रांचीः झारखंड में गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल तक राजपाट चलाने वाले रघुवर दास पिछले कई माह से झारखंड की राजनीति में अलग-थलग पड़े हुए थे, लेकिन कुछ दिन पहले भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोनीत होने के बाद फिर से राजनीति के केंद्र में आ गए हैं.
इस मौके पर ईटीवी भारत के वरिष्ठ सहयोगी राजेश कुमार सिंह ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास से झारखंड की राजनीति और यहां के सरकार के कार्यकलाप पर बातचीत की. रघुवर दास ने कहा कि पार्टी ने मुझे जो जिम्मेदारी है दी है उसे मैं पूरी ईमानदारी से निभाऊंगा .
बदले की भावना से काम कर रही है हेमंत सरकारः रघुवर
2019 के विधानसभा चुनाव में झामुमो, कांग्रेस और राजद का गठबंधन बना था. इन्होंने झारखंड की जनता से बड़े-बड़े वादे किए थे. दुष्प्रचार कर सत्ता हासिल कर लिया. लेकिन चुनाव में मत विभाजन को देखें तो भाजपा को अकेले करीब 50 लाख वोट मिले थे जबकि गठबंधन को 52 लाख वोट मिले थे.
आजसू के साथ गठबंधन नहीं होने के कारण करीब 8 लाख वोट प्रभावित हुआ था, लेकिन 2014 के चुनाव के मुकाबले 2019 में भाजपा को 2% अधिक वोट मिला था. लेकिन वर्तमान सरकार बदले की भावना से काम कर रही है.
पूर्व सरकार की योजनाओं को जानबूझकर बंद कर रही है. महिलाओं के नाम 50 लाख तक की संपत्ति की एक रुपए में रजिस्ट्री की बात हो या फिर मुख्यमंत्री कृषि आशीर्वाद योजना हो. इन योजनाओं को साजिश के तहत सरकार ने बंद कर दिया.
इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में इस सरकार ने पूरा काम ठप कर रखा है. रघुवर दास ने कहा कि हमने मोमेंटम झारखंड करके निवेशकों को आकर्षित किया था. इज ऑफ डूइंग बिजनेस के मामले में झारखंड की चर्चा होती थी. हमने निवेशकों को बुलाने के लिए कई नीतियां बनाई. हमारी सरकार ने एक टेक्सटाइल पॉलिसी बनाई थी. ओरिएंट क्राफ्ट , अरविंद मिल्स जैसी कंपनियां आईं, सिर्फ ओरियंट क्राफ्ट में 3000 बच्चियां काम कर रही थी.
अब सारे निवेशक ताला बंद करके भाग रहे हैं. राज्य बनने के बाद लोगों का सपना था कि सरकारी नौकरी में हमें नौकरी मिलेगी. हमारी सरकार ने तृतीय और चतुर्थ वर्ग की नौकरी में आदिवासी मूलवासी और झारखंडवासियों के हित में 10 वर्ष के लिए आरक्षित कर नौकरी दिलाई, लेकिन यह सरकार गुमराह करती रही कि बाहरी लोगों को नौकरी दी जा रही है.
हमारी नियोजन नीति के कारण हजारों लोगों को शिक्षक की नौकरी मिली जिसमें आदिवासी और मूलवासी थे, लेकिन वर्तमान सरकार ने हाईकोर्ट में सही तरीके से अपना पक्ष नहीं रखा जिसकी वजह से यहीं के रहने वाले आदिवासी और मूलवासी सड़कों पर आ गए.
पांचवी अनुसूची के तहत राज्यपाल को अधिकार होता है कि वह विशेष व्यवस्था लागू कर सकता है. इसी को ध्यान में रखकर 10 साल के लिए नीति बनाई गई थी ताकि स्थानीय लोगों को रोजगार मिले, लेकिन इस सरकार की लापरवाही के कारण यहां के युवाओं की नौकरी हाथ से चली गई और अब सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कह रही है.