रांची:झारखंड प्रतिभावान खिलाड़ियों का गढ़ माना जाता है. यहां हर क्षेत्र में प्रतिभा है और खिलाड़ियों के उत्थान को लेकर कई योजनाएं संचालित हो रही हैं. इसके बावजूद ऐसे कई वर्तमान और पूर्व खिलाड़ी हैं, जो आज आर्थिक तंगी की मार झेल रहे हैं. रांची में जेवलिन थ्रो की अंतरराष्ट्रीय प्लेयर रह चुकी मारिया गोरती खलखो ने राज्य के साथ-साथ देश का नाम रोशन किया है, लेकिन वो फिलहाल गुमनामी की जिंदगी जीने को विवश हैं. राष्ट्रीय स्तर के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के मेडल इनके नाम हैं. इसके बावजूद आज बची हुए जिंदगी जीने के लिए सरकार से गुहार लगा रही हैं.
खेल और खिलाड़ियों के विकास को लेकर कई घोषणाएं होती रही हैं. झारखंड सरकार खेल नीति बनाकर खिलाड़ियों और खेल को संवारने की बात कह रही है, लेकिन यह सारे वादे, घोषणाएं और योजनाएं कोरी साबित हो रही हैं. ऐसे कई खिलाड़ी हैं जो आज भी सरकारी मदद को लेकर गुहार लगाने को मजबूर हैं. जेवलिन थ्रो की नेशनल प्लेयर रह चुकी और शानदार एथलेटिक्स कोच मारिया गोरती खलखो भी उन्हीं में से एक हैं. इन दिनों उनकी हालत काफी नाजुक है. उनकी सेहत भी काफी नासाज चल रही है, लेकिन इस ओर न तो सरकार का ध्यान है और न ही किसी संबंधित पदाधिकारी का. साल 2019 में रिम्स में मारिया को इलाज के दौरान पता चला कि उनका एक लंग्स पूरी तरह खराब हो चुका है. उस दौरान खेल विभाग की ओर से निवर्तमान खेल निदेशक अनिल कुमार सिंह और खेल प्रशिक्षक प्रवीण कुमार की मदद से उनका इलाज रिम्स में संभव हो पाया. एक महीने से अधिक समय तक रिम्स में ही उनका इलाज चला. उस दौरान खेल विभाग ने रिम्स में एडमिट तक ही उनकी मदद की थी, लेकिन उसके बाद मारिया का हालचाल जानने भी उनके घर तक कोई नहीं पहुंचा. रांची से लगभग 20 किलोमीटर दूर नामकुम के आरा गेट के पास सीधा टोली ग्रामीण क्षेत्र में अपनी बहन के घर पर रहकर मारिया जिंदगी का अंतिम पड़ाव गुजार रही हैं और उन्हें सरकारी आर्थिक मदद की सख्त जरूरत है. मारिया सरकारी आर्थिक मदद के लिए गुहार लगा रही हैं.
सरकार ने एक लाख रुपये की आर्थिक मदद का किया था वादा
इलाज के दौरान ही राज्य सरकार और खेल विभाग की ओर से मारिया को एक लाख रुपये की आर्थिक मदद देने का वादा किया गया था, लेकिन इस वादे को सरकार शायद भूल गई है. मारिया को हर महीने लगभग 4000 रुपये की दवा की जरूरत पड़ती है, लेकिन इस ओर भी किसी का ध्यान नहीं है और आज भी वह आर्थिक मदद के लिए सरकार के पास हाथ फैलाए खड़ी हैं. जबकि एथलेटिक्स में जब उनका परचम लहरा रहा था. उस दौरान उनके आगे पीछे मीडिया के कैमरे के साथ-साथ कई पदाधिकारी और मंत्री चक्कर काटते थे और आज उम्र के साथ सबकुछ बेगाना हो गया है. एथलेटिक्स कोच के तौर पर मारिया खलखो ने लातेहार में 1988 में योगदान दिया. अगस्त 2018 में संविदा पर रहते रिटायर्ड भी हो गईं. 30 सालों में उनका मानदेय 1000 से 31 हजार तक पहुंचा और अंतिम समय में एथलेटिक्स बालिका सेंटर में उन्होंने अपना योगदान दिया. रिटायरमेंट के बाद से ही मारिया के हाथ खाली हो गए और वह एक एक रुपए के लिए मोहताज होने लगी. संविदा में योगदान देने के कारण ना तो उनको सरकार की ओर से कोई सहायता दी गई और ना ही खिलाड़ी कल्याण से ही उनको कुछ मिला.