्र सरकार झारखंड के साथ कर रही सौतेला व्यवहार: बन्ना गुप्ता
बेरोजगारी का भय
पिछले साल स्पेशल ट्रेन में गुलाब के फूल और भोजन के खास प्रबंध से सरकार ने जमकर वाहवाही लूटी थी. सरकार की ओर से आठ लाख प्रवासी मजदूरों की वापसी का दावा भी किया गया, लेकिन कोरोना संक्रमण कम होते ही ये मजदूर महानगरों की ओर निकल पड़े थे. इस बार कोरोना संक्रमण की तेज रफ्तार के बावजूद सब कुछ भुला दिया गया. ना तो स्टेशन पर प्रवासी मजदूरों को देखने वाला कोई है और ना ही कोरोना चेक करने की व्यवस्था. सरकार ने काउंटर जरूर खोल रखे हैं, लेकिन महाराष्ट्र जैसे अतिसंवेदनशील कोरोना संक्रमण क्षेत्र से आ रहे यात्रियों की जांच करने वाला कोई नहीं है. जान बचाने के लिए घर की ओर अपने परिवार के छोटे छोटे बच्चों को लेकर लोग निकल पड़े. इन लोगों को एक तरफ कोरोना का डर है तो वहीं दूसरी तरफ बेरोजगारी का भय. मजबूरी में अपने घर के लिए निकल पड़े. इन लोगों को आस है कि सरकार उनकी सुधि जरूर लेगी.