रांची:पूरा देश 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान लागू हुआ था. देश का सबसे बड़ा विधान 'संविधान' ही है. संविधान दिवस मनाने की परंपरा डॉ भीमराव अंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर 26 नवंबर 2015 से शुरू हुई. इसमें कोई शक नहीं कि 'संविधान' हर भारतीय को समान अधिकार देता है, लेकिन झारखंड के लोगों को यह जानना चाहिए कि संविधान सभा में झारखंड के चार विभूति ना होते तो शायद आदिवासी बहुल झारखंड की तस्वीर कुछ और होती. गणतंत्र दिवस का सौभाग्य दिलाने में झारखंड के चार विभूतियों की अहम भूमिका रही है.
मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा की भूमिका
खूंटी में जन्मे, लंदन के ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़े और ओलंपिक में भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले जयपाल सिंह मुंडा पहले शख्स थे, जिन्होंने आदिवासियों के हक की बात की. संविधान सभा में जयपाल सिंह मुंडा का भाषण हमेशा याद किया जाएगा. उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि "पिछले 6 हजार साल से अगर इस देश में किसी का शोषण हुआ है तो वे आदिवासी ही हैं. अब भारत अपने इतिहास में एक नया अध्याय शुरू कर रहा है तो हमें अवसरों की समानता मिलनी चाहिए ". उन्होंने ही कहा था कि "हम आदिवासियों में जाति, रंग, अमीरी गरीबी या धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं किया जाता, आपको हमसे लोकतंत्र सीखना चाहिए, हमको किसी से सीखने की जरूरत नहीं ".
जसपाल सिंह मुंडा ने की आदिवासी महासभा की स्थापना
जयपाल सिंह मुंडा की पहल पर ही देश के नेताओं ने आदिवासी समाज के दुख को समझा और 400 आदिवासी समूह को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दिया. इसी के बाद आदिवासी समुदाय के लिए विधायिकाओं और सरकारी नौकरियों में 7.5 फ़ीसदी आरक्षण सुनिश्चित किया जा सका. जयपाल सिंह मुंडा ने 1938 में आदिवासी महासभा की स्थापना की थी. इन्हीं के नेतृत्व में 1928 में एमस्टरडम ओलंपिक में भारत ने हॉकी का गोल्ड मेडल जीता था.
बाबू राम नारायण ने प्रधान सेवक शब्द का किया था जिक्र, पीएम मोदी भी हैं मुरीद
संविधान सभा में झारखंड की आवाज बुलंद करने वाले छोटानागपुर केसरी बाबू राम नारायण सिंह को हमेशा याद किया जाएगा. चतरा में जन्मे राम नारायण सिंह ने स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई लड़ी और 1931 से 1947 तक 8 बार जेल में रहे. उनकी पहल पर ही 1940 में रामगढ़ में कांग्रेस का अधिवेशन हुआ था. उन्होंने सबसे पहले संसद में छोटानागपुर में अलग झारखंड की मांग उठाई थी. राम नारायण सिंह ने संविधान सभा में एक विधान, एक निधान और एक संविधान की बात कही थी. संविधान सभा में उन्होंने कहा था कि देश के प्रधानमंत्री को प्रधान सेवक और नौकरशाह को लोक सेवक के रूप में जाना जाना चाहिए. कांग्रेस की विचारधारा से अलग होकर उन्होंने 1952 में हजारीबाग पश्चिम संसदीय क्षेत्र से बतौर निर्दलीय मैदान में उतरकर कांग्रेस उम्मीदवार को हराया था. पीएम मोदी अपन भाषणों में अक्सर राम नारायण सिंह का जिक्र करते हैं. उन्हीं से प्रेरणा लेकर खुद को जनता के बीच प्रधानमंत्री नहीं, बल्कि प्रधान सेवक के रूप में पेश करते हैं.
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