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वर्चुवल धमकी का खौफ! हथियार से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे इंटरनेट कॉल

Threat from virtual call. प्रिंस खान, अमन सिंह, सुजीत सिन्हा और अमन साव ये वैसे गैंगस्टर्स है जिनका एक फोन भर आ जाने से कारोबारियों के बीच दहशत कायम हो जाता है. इन गैंगस्टर्स का गैंग पहले से तो खतरनाक था ही लेकिन अब इन गैंग्स का टेक्निकल अवतार कारोबारियों की जान सांसत में तो डाल ही रहा साथ ही पुलिस के सामने भी बड़ी चुनौती पेश कर रहा है.

Threat from virtual call
Threat from virtual call

By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Dec 1, 2023, 8:19 PM IST

जानकारी देते डीआईजी अनूप बिरथरे

रांची: इंटरनेट ने जहां साइबर अपराधियों को ठगी के लिए एक बड़ा स्पेस उपलब्ध करवाया है वहीं अपराधियों के लिए भी पुलिस को छकाने के लिए बड़ा तोहफा दे दिया है. पहले फोन की रिंग बजने के बाद फोन करने वाले का नाम पता और एड्रेस पुलिस पल भर में हासिल कर लेती थी लेकिन अब दर्जन भर कालिंग एप, वाट्स एप और कई तरह के इंटरनेट कॉल की भरमार हो चुकी है, जिसके बल पर बड़े से लेकर छोटे गैंग्स तक का रंगदारी का कारोबार फल फूल रहा है.

राजधानी रांची सहित कई शहरों के कारोबारियों को बड़े गैंग्स के नाम से इंटरनेट कॉल के जरिए धमकी देकर रंगदारी मांगी जा रही है. हाल के दिनों में केवल राजधानी रांची और धनबाद में ही एक दर्जन से ज्यादा लोगों को वर्चुअल नम्बर से कॉल कर करोड़ों की रंगदारी की मांग की जा चुकी है. खौफ और दहशत में कारोबारी पुलिस से फरियाद कर अपने जान माल की सुरक्षा की गुहार लगा रहे हैं. लेकिन हाईटेक हो चले अपराधियों के आगे पुलिस की एक नहीं चल रही है. फेक नंबर से आने वाली कॉल को ट्रैक कर पाना आसान नहीं होता है. इंटरनेट से आने वाले कॉल पुलिस के लिए अबूझ साबित हो रहे हैं.

पहचान के लिए आईपी एड्रेस की जरूरत होती है:पुलिस भली-भांति यह जानती है कि धमकी भरे कॉल के लिए अपराधी अब बहुत कम सीधे तौर पर मोबाइल का इस्तेमाल कर रहे हैं. वे अब रंगदारी के लिए इंटरनेट के जरिए फोन कर रहे हैं. इंटरनेट कॉल का पता लगाने के लिए पुलिस को आईपी एड्रेस की जरूरत होती है लेकिन आईपी एड्रेस को ट्रेस करना अपने आप में टेढ़ी खीर है और उसमें अच्छा खासा समय लगता है. इंटरनेट के जरिए कॉल की सेवा देने वाली ज्यादातर कंपनियों के ऑफिस विदेशों में हैं. जबकि भारत में फर्जी आईडी के जरिए रजिस्ट्रेशन कराकर किसी सॉफ्टवेयर के जरिए फोन करना आसान है. जब तक पुलिस की जांच आईपी एड्रेस तक पहुंचती है तब तक अपराधी अपना एड्रेस ही बदल डालते हैं.


आसानी से ट्रेस करना है मुश्किल:इंटरनेट के जरिए किए जाने वाले कॉल में वर्चुअल नंबर का यूज किया जाता है. इसे आसानी से ट्रेस नहीं किया जा सकता है. बिना सिम कार्ड के इस्तेमाल के होने वाली कॉल को वर्चुअल कॉल कहा जाता है. इसके लिए मोबाइल की भी जरूरत नहीं होती है और न ही सिम कार्ड का. सिमकार्ड का इस्तेमाल न होने से पुलिस टॉवर लोकेशन सहित अन्य जानकारी ट्रेस करने में नाकाम रह जाती है. राजधानी रांची में कई लोगों को धमकियां मिली हैं, जिनमें इंटरनेट से आई कॉल को पुलिस ट्रेस करने में नाकाम रही.


लगातार आ रहे मामले सामने:हाईटेक होते अपराधियों ने पुलिस की नाक में दम कर दिया है. अमन सिंह, अमन साव, प्रिंस खान और सुजीत सिन्हा सबसे ज्यादा वर्चुअल कॉल का इस्तेमाल कर रहे है. इन गैंग्स के अलावा उग्रवादी संगठन पीएलएफआई और टीपीसी भी धड़ल्ले से इंटरनेट कॉल का प्रयोग कर रहे हैं.

पुलिस के लिए है चुनौती- डीआईजी:रांची रेंज के डीआईजी अनूप बिरथरे के अनुसार वर्चुअल नम्बर की पहचान करना आज भी बड़ी चुनौती बनी हुई है. व्हाट्सएप कॉल को तो पुलिस ट्रेस कर लेती है लेकिन अधिकांश मामलों में जो फोन नंबर बरामद होता है वह किसी न किसी मृत व्यक्ति या फिर किसी निर्दोष का होता है. साइबर टीम लगातार ऐसे कॉल्स को लेकर मॉनिटरिंग कर रही है.

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